17-Aug-2016 06:33 AM
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मप्र में ढाई साल पहले ही सत्ता का संग्राम शुरू हो गया है। मिशन 2018 के लिए कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता और विधायकों की मैदानी रिपोर्ट ने संघ और संगठन की नींद उड़ा दी है। उधर, विधानसभा के मानसून सत्र में जिस तरह भाजपा के विधायकों का असंतोष सरकार और अफसरशाही के खिलाफ देखने को मिला उससे सरकार के भी कान खड़े हो गए हैं। पार्टी में बढ़ रही आपसी खाई और विधायकों की क्षेत्र में निष्क्रियता की भरपाई अब कैसे की जाए इस पर संघ ने काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए संघ सबसे पहले विधायकों के ढाई साल के कामकाज की रिपोर्ट तैयार कर रहा है।
मप्र में तीसरी बार सत्ता में आई भाजपा में अब कार्यकर्ताओं की निराशा की खबरों ने सत्ता-संगठन के साथ पार्टी की मातृ संस्था संघ को भी चिंतित कर दिया है। पिछले महीने 3 नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों को भी गंभीरता से लिया गया है। संघ ने अनुषांगिक संगठनों के जरिए जो फीडबैक लिया है, उसमें स्पष्ट हुआ कि यही स्थिति रही तो भाजपा के लिए अगला विधानसभा चुनाव (मिशन 2018) बड़ी चुनौती साबित होगा। बताया जाता है कि प्रदेश में जहां एक तरफ विधायक नौकरशाही से परेशान हैं, वहीं संगठन और संघ विधायकों की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है। ऐसे में प्रदेश में कार्यकर्ताओं में बढ़ता असंतोष व सरकार की कार्यप्रणाली पर उठते सवालों के बीच अब आगामी चुनाव को लेकर संगठन के साथ संघ भी अभी से रणनीति बनाने सक्रिय हो गया है। यही वजह है कि संघ ने भोपाल में सत्ता व संगठन की बैठक लेकर उन्हें चेता दिया है और आने वाले दिनों में भी लगातार बैठकें करके संघ विधायकों को मैदानी रिपोर्ट से अवगत कराएगा।
बताया जाता है कि संघ को अपने स्वयंसेवकों से मिली रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के 164 विधायकों में से 96 विधायकों की परफॉर्मेंस खराब है। ऐसे में संघ ने भाजपा संगठन को विधायकों के कामकाज पर नजर रखने को कहा है। साथ ही विधायकों से उनके कामकाज की रिपोर्ट तैयार करने के लिए सवालों के जवाब मांगे जाने की तैयारी है। इसके लिए एक प्रश्नावली तैयार की गई है। इसके साथ ही विधायकों से कामकाज को लेकर आने वाली परेशानियों के बारे में भी पूछा जा रहा है। जिससे की व्यवस्थाओं में सुधार किया जा सके। विधायकों से पूछा जा रहा है कि उन्हें काम के दौरान संगठन, प्रशासन एवं मीडिया के स्तर पर किस तरह की परेशानियां हो रही हैं। दरअसल यह पूरी कवायद संगठन द्वारा विधायकों के लिए बेहतर कार्यप्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से की जा रही है। इसके लिए पहले खुद विधायकों से जानकारी हासिल की जा रही है। उसके बाद उन्हें प्रशिक्षण शिविर के जरिए संगठन समझाइश देगा कि जनप्रतिनिधि की लोकप्रियता बनी रहे उसके लिए टिप्स भी दिए जाएंगे, साथ ही यह समझाइश भी दी जाएगी कि अगले चुनाव को ज्यादा दिन नहीं बचे इसलिए अभी से जनता के बीच छवि सुधारो अभियान में जुट जाए।
पार्टी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के अनुसार, प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत ने विधायकों के कामकाज में सुधार लाने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। इसके बाद पार्टी ने इस पर विचार विमर्श कर विधायकों के लिए अलग से प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने का निर्णय लिया है। विधायकों से यह फीडबैक भी लिया जाएगा कि दैनंदिनी कामकाज के दौरान उन्हें क्या-क्या परेशानी है। साथ ही यह भी जानकारी ली जा रही है कि विधायकों का अपने प्रतिनिधियों के कामकाज पर निगरानी का क्या तरीका है। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि यह पूरी कवायद पार्टी की आंतरिक एवं गोपनीय प्रक्रिया है। प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से विधायकों के कार्यालय की व्यवस्थाएं एवं समस्याओं के निराकरण की प्रक्रिया आदि पर चर्चा करना पार्टी का धर्म है।
