17-Aug-2016 06:36 AM
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पंजाब चुनाव में अभी कई महीने बाकी हैं। लेकिन जिस तरह के हालात दिख रहे हैं उससे लग रहा है कि यहां आप की आंधी में पंजाब उड़ रहा है यानी हर तरफ आम आदमी की पार्टी का परचम लहरा रहा है। हालांकि चुनावी राजनीति की दिशा और दशा बदलने के लिए एक सप्ताह का वक्त भी काफी होता है। एक गलत फैसला या एक गलत बयान से जीती हुई बाजी हार में बदल जाती है। पंजाब चुनाव में तो अभी कई महीने बाकी हैं। अभी किसी भी पार्टी ने अपने-अपने पत्तों का खुलासा भी नहीं किया है। किसी पार्टी का उम्मीदवार भी तय नहीं हुआ है। ऐसे में चुनावी सर्वे ही एकमात्र माध्यम हैं जिसके जरिए लोग मतदाताओं के मूड को समझने की कोशिश करते हैं। हालांकि चुनावी सर्वे की सत्यता और विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। आज का मतदाता इतना खामोश और परिपक्व हो चुका है कि एक्जिट पोल पूरी तरह गलत साबित हो जाते हैं। चुनावी सर्वे से हमें महज इशारा मिलता है। हवा के रुख का पता चलता है। इसलिए पंजाब चुनाव को समझने के लिए चुनावी सर्वे पर नजर डालना जरूरी है।
कुछ दिन पहले सी-वोटर्स का सर्वे आया। यहां ये बताना जरूरी है कि सी-वोटर्स के बारे में यह धारणा है कि इसका आंकलन भाजपा के प्रति झुका होता है। सी-वोटर्स के सर्वे के जो नतीजे हैं वो चौंकाने वाले हैं। इस सर्वे के मुताबिक पंजाब की कुल 117 सीटों में से आम आदमी पार्टी 94-100 सीट जीत सकती है। कांग्रेस पार्टी 8-14 सीटें जीत कर दूसरे स्थान पर रहेगी, तो वहीं अकाली दल और भाजपा को सिर्फ 6-12 सीटें मिलने की उम्मीद है। बेशक, इस सर्वे का नतीजा आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। लेकिन इस सर्वे में आम आदमी पार्टी के लिए खतरे की घंटी भी है। इस सर्वे के मुताबिक 59 फीसदी लोग अरविंद केजरीवाल को पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। पंजाब के मतदाताओं की जनभावना को अरविंद केजरीवाल कैसे पूरा करेंगे यह देखना रोचक होगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई में पंजाब की जमीनी हकीकत यही है जैसा कि सी-वोटर्स के सर्वे के नतीजे में अनुमान लगाया गया।
दरअसल, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल है। मतदाता वर्तमान राज्य सरकार से नाराज हैं इस बात को सरकार चलाने वाले पार्टियों के लोग भी मानते हैं। इसमें दो राय नहीं है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में सरकार-विरोधी लहर का बड़ा असर होने वाला है। लोगों में नाराजगी की वजह कई हैं। नाराजगी की सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार है। लोगों को लगता है कि अकाली दल-भाजपा की सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है। कई घोटाले उजागर हुए और प्रकाश सिंह बादल की गलती यह रही कि उन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। दूसरी समस्या ये है कि बादल सरकार युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराने में पूरी तरह से विफल रही है। पंजाब में औद्योगीकरण पूरी तरह से ठप्प रहा है। निवेश के मामले में भी पंजाब देश के दूसरे राज्यों से पिछड़ता चला गया। युवाओं के लिए बादल सरकार अवसर प्रदान नहीं कर सकी और इसका असर ये हुआ कि नशे का जहर समाज में घुलता चला गया। सरकार विरोधी लहर का असर शहरों में ज्यादा दिखाई दे रहा है। भाजपा और अकाली दल में तालमेल नहीं है। हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर यह गठबंधन टूट चुका है। वैसे, पंजाब में भाजपा एक छोटी पार्टी है और केंद्रीय नेताओं ने इसके विस्तार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। पंजाब में भाजपा शिरोमणि अकाली दल की पिछलग्गु पार्टी बनकर रह गई है। हालांकि, पंजाब में भाजपा के जमीनी नेता और कार्यकर्ता भी बादल सरकार से नाराज रहे लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के फैसले की वजह से खुल कर विरोध नहीं कर सके। इसका भी असर भाजपा और अकाली दल के वोट पर पड़ेगा। ऐसे में पूरा माहौल आप के पक्ष में दिख रहा है।
आप के बढ़ते प्रभाव में खेमेबाज बाधा
पंजाब में आम आदमी पार्टी एक विश्वसनीय विकल्प के रुप में उभरी है। इस बात की पुष्टि लोकसभा चुनाव के नतीजे ने भी की। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में चार सीट जीत कर पूरे देश को चौंका दिया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी के अंदर काफी उथल पुथल भी हुई है। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी है। नेताओं के बीच भी भारी गुटबाजी है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के चार में से तीन सांसद पार्टी के साथ नहीं है। पार्टी में स्थानीय नेतृत्व नहीं है। यही वजह है कि केजरीवाल ने प्रचार की कमान अपने हाथ में ले रखी है। इतना ही नहीं सांगठनिक कार्यों से जुड़ा सारा फैसला दिल्ली से आए नेता लेते हैं। समझने वाली बात यह है कि हर पार्टी के अंदर इस तरह की खेमेबाजी होती है। पावर के लिए संघर्ष होता है। यह कोई नई बात नहीं है। हर पार्टी को इस विरोधाभास से गुजरना होता है।
-राजेश बोरकर