17-Aug-2016 06:19 AM
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गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स बिल यानि जीएसटी बिल दोनों सदनों में पास होने के बाद देश नए टैक्स युग की दहलीज पर खड़ा है। सरकार का दावा है कि इससे बड़ा बदलाव आएगा और भारत एक समान मार्केट में बदल जाएगा। राज्यों के बीच टैक्स का अंतर खत्म होगा। सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और इससे टैक्स चोरी में भी कमी आएगी। इसे लागू होने के बाद हर समान और सेवा पर सिर्फ एक टैक्स लगेगा। यानि वैट, एक्साइज और सर्विस टैक्स की जगह एक ही टैक्स लगेगा। फिलहाल कई राज्यों में मिलने वाली एक ही सामान पर अलग-अलग टैक्स लगता है।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स बिल यानि जीएसटी बिल की हालत उस रेसलर की तरह रही है जो बार-बार राज्यसभा की रिंग में पटखनी खाता रहा और आखिरकार सालों के बाद ही सही, लेकिन उसने मैच जीत ही लिया। लेकिन अभी तो बस अंत की शुरुआत है। यानि रेसलर ने पहला मैच जीता है और फाइनल तक पहुंचने और पदक जीतने का सफर अभी बाकी है। दरअसल फाइनल तक पहुंचने के लिए अभी जीएसटी को कई और मकाम हासिल करने होंगे। बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं की रजामंदी हासिल करनी होगी। हालांकि इसकी भी शुरूआत अच्छी हो गई है और असम की विधानसभा में इसे पारित कर दिया गया है। आखिर में बिल राष्ट्रपति के पास जाएगा उनकी मंज़ूरी के लिए।
राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद शुरू होगी बिल को अमलीजामा पहनाने यानि उसे लागू करने की कड़ी मशक्कत। दरअसल जीएसटी एक ऐसा बिल है, जो पूरे देश के टैक्स सिस्टम को एक धागे में पिरो देगा। इसलिए केन्द्र और राज्य, दोनों को साथ मिलकर एक साथ बिल को लागू करने की दिशा में काम करना होगा। सरकार चाहती है कि बिल को 1 अप्रैल 2017 से लागू कर दिया जाए जिसके लिए ये काम बहुत तेजी से करना होगा। सरकार को 60 दिन के अंदर जीएसटी काउंसिल का गठन करना होगा जो टैक्स की दर तय करने के साथ कई अहम मुद्दों पर इस बिल की रूपरेखा तय कर देगी। हालांकि टैक्स की दर तय करने के साथ-साथ कई और कदम तेजी से बढ़ाने होंगे अगर बिल को 1 अप्रैल 2017 से लागू करना है। ऐसे में तीन नए कानून बनाए जाएंगे। पहला सेंट्रल जीएसटी, इंटिग्रेटेड जीएसटी और स्टेट जीएसटी बिल, दूसरा सेंट्रल जीएसटी और इंटिग्रेटेड जीएसटी को संसद से पास कराना होगा और तीसरा स्टेट जीएसटी बिल के लिए 29 राज्यों की रजामंदी की जरूरत पड़ेगी।
बहरहाल, कानून बनाने, लाने और पास कराने से अलग जीएसटी को मुकम्मल तौर पर लागू कर देने की एक चुनौती तकनीकी तौर पर भी है। सरकार को जीएसटी नेटवर्क की जरूरत पड़ेगी जिससे टैक्स देने वालों के केन्द्र और राज्य दोनों के डेटाबेस जुड़े होंगे। इसके जरिए बिना किसी परेशानी के टैक्स वसूली का हिसाब रखा जा सकेगा और राज्यों को उनके हिस्से का टैक्स मिलता रहेगा। हालांकि सरकार ने इसकी तैयारी बिल के पास होने के पहले ही शुरू कर दी थी। साल 2013 में ही जीएसटीएन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना दी गई थी जो तकनीकी पक्ष पर काम कर रही है। इसके अलावा बीते साल ही इंफोसिस कंपनी 1380 करोड़ रुपए का कॉन्ट्रैक्ट दे दिया गया था जो नेटवर्क तैयार करने और तकनीकी पहलुओं को सक्षम बनाने के साथ-साथ पांच साल तक देखरेख का भी काम संभालेगी।
