17-Aug-2016 06:02 AM
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मप्र में एक कहावत है तालों में ताल भोपाल का ताल बाकी सब तलैया, अर्थात यदि सही अर्थों में तालाब कोई है तो वह है भोपाल का तालाब। भोपाल की यह विशालकाय जल संरचना को अंग्रेजी में अपर लेक और हिन्दी में बड़ा तालाब कहा जाता है। एशिया की सबसे बड़ी यह कृत्रिम झील भोपाल की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को यह झील लगभग तीस मिलियन गैलन पानी रोज देती है। लेकिन रसूखदारों (नेता, अफसर) की तथाकथित काली कमाई से निर्मित चिरायु अस्पताल को डूबने से बचाने के लिए अफसरों ने भोपाल की जीवन रेखा कहे जाने वाले इस तालाब को रिटेनिंग वॉल (दीवार) बनाकर घेरने का षड्यंत्र किया है। खैर मनाईए की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजर इस पर पड़ गई और फिलहाल बड़े तालाब की हत्या की कोशिश टल गई है।
उल्लेखनीय है कि बड़ा तालाब के पूर्वी छोर पर भोपाल शहर बसा हुआ है, जबकि इसके दक्षिण में वन विहार नेशनल पार्क है, इसके पश्चिमी और उत्तरी छोर पर कुछ मानवीय बसाहट है जिसमें से अधिकतर इलाका खेतों वाला है। इस झील का कुल क्षेत्रफल 31 वर्ग किलोमीटर है और इसमें लगभग 361 वर्ग किमी इलाके से पानी एकत्रित किया जाता है। लेकिन इस तालाब की हद में आने वाले क्षेत्र पर रसूखदारों की हमेशा से नजर रही है। कई नेताओं और अफसरों के फार्महाउस भी बड़े तालाब के डूब क्षेत्र में आते हैं। लेकिन चिरायु अस्पताल को बरसात के पानी से बचाने के लिए बढ़े तालाब को दीवार बनाकर घेरने का षड्यंत्र किया जा रहा था। जिस पर अभी तक करीब 8 करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं। अब मुख्यमंत्री ने इस दीवार को तोडऩे का निर्देश दिया है। ऐसे में इस पर खर्च हुए 8 करोड़ रूपए की भरपाई कैसे की जाएगी?
पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सी पांडेय कहते हैं कि बड़े तालाब किनारे बनाई गई दीवार असल में रिटेनिंगवॉल नहीं बल्कि पार्टीशन वॉल है। जिसने बैरागढ़ से खानूगांव तक तालाब को जगह-जगह कई हिस्सों में बांट दिया है। इस दीवार का तालाब के लिए कोई उपयोग नहीं है। यह दीवार तालाब किनारे अतिक्रमणों को बचाने के षड्यंत्र का हिस्सा है। नगर निगम के सूत्रों का कहना है कि चिरायु अस्पताल के लिए अधिकारियों ने बड़े तालाब की सीमाओं से खिलवाड़ किया है। दरअसल बड़े तालाब के फुल टैंक लेबल की मुनारों का सत्यापन शुरू होने से पहले भैंसाखेड़ी स्थित चिरायु हॉस्पिटल के पास लगीं 1 से 18 नंबर तक की 16 मुनारें गायब हैं। चिरायु हॉस्पिटल की दीवार के पास दो मुनारें पानी में डूबी हुई हैं, जो सड़क से नजर आती हैं। इससे स्पष्ट है कि तालाब के डूब क्षेत्र को खत्म कर चिरायु हॉस्पिटल कैंपस में हो रहे निर्माण की हकीकत को छिपाया गया है। इंदौर रोड पर कैम्पियन स्कूल से लगभग 100 मीटर पहले सड़क के दूसरी ओर 19 नंबर की मुनार से आगे की सभी मुनारें मौजूद हैं।
परिश्रम समाज एवं कल्याण संस्था के तरुण गुप्ता कहते हैं कि जिस स्थान पर चिरायु अस्पताल बनी है, वह बड़े तालाब का हिस्सा है। जमीन को राजस्व रिकार्डों में हेर-फेर कर आवंटित किया गया है। एक तरह से जमीन आवंटन में नियमों का ध्यान नहीं रखा गया है। अस्पताल की स्थापना से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। उधर चिरायु अस्पताल के अधिवक्ता अजय गुप्ता किसी भी स्थान पर पानी भर जाने से वह तालाब का हिस्सा नहीं हो जाता। चिरायु अस्पताल को आवंटित की गई जमीन प्रक्रिया पूरी तरह वैधानिक रही है तथा पारदर्शिता का भी ख्याल रखा गया है। पर्यावरण व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मापदंडों का पूरी तरह से पालन किया जा रहा है। राजस्व तथा अन्य शासकीय रिकार्ड इसकी पुष्टि करते हैं। वहीं जनहित याचिकाकर्ता आरके महाले कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा है कि वह सारे तथ्यों को देखकर निर्णय दे। हमने याचिका में कहा है कि आखिर सरकार ने कैचमेट एरिया में अस्पताल को जमीन कैसे आवंटित की है। वह भी कौडिय़ों के भाव। इस मामले में 14 जुलाई को सुनवाई हुई है और मामला सुरक्षित रखा गया है। वह कहते हैं कि नगर निगम और प्रदेश सरकार के अधिकारी रसूखदारों के कहने पर इस अस्पताल के लिए बड़े तालाब की हदबंदी करने पर तुले हैं।