सूत्रों का दावा है कि संघ की नजर उन विधायकों पर भी बनी हुई है, जिनकी निष्क्रियता का फीडबैक विभाग प्रचारक और वरिष्ठ स्वयंसेवक दे रहे हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि सतत जनसंपर्क, जनसंवाद न करने वाले ऐसे कुछ विधायक अपनी लापरवाही का दोष सरकार और संगठन पर मढ़ते हुए खुद ही दुष्प्रचार में जुटे हुए हैं। संघ ने ऐसे विधायकों को चिन्हित करने के साथ-साथ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हें आगाह भी किया है। संघ ऐसे नेताओं को दोबारा टिकट देने के पक्ष में नहीं है, जिनके खिलाफ क्षेत्र में जनाक्रोश है, क्योंंकि पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ सकता है।
सूत्र बताते हैं कि संघ मिशन-2018 के लिए ऐसे पदाधिकारियों की टीम चाहता है, जो संघ के क्षेत्रीय पदाधिकारियों और स्वयंसेवकों से तालमेल बनाकर चल सके। इसके अलावा संभागीय संगठन मंत्रियों की भूमिका भी संघ के अनुकूल बनाने की कवायद की जा रही है। दरअसल, संघ कतिपय संगठन मंत्रियों की कार्यशैली से खफा बताया जाता है। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले काफी कुछ फेरबदल किए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है। उधर खबर है कि केंद्र में मजबूत संगठन का असर अब प्रदेश पर भी धीरे-धीरे दिखने लगा है। राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए केन्द्र ने धीरे-धीरे सत्ता और संगठन के सूत्र अपने हाथों में लेना शुरू कर दिए हैं। केन्द्र हाल ही में किए गए मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर उपजे अंसतोष और प्रदेश के नेताओं की मनमर्जी को लेकर राज्य की सत्ता और संगठन से नाराज है। इसका असर अब प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की सात महीने से अटक रही नई टीम पर भी पडऩा तय है। शायद यही वजह है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश के उम्रदराज नेताओं की सूची तलब करने के बाद प्रदेश नेतृत्व को साफ कह दिया है कि वह क्षेत्रीय, जातिगत समीकरणों के साथ-साथ नए चेहरों पर भी ध्यान दे। भाजपा के अंदरखाने की मानें, तो दिल्ली के दंगल के बाद शिवराज कैबिनेट से हुई वरिष्ठ मंत्री बाबूलाल गौर और सरताज सिंह की विदाई के बाद भाजपा प्रमुख चौहान की टीम के गठन के लिए दिल्ली ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सरकार और संगठन के समन्वय के बाद खुद अंतिम फैसला लेने के संकेत दिए हैं। चौहान की टीम से विशेषकर, लालबत्ती से नवाजे गए ज्यादातर पदाधिकारी संगठन के दायित्व से मुक्त किए जाएंगे। दिल्ली और संघ ने दो-टूक कहा है कि चेहरे विशेष को तवज्जों देने के बजाय मिशन-2018 और मिशन-2019 के लिहाज से जीत तय करने वाले नए और पुराने चेहरे ही संगठन में जगह दी जाएं। खास पहलू यह है कि इस बार दिल्ली की निगाह खासतौर पर आदिवासी और अनुसूचित जाति वोट बैंक पर बनी हुई है। इसके अलावा विधानसभा की वे सीटें, जहां भाजपा कमजोर है, उन क्षेत्रों से संगठन में प्रतिनिधित्व दिए जाने पर खासा जोर है।
इधर पार्टी में पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का एक वर्ग भी नाखूश है। भाजपा की विचारधारा और संगठन को मजबूत करने में भले ही हजारों कार्यकर्ता दिन रात मेहनत करते हो, लेकिन उन्हें इसका प्रतिफल सरकार और संगठन देने में हमेशा से ही कंजूस साबित हो रहा है, लिहाजा संगठन और सत्ता को लेकर उनमें अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है। प्रदेश में संगठन की कमान संभालने वाले नंद कुमार सिंह चौहान इस मामले में कुछ ज्यादा ही उदासीन है यही वजह है कि उनके चार साल के कार्यकाल में प्रदेश कार्यकारिणी में सिर्फ चार नए चेहरों को ही मौका मिल सका है। वह भी वे चार लोग हैं जो सत्ता और संगठन के प्रभावशाली लोगों के