यानी मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि जीएसटी बिल की सांसे तभी चलनी शुरू होंगी जब ये सारे काम एक साथ, सही समय पर और एक राय के साथ पूरे हों। हालांकि अब भी माना जा रहा है कि जीएसटी बिल का दिल कहे जाने वाले टैक्स की दर को लेकर तकरार की स्थिति बन सकती है लेकिन अगर सरकार मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यन और राज्यों के वित्तमंत्रियों की एम्पावर्ड कमिटी की सिफारिशों को सुनती दिखी तो टैक्स की दर 18 फीसदी के आसपास ही रह सकती है और ऐसे में बिल को और ज्यादा पटखनी खाने और दांव पेंच से गुजरने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
ऐसे में राजस्व सचिव का यह बयान बिलकुल भी गलत नहीं है कि ये तो अंत की शुरुआत है। और सरकार को इस शुरुआत को अंत तक पहुंचाने के लिए अभी अपनी कोशिशों की गाड़ी के टैंक को मेहनत और सियासी सूझबूझ के पेट्रोल से फुल रखना होगा।
जीएसटी काउंसिल के लिए नौकरशाही का नया ढांचा केंद्र और राज्य में बनेगा। मसलन केंद्र में प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर ऑफ सेंट्रल जीएसटी जैसे पद होंगे तो राज्यों में स्टेट जीएसटी कमिश्नर होगा। इसके लिए अधिकारियों का प्रशिक्षण शुरू भी हो चुका है। केंद्र सरकार को दो जीएसटी कानून बनाने हैं। सेंट्रल जीएसटी और इंटर स्टेट जीएसटी। राज्य सरकारों को अपने-अपने यहां स्टेट जीएसटी कानून पास करवाना होगा। लेकिन उससे पहले इन तीनों कानूनों के ड्राफ्ट पर जीएसटी काउंसिल में चर्चा होगी। जीएसटी काउंसिल में किसी मुद्दे को तीन चौथाई मतों से ही पास कराया जा सकेगा। दो तिहाई मतदान का अधिकार राज्यों को दिया गया है। एक तिहाई मतदान का अधिकार केंद्र के पास रहेगा। बिना दोनों की व्यापक सहमति के जीएसटी काउंसिल में कोई प्रस्ताव पास नहीं हो सकेगा। केंद्र का राज्यों पर वीटो होगा और राज्यों का केंद्र पर।
उल्लेखनीय है कि जीएसटी 150 देशों में लागू हो चुका है। लेकिन रेट अलग-अलग हैं। जापान में पांच, सिंगापुर में सात, जर्मनी में 19, फ्रांस में 19.6, स्वीडन में 25, ऑस्ट्रेलिया में 10, कनाडा में पांच, न्यूजीलैंड में एक और पाकिस्तान में 18 तक है। यह एक फैक्ट है कि पूरी दुनिया में जीएसटी लागू करने के बाद हुए चुनावों में कोई भी सरकार दोबारा नहीं चुनी गई है। शुरुआती वर्षों में कुछ चीजें महंगी हो जाती हैं। इसका खमियाजा सरकार को भुगतना पड़ता है। चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर अरविंद सुब्रमणियन की समिति ने 18 फीसदी रेवेन्यू न्यूट्रल रेट की सिफारिश की है। यानी इस पर सरकार का रेवेन्यू न बढ़ेगा न घटेगा। इसकी दो वजहें हैं। पहली बहुत सी चीजों पर अभी कम टैक्स लगता है वह बढ़ जाएगा। दूसरी बहुत से कारोबारी सेल्स कम दिखाते हैं। जीएसटी में हर लेन-देन की ऑनलाइन एंट्री होगी। इससे चोरी मुश्किल हो जाएगी। कॉमन पोर्टल जीएसटी नेटवर्क पर जाना होगा। इस पर सिर्फ एक बार रजिस्ट्रेशन कराना होगा। रजिस्ट्रेशन के लिए पैन जरूरी है। पैन के आधार पर यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर दिया जाएगा। यही नंबर टैक्स जमा करने रिटर्न भरने तक काम आएगा। सारे टैक्स एक ही जगह जमा होंगे। इसके लिए बैंक में चालान जमा कराना होगा और डिटेल इस पोर्टल पर डालनी होगी। टैक्स रिटर्न भरने के लिए भी इसी पोर्टल पर आना होगा। टैक्स भरने में कोई दिक्कत ना आए, इसके लिए बड़ी संख्या में निजी एजेंसियों के जीएसटी सुविधा प्रोवाइडर अप्वाइंट हो रहे हैं। सरकार का दावा है कि जीएसटी लागू होने के बाद ग्रोथ रेट में 2 प्रतिशत का इजाफा होगा।
क्या जीएसटी से टैक्स की
चोरी रुक जाएगी?
