किसकी कितनी दिल्ली?
17-Aug-2016 06:12 AM 1234808
इतिहास खुद को दोहराता हैÓ इस कहावत का एकदम ताजा उदाहरण यदि देखना चाहते हैं तो दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर जाएं। इसमें आप जैसे ही दिल्ली का इतिहास खोलते हैं तो एक पेज सामने आता है। इस पेज पर बायीं तरफ दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग की तस्वीर लगी है और दायीं तरफ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की। बीच में जो इतिहास दर्ज है उसकी शुरुआती पंक्तियां ही कहती हैं, एक ऐसा शहर जिसका जिक्र महाभारत में भी मिलता है। कौरवों और पांडवों के बीच इंद्रप्रस्थ नाम के इसी शहर के लिए महायुद्ध हुआ था।Ó यह पढ़ते ही आप इतिहास का खुद को दोहराना देख सकते हैं। दिल्ली को लेकर एक महायुद्ध आज भी जारी है। और यह उन्हीं दो लोगों के बीच है, जिनकी तस्वीरों के बीच वेबसाइट पर दिल्ली का इतिहास लिखा है। ये दो हस्तियां हैं दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) नजीब जंग और यहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। इन दोनों हस्तियों के बीच लंबे समय से जारी महायुद्ध में एक और अहम मोड़ आ गया है। दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच अधिकारों की लड़ाई पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायाधीश जयंत नंत की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार एलजी की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती। अदालत के मुताबिक एलजी दिल्ली सरकार के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। उसने यह भी कहा है कि एलजी अपने विवेक के आधार पर फैसला ले सकते हैं जबकि दिल्ली सरकार को कोई भी नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एलजी की सहमति लेनी होगी। इससे सकते में आई आम आदमी पार्टी का कहना है कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जंग लंबे समय से चल रही है। यह जंग मुख्य रूप से दो बिन्दुओं पर है। एक, दिल्ली में तैनात प्रशासनिक अधिकारियों के चयन, ट्रांसफर और पदोन्नति से संबधित अधिकार मुख्यमंत्री के पास हैं या उपराज्यपाल के। और दूसरा, दिल्ली सरकार का एंटी करप्शन ब्यूरो, दिल्ली पुलिस (जो कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आधीन है) के अधिकारियों पर कार्रवाई कर सकता है या नहीं। इस जंग की जड़ें यदि आप तलाशना चाहें तो आपको इतिहास में झांकना जरूरी हो जाता है। इतना जरूरी कि जब दिल्ली सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम से संपर्क किया तो उन्होंने भी दिल्ली का इतिहास ही खंगाला। गोपाल सुब्रमण्यम ने इस समस्या का समाधान कुल 281 पन्नों की रिपोर्ट में दिया है। यह रिपोर्ट दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर भी मौजूद है। इसमें उन्होंने दिल्ली के लगभग आठ सौ साल पुराने इतिहास का जिक्र किया है। उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच छिड़ी इस जंग को समझने के लिए यदि आप इतिहास में आठ सौ साल पीछे न भी जाना चाहें तो भी कम से कम भारत की आजादी तक तो जाना ही होगा। आजादी के बाद से दिल्ली के शासन-प्रशासन और उसके तौर-तरीकों में जो बदलाव समय-समय पर हुए हैं, उन्हीं में हालिया विवाद की जड़ें भी छिपी हुई हैं। अरविंद केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज का दर्जा दिलाकर अपने अधिकार को बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन केन्द्र सरकार केजरीवाल को शक्ति सम्पन्न बनाना नहीं चाहती है। क्योंकि केजरीवाल जिस तरह मोदी सरकार के प्रति आक्रामक रवैया अपनाए हैं, ऐसे में वे निरंकुश हो सकते हैं। अब देखना यह है कि दिल्ली की यह जंग कब तक चलती है और यह किसकी हो पाती है। नजीब जंग को अपना मोहरा बनाया भाजपा ने अरविंद केजरीवाल बनाम नजीब जंग की इस लड़ाई के कुछ राजनीतिक पहलू भी हैं। पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीतने के साथ ही भाजपा को राज्यों में भी एक-एक कर जीत हासिल हो रही थी। लेकिन दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी ने उन्हें बुरी तरह धूल चटा दी। भाजपा की मुख्यमंत्री पद की दावेदार किरण बेदी तक अपनी सीट नहीं बचा पाईं। ऐसे में फेसबुक पर एक भाजपा समर्थक ने टिप्पणी लिखी कि, मोदी जी से गुजारिश है कि अब किरण बेदी को दिल्ली का उपराज्यपाल नियुक्त करके अरविंद केजरीवाल का बॉस बना दीजिये।Ó मोदी चाहते तो ऐसा कर सकते थे लेकिन, कुछ लोगों के मुताबिक, इससे पूरे देश में संदेश जाता कि उन्होंने बदले की भावना से जनता के फैसले का सम्मान नहीं किया। नरेंद्र मोदी सरकार ने किसी और को भी शायद ऐसी ही वजहों से दिल्ली का उपराज्यपाल नियुक्त नहीं किया। जबकि नजीब जंग के अलावा पिछली सरकार के बनाए लगभग सभी राज्यपालों से उसने इस्तीफ़ा ले लिया था। कुछ लोगों के मुताबिक ऐसा करने की जरूरत ही क्या थी यदि जंग ही केंद्र सरकार के साथ तालमेल बैठाने के लिए तैयार थे। बहरहाल यदि कानूनी पहलुओं पर ही वापस लौटें, जो कि ज्यादा महत्वपूर्ण भी हैं, तो साफ़ है कि अरविंद केजरीवाल का पक्ष इस लड़ाई में केंद्र और उपराज्यपाल के मुकाबले कमजोर है। इस लड़ाई में उनकी जीत तभी हो सकती है जब दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाए। -ऋतेन्द्र माथुर
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