करीब हैं। वास्तविकता यह है कि भाजपा में चार साल पुरानी ही कार्यकारिणी काम कर रही है। नंदकुमार सिंह चौहान ने 16 दिसंबर 2012 को दोबारा कमान संभाली थी। इसके साथ ही उन्होंने अपनी टीम का गठन किया था। डेढ़ साल से ज्यादा समय तक वे प्रदेशाध्यक्ष रहे, लेकिन उनकी पुरानी टीम आज तक काम कर रही है। लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद नंदकुमार सिंह चौहान ने कमान संभाली। डेढ़ साल से प्रतीक्षारत बदलाव उन्होंने किया, लेकिन बदलाव से ज्यादा यह एडजस्टमेंट साबित हुआ। प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल हुए चार नेताओं की जगह उन्होंने नए चेहरों को कार्यकारिणी में शामिल कर दिया। इसके बाद तो कार्यकारिणी में ऐसा ब्रेक लगा कि चौहान को दोबारा अध्यक्ष बने सात महीने हो गए हैं, लेकिन एक भी नया चेहरा कार्यकारिणी में शामिल नहीं हो सका है। प्रदेश कार्यकारिणी में बदलाव को लेकर उठापटक का ही परिणाम है कि पार्टी में बैठकों की संख्या भी काफी कम हो गई है।
सोशल मीडिया पर जोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद सोशल मीडिया में सक्रिय हैं। वे लगातार ट्विटर हैंडल के जरिए सरकार और संगठन की रीति, नीति, कार्यों, योजनाओं से अवगत करा रहे हैं। फेसबुक अकाउंट पर भी दिग्गजों की सक्रियता बनी हुई है। वॉट्सएप के जरिए भी कुछ नेता अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं, लेकिन प्रदेश संगठन के जिम्मेदार पदाधिकारी सीधे तौर पर इन जनसंचार माध्यमों से कन्नी काटे हुए हैं। दिल्ली का जोर सोशल मीडिया के दौर में हाइटेक युवाओं को भी संगठन में मौका दिए जाने पर है।
ब्रांडिंग में फेल क्यों
प्रदेश के विधायकों की निष्क्रियता उस समय सामनी आई जब सरकार और संगठन ने केंद्र की मोदी सरकार की ब्रांडिंग एवं केंद्र की योजनाओं के प्रचार-प्रसार की रिपोर्ट देखी। बताया जाता है केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाने में जहां कई विधायकों एवं सांसदों ग्रामिण क्षेत्रों में नहीं गए वहीं भाजपा मुख्यालय में आयोजित प्रादेशिक कार्यशाला में भी 24 विधायक गायब रहे। जबकि पार्टी ने सभी विधायक-सासदों को बुलाया था। अब पार्टी यह रिपोर्ट तैयार कर रही है की आखिरकार माननीयों ने ऐसा क्यों किया। बताया जाता है कि ग्रामोदय से भारत उदय अभियान के दौरान कुछ मंत्रियों व जनप्रतिनिधियों को जिस तरह आम आदमी के आक्रोश का सामना करना पड़ा उससे कई विधायक क्षेत्र में जाने को तैयार नहीं हुए।
विधायकों की नाराजगी की वजह तलाश रहे हैं मुख्यमंत्री
प्रदेश में मंत्रिमण्डल विस्तार और फिर विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों की नाराजगी खुलकर सामने आने के बाद मुख्यमंत्री भी सचेत हो गए हैं। यही वजह है कि विधानसभा का सत्र स्थगित होने के बाद पार्टी विधायकों से अकेले में मिलकर उनकी नाराजगी की वजह जानने के प्रयास में लगे हैं। इस दौरान विधायकों से उनके कामों में आने वाली कठिनाई और जिला प्रशासन से मिलने वाले सहयोग के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। प्रदेश में लगातार तीसरी बार पार्टी की सरकार बनने के बाद भी अफसरशाही सरकार पर हावी है। जिसकी वजह से विधायकों, पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो रहे हैं। भाजपा के संगठन महामंत्री ने अनौपचारिक कैबिनेट में भी इसकी ओर इशारा किया था। अब मुख्यमंत्री विधायकों की नाराजगी की वजह तलाश रहे हैं।
अपने विधायकों, पदाधिकारियों के कामकाज की समीक्षा तो हम बराबर करते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। हमारी हमेशा कोशिश रहती है कि हमारी सरकार और पदाधिकारी जनता के विश्वास पर खरे उतरें। मुख्यमंत्री शिवराज जी के लिए तो जनता ही सब कुछ है और वे जनता के प्रिय हैं। तभी तो प्रदेश में भाजपा लगातार चौथी बार सरकार बनाने का दावा कर रही है।
नंदकुमार सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष
-भोपाल से अजयधीर