01-Aug-2016 09:30 AM
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कहते हैं कि ग्रह खराब हों तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है। यानी दिन कितने भी अच्छे हों, ग्रहों की दशा विपरीत हो तो मौसम खराब हो जाता है। आजकल भाजपा का मौसम खराब है। देश के मानसून से कहीं ज्यादा आफत उनके सिर बरस रही है। इस बारिश में पार्टी पानी-पानी हुई जा रही है। जो मेढ़ और मीनारें उन्होंने इतने दिनों मशक्कत करके जमाई हैं, वो इस पानी में बही जा रही हैं। ज्योतिषी कहते हैं कि यह ग्रहों का फेर है। वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा पर उसके सनीचर (बड़बोले नेता) ही भारी पड़ रहे हैं।
बात भी सही है। बिहार चुनाव में अपने बड़बोलपन के कारण जीती-सी दिखने वाली बाजी भाजपा हार गई। उसके बाद ऐसा लगा था कि पार्टी उस हार से सबक लेगी, लेकिन उसके सनीचर फिर भी बेबाक रहे। और अब ये सनीचर उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी भाजपा का खेल बिगाडऩे में लग गए हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा ने अपने अखिल भारतीय चुनावी मिशन के तहत दलितों तक पहुंचने का जो जबर्दस्त अभियान चलाया, उसमें उसे आरएसएस का भी पूरा साथ मिला। अपने इस अभियान के तहत भाजपा ने दलितों के मसीहा बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के कार्यों को याद करते हुए उनका स्तुतिगान किया, पीस पार्टी के उदित राज जैसे नेता को अपनी पार्टी में शामिल किया और रामविलास पासवान, रामदास अठावले जैसे नेताओं को एनडीए गठबंधन के सहयोगी के रूप में अपने साथ जोड़ा। उसके इन्हीं प्रयासों का नतीजा था कि 2014 के चुनाव में एनडीए की ओर से तकरीबन 40 दलित उम्मीदवार चुनकर लोकसभा पहुंचे, जबकि उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस, जिसका 1980 में 53 फीसदी दलित वोटों पर कब्जा था, मात्र 44 सांसदों तक सिमट गया। इनमें भी दलित तो इक्का-दुक्का ही थे।
लेकिन अब भाजपा की यह दलित पटकथा बिखरती नजर आ रही है। इसका कारण है इसके गौरक्षक-एजेंडे और दलित एजेंडे में संतुलन का अभाव। इसकी उग्र हिंदुत्ववादी भावनाएं इसके दलित सशक्तीकरण प्रोग्राम से टकरा सकती हैं और इसकी वजह से इसके मिशन यूपी, 2017 को भी जबर्दस्त झटका लग सकता है। इस साल जनवरी में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की खुदकुशी पर राष्ट्रीय स्तर पर मचे हंगामे और इस मसले पर विपक्ष की एकजुटता ने भाजपा को परेशानी में डाल दिया था। किसी तरह यह मामला ठंडा पड़ा तो अब दो हालिया घटनाओं ने फिर विपक्ष को भाजपा पर आक्रामक होने का मौका दे दिया है।
पहली घटना गुजरात के ऊना की है, जहां कुछ दलित युवकों की मृत गाय की चमड़ी निकालने पर गौरक्षक समिति के कार्यकर्ताओं द्वारा सरेआम पिटाई कर दी गई और दूसरा मामला यूपी का है, जहां भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष (अब पार्टी से निष्कासित) द्वारा मायावती के बारे में अशोभनीय टिप्पणी की गई। इन दोनों मामलों ने यूपी, गुजरात, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों में होने जा रहे अहम विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष, खासकर बसपा व कांग्रेस को बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया है, जिसके जरिए वे भाजपा की दलित-विरोधी छवि बनाने की पूरी कोशिश करेंगे।