भारत में केंद्र से लेकर राज्यों में सरकार भले ही अलग-अलग दलों की हो मगर आर्थिक नीतियां कमोबेश एक जैसी ही हैं। यह बदलाव आम उपभोक्ता को प्रभावित करने के साथ-साथ बड़ी कंपनियों से लेकर गांव कस्बों में चल रहे छोटे कारखाने और उत्पादों को भी प्रभावित करेगा। उससे कहीं ज्यादा केंद्र और राज्य में कर वसूली का जो मौजूदा ढांचा है उसे भी बदल देगा। जितनी उलझन आम दुकानदार को आएगी, उतनी ही परेशानी बड़े-बड़े कर अधिकारियों को भी आ सकती है। लेकिन इन सबके इतर यह सवाल उठ रहा है कि क्या जीएसटी लागू होने से टैक्स चोरी रुक पाएगी। क्योंकि देश में टैक्स चोरी सबसे बड़ी समस्या है।
जीएसटी का आम आदमी पर असर
जीएसटी लागू होने के बाद बहुत सी चीजे जहां सस्ती होंगी वहीं कुछ महंगी भी हो जाएंगी। जीएसटी से केंद्र और राज्यों के 20 से ज्यादा इनडायरेक्ट टैक्स के बदले लगाया जा रहा है। जीएसटी के बाद एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम, वैट, सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन कर, ऑक्ट्रॉय एंड एंट्री टैक्स, लग्जरी जैसे टैक्स खत्म होंगे। टैक्सों का जाल और रेट कम होगा। अभी हम अलग-अलग सामान पर 30 से 35 प्रतिश्त टैक्स देते हैं। जीएसटी में 17 या 18 फीसदी टैक्स लगेगा। राज्यों में सभी सामान एक कीमत पर मिलेगा। अभी एक ही चीज दो राज्यों में अलग-अलग दाम पर बिकती है। क्योंकि राज्य अपने हिसाब से टैक्स लगाते हैं।
वर्तमान समय में लेन-देन पर वैट और सर्विस टैक्स नहीं। इसी तरह घर खरीदना हो या फिर ऐसी कोई दूसरी लेनदेन करनी हो। जहां वैट और सर्विस टैक्स दोनों लगते हैं। जीएसटी लगने के बाद ये सस्ता हो सकता है। रेस्तरां का बिल इसलिए कम होगा। क्योंकि अभी वैट और सेल्स टैक्स हर राज्यों के अलग-अलग हैं। छह प्रतिशत सर्विस टैक्स के बाद बिल के 40 हिस्से पर 15 प्रतिशत दूसरे कर लगते हैं। जीएसटी के तहत सिर्फ एक टैक्स लगेगा।
एयरकंडीशन, माइक्रोवेब ओवन, फ्रिज, वाशिंग मशीन सस्ती हागी। अभी 125 फीसदी एक्साइज और 145 फीसद वैट लगता है। जीएसटी के बाद 18 फीसद टैक्स लगेगा। माल ढुलाई 20 प्रतिशत सस्ती होगी। फायदा आम लोगों से लेकर लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री तक को। क्योंकि जीएसटी के बाद उन्हें करीब 18 टैक्स नहीं भरने होंगे। टैक्स भरने की प्रॉसेस भी आसान होगी। चाय-कॉफी डिब्बा बंद फूड प्रोडक्ट 12 प्रतिशत तक महंगे होंगे। चाय-कॉफी जैसे इन प्रोडक्ट्स पर अभी ड्यूटी नहीं लगती। अब 12 प्रतिशत महंगे हो सकते हैं। मोबाइल बिल, क्रेडिट कार्ड का बिल या फिर ऐसी अन्य सेवाएं सब महंगी होंगी। अभी सर्विसेस पर 15 प्रतिशत टैक्स, 14 प्रतिशत सर्विस टैक्स, 05 प्रतिशत स्वच्छ भारत सेस, 05 प्रतिशत कृषि कल्याण सेस लगता है। जीएसटी होने पर ये 18 प्रतिशत हो सकता है। अभी डिस्काउंट के बाद की कीमत पर टैक्स लगता है। जीएसटी में एमआरपी पर टैक्स लगेगा। कंपनी 10,000 रुपए का सामान हमें 5000 रुपए में देती है तो अभी 600 रुपए टैक्स लगता है। पर जीएसटी के बाद 1200 रुपए टैक्स लगेगा।
जेम्स एंड ज्वैलरी महंगी हो सकती है। इस पर अभी 3 फीसदी ड्यूटी लगती है। जीएसटी के बाद 12 प्रतिशत लेगी। रेडिमेड गारमेंट भी महंगे हो सकते हैं क्योंकि अभी इन पर 4.5 प्रतिशत का स्टेट वैट लगता है। इसके बाद 12 फीसदी टैक्स लगेगा। जीएसटी के कारण शुरू के तीन साल महंगाई बढ़ेगी। मलेशिया में 2015 में जीएसटी आने के बाद से महंगाई दर 25 फीसदी तक बढ़ी है। अभी रोजमर्रा की सर्विसेस पर 15 प्रतिशत सर्विस टैक्स देते हैं। अब 18 होगी। यानी 3 फीसदी महंगाई बढ़ेगी। पेट्रोल,डीजल,गैस जीएसटी में नहीं होंगे। जीएसटी 18 प्रतिशत होने पर सरकार को नुकसान नहीं होगा।
-दिल्ली से रेणु आगाल