यचिकाकर्ता तरुण गुप्ता कहते हैं कि चिरायु मेडिकल कॉलेज और अस्पताल द्वारा बड़े तालाब के चीरहरण की कहानी सुनियोजित तरीके से तैयार की गई है 19 मई 2008 चिरायु ने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलने के लिए 32 एकड़ डूब क्षेत्र की भूमि सरकार के समक्ष आवेदन प्रस्तुत। 25 मई 2008 चिरायु ने कलेक्टर कार्यालय में डूब क्षेत्र की भूमि आवंटन राशि 5000 रुपए जमा की इसी दिन नजूल सर्वेयर का प्रतिवेदन तहसीलदार के माध्यम से कलेक्ट्रेट एवं कलेक्टर द्वारा स्वीकृति और फिर वहां से कमिश्नर के सामने प्रस्तुत। 29 मई 2008 कमिश्नर कार्यालय से चिरायु की अनुमोदित फाइल प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण कार्यालय पहुंची। इसी दिन प्रमुख सचिव के अनुमोदन के बाद डायरेक्टर टीएंडसीपी के सामने प्रकरण प्रस्तुत। 31 मई 2008 डायरेक्टर टीएंडसीपी का अभिमत, प्रमुख सचिव के समक्ष चिरायु अस्पताल को आवंटन के पूर्व भूमि का उपयोग बदलना अनिवार्य होगा। प्रमुख सचिव आवास पर्यावरण ने आनन फानन में इसी दिन आरक्षण कमेटी को गठित किया, गठित कमेटी ने भी उसी दिन बैठक में निर्णय लिया कि भूमि चिरायु को आरक्षित की जाती है। 24 जुलाई 2008 बगैर भूमि के उपयोग के परिवर्तित किए हुए चिरायु को डूब क्षेत्र की भूमि आवंटित करने की अनुशंसा की जाती है। 30 अगस्त 2008 भूमि के उपयोग को परिवर्तित किए बिना राजस्व विभाग द्वारा तालाब के डूब क्षेत्र को चिरायु अस्पताल को आवंटन के आदेश जारी। 9 सितंबर 2008 तालाब के डूब क्षेत्र की जमीन को लीज पर चिरायु अस्पताल को सौंपी। भूमि के उपयोग को परिवर्तित किए बिना, ताकि लीज डीड में लगने वाला शुल्क बचाया जा सके। इसी दिन लैंड यूज चेंज का आवेदन प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण के समक्ष प्रस्तुत। और साथ ही टीएंडसीपी से भी अभिमत मांगा गया। 18 सितंबर 2008 टीएंडसीपी ने लैंड यूज परिवर्तन का अभिमत दिया। 22 सितंबर 2008 आपत्तियों के लिए गुमनाम अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित किया गया।
6 अक्टूबर 2008 लैंड यूज परिवर्तन के संबंध में आपत्तियां दर्ज। यह भूमि कृषि नहीं तालाब का हिस्सा है कृपया इसे आवंटित कर तालाब का दायरा छोटा न किया जाए।(मास्टर प्लान 2005 के अनुसार एवं पीएचई के तालाब क्षेत्र के खसरे और वास्तविकता के आधार पर) 25 अक्टूबर 2008 आपत्तियों के आधार पर सीपीए और अन्य विभागों से अपना मत मांगा गया। 27 अक्टूबर 2008 सीपीए फॉरेस्ट की रिपोर्ट में सरोवर हमारी धरोहर एवं भोज वैट लैण्ड योजना के तहत भैंसाखेड़ी के डूब क्षेत्र में 1 लाख 17 हजार से भी ज्यादा पौधे रोपित किए गए हैं... साथ ही भूमि खसरा नंबर 71,73,76 का विशेष उल्लेख किया गया... कि इस भूमि पर 4600 से अधिक वृक्ष होने की बात कही गई। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के वन क्षेत्र की परिभाषा और उसके उपांतरण के निर्णय को भी संलग्न किया तथा अपना मत देते हुए आग्रह किया भूमि का आवंटन अनुचित ,नियम विरूद्ध एवं सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना होगी। 28 जनवरी 2009 प्रशासन द्वारा नोटिफिकेशन जारी एवं 30 जनवरी 2009 को गजट में प्रकाशित। 13 फरवरी 2009 चिरायु द्वारा विकास कार्य के लिएआवेदन। पांच दिन बाद 18 फरवरी 09 को टीएंड सीपी की स्वीकृति एवं अनुमोदन। 19 नवंबर 2010 प्रमुख सचिव राजस्व की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि तत्कालीन नजूल मेंटनेंस सर्वेयर कदीर खान, एसके शर्मा तत्कालीन तहसीलदार श्री रामतिवारी, मकसूद अहमद, समेत सभी लोगों ने मिलजुल कर अनियमितता बरती है। राजस्व अमले ने वास्तविकता से परे जाकर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसके आधार पर जमीन को चिरायु चैरिटेबिल ट्रस्ट को आवंटित कर दिया गया...इस रिपोर्ट में सभी लोगों के खिलाफ मध्यप्रदेश सिविल सेवा वर्गीकरण और नियंत्रण नियम के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही किए जाने की अनुशंसा की साथ ही जमीन के आवंटन पर भी पुर्नविचार किए जाने की आग्रह किया।
30 नवंबर 2010 को राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने प्रमुख सचिव रेवेन्यू की रिपोर्ट पर सहमति जताई और कादिर खान को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने की अनुशंसा की। टीएण्डसीपी के पत्र क्रमांक 2653 दिनांक 20 दिसंबर 2010 विषय तालाब के जल संरक्षण क्षेत्र में नियम विरूद्ध चिरायु अस्पताल अनाधिकृत निर्माण के संबंध में बिंदु क्रमांक 5 में स्वीकारा कि भूमि के आरक्षण तथा विकास अनुमति के समय कैचमेंट संबंधी परीक्षण नहीं किया गया। 2008 से ही माले फिर अनूप कुमार और फिर परिश्रम समाज कल्याण समिति द्वारा सम्बंधित 7 विभागों से सुचना के अधिकार के तहत जानकारी के लिए आवेदन प्रस्तुत किए गए किन्तु विभाग द्वारा आवेदन सूचनाए और अपतियों को निरस्त और अनसुना कर दिया गया। अंतत: 2012 में परिश्रम समाज कल्याण समिति ने जनहितयाचिका उच्च न्यायालय मे दर्ज करायी।
उसके बाद से लेकर आज तक इस अस्पताल और मेडिकल कॉलेज को बचाने के लिए तिकड़म पर तिकड़म किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में अस्पताल को बड़े तालाब के पानी से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए जहां रिटेनिंग वॉल बनाई जा रही थी वही भदभदा के गेट भी खोले जा रहे थे।
तालाब की जमीन
पर अस्पताल
चिरायु अस्पताल भोपाल के बड़े तालाब की डूब वाली जमीन पर तान दिया गया है। अस्पताल के संचालकगण रसूखदार लोग हैं, इसलिए नगर निगम ने कभी कोई आपत्ति नहीं की। इस अस्पताल को करोड़ों की जमीन कोडिय़ों के दाम दे दी गई। चिरायु मेडिकल कॉलेज हेतु जो भूमि (मास्टर प्लान 2005 के अनुसार एवं पीएचई के तालाब क्षेत्र के खसरे और वास्तविकता के आधार पर) खसरा नं. 71,73,76 के अंतर्गत आवंटित की गई, वह बड़े तालाब का अभिन्न अंग है एवं बिना इस तथ्य की पुष्टि किए शासन द्वारा आनन-फानन में 10 दिन के अंदर वर्ष 2008 में भूमि आवंटित कर दी गई। डूब क्षेत्र में लगभग 4600 वृक्ष लगे थे, जिस पर भी शासन ने कभी ध्यान नहीं दिया एवं ऐनकेन प्रकारेण भूमि का भू-उपयोग उपांतरित करते हुए भूमि अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज निर्माण हेतु स्वीकृत कर दी गई।
दस्तावेज गवाह हैं फर्जीवाड़े के
जिस खसरा नंबर 71,73,76 पर चिरायु अस्पताल और कॉलेज बना है वह दस्तावेजों में भी भोपाल तालाब का हिस्सा बताया जा रहा है। सीपीए भोपाल एवं कलेक्टर भोपाल के पास संरक्षित दस्तावेजों में बड़े तालाब के डूब क्षेत्र में आने वाले खसरा नंबरों की सूची एवं भोपाल मास्टर प्लान 2005 में इसका उल्लेख है कि उक्त खसरा नंबर बड़े तालाब का कैचमेट एरिया हैं। साथ ही 27 अक्टूबर 2008 सीपीए फॉरेस्ट की रिपोर्ट सरोवर हमारी धरोहर, 19 नवंबर 2010 प्रमुख सचिव राजस्व की जांच रिपोर्ट और टीएण्डसीपी के पत्र क्रमांक 2653 दि. 20 दिसंबर 2010 में भी खसरा नंबर 71,73,76 सीपीए, कलेक्टर एवं पीएचई के दस्तावेजों में सदैव बड़े तालाब के डूब क्षेत्र के रूप में दर्ज रहे हैं एवं वहां पर 4600 से ज्यादा वृक्ष आवंटन के दौरान खड़े हुये थे, जिनको अवैध रूप से बर्बरता से चिरायु संस्थान द्वारा रातों रात हटा दिया गया।
-भोपाल से रजनीकांत