ये दोनों मुद्दे अब एक सियासी तूफान का रूप ले चुके हैं और इनसे दहली भाजपा को आखिरकार दयाशंकर सिंह को पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी से निष्कासित करने पर भी मजबूर होना पड़ा। हालांकि गुजरात के मामले में जरूर उसकी ओर से ऐसी कोई सख्त कार्रवाई होती नजर नहीं आई। गौरतलब है कि वर्ष 2014 में भाजपा के मिशन-यूपी के प्रमुख शिल्पी अमित शाह ही थे, जहां भाजपा ने 80 में से 71 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाबी पाई थी। वे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी कुछ ऐसी ही रणनीति बना रहे थे। लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुला था और इस पार्टी के कई असंतुष्ट नेता दूसरी जगह बेहतर संभावनाएं टटोलने लगे थे। पिछले दिनों ही इसके तीन प्रमुख नेता मायावती को हतोत्साहित करते हुए पार्टी से अलग हो गए। लेकिन अब दलितों पर हमले और अशोभनीय टिप्पणी के ये प्रकरण मानो यूपी में मायावती तथा गुजरात में कांग्रेस के लिए संजीवनी बनकर आए हैं।
इन पांच चुनावी राज्यों में से पंजाब में दलितों की सर्वाधिक आबादी है। यहां तकरीबन 33 फीसदी दलित हैं। यूपी में 21 फीसदी और गुजरात में 7 प्रतिशत दलित आबादी है। पंजाब में यदि दलित किसी एक विपक्षी पार्टी के पक्ष में लामबंद हो गए तो अकाली दल-भाजपा गठबंधन के पसीने छूट जाएंगे। गुजरात में हालांकि दलित अपेक्षाकृत कम (सिर्फ 7 फीसदी) हैं, लेकिन यदि दलित और हार्दिक पटेल (जिनकी पहले ही भाजपा के साथ तलवारें खिंची हैं) की अगुआई में पाटीदार एक साथ आ गए तो भाजपा मुश्किल में पड़ जाएगी। दलितों की सरेआम पिटाई की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद इसकी राष्ट्रव्यापी आलोचना शुरू हो गई और इसने विपक्षियों को गुजरात मॉडल की दुहाई देते प्रधानमंत्री पर तंज कसने का मौका दे दिया।
ग्रह दशा भी प्रतिकूल
अगर हम ज्योतिषियों की बात मानें तो भाजपा की ग्रह दशा भी प्रतिकूल है। वाराणसी के एक प्रतिष्ठित ज्योतिषी आचार्य ऋषि द्विवेदी बताते हैं, दरअसल, भाजपा की राशि मिथुन है और लग्न वृश्चिक है। इस राशि और लग्न में नवंबर 2014 से शनि की साढ़े साती चल रही है। यानी भाजपा के सिर पर सनीचर बैठा है। द्विवेदी बताते हैं कि भाजपा के लिए नवंबर 2014 से ही एक के बाद एक अप्रिय खबरों का क्रम जारी है। नवंबर 2014 के बाद वर्ष 2015 की शुरुआत में ही मोदी ने ओबामा को भारत बुलाया। उनको गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम का आतिथि बनाया। लेकिन सारा ध्यान नामधारी सूट छीन ले गया। सादगी का दम भरने वाले मोदी मुंह दिखाने लायक न रहे। भाजपा की अंतरराष्ट्रीय किरकिरी हुई।
इस कोट से निकलते, तब तक भाजपा दिल्ली हार गई। हार के सदमे से निकलते- निकलते ललितगेट वाला मामला शुरू हो गया। इसके बाद वसुंधरा राजे से लेकर व्यापमं तक और चावल घोटाले तक भाजपा के लिए एक के बाद एक किरकिरी की वजहें खड़ी होती रहीं। पार्टी पूर्ण बहुमत के बाद भी संसद में कोई भी बिल पास कराने से वंचित रही। इससे निकल पाते, तब तक बिहार के चुनाव परिणामों ने मोदी का तिलिस्म तोड़ दिया। लहर हवा हो गई और भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। इतने बड़े कुनबे में कभी बुजुर्ग नाराज होते रहे तो कभी कीर्ति आजाद जैसे जवान तल्ख तेवर दिखाते रहे। 2015 के शीलकालीन सत्र और 2016 के बजट सत्र भी साढ़ेसाती का प्रकोप झेलते रहे। एक असम है जो लाज बचा ले गया है वरना भाजपा के लिए उपलब्धियों का गागर खाली ही है। द्विवेदी समझाते हैं, भाजपा का लग्नेश बुध है और ग्रहों का यह संकट जनवरी 2017 तक बना रहेगा। हालांकि उनका कहना है कि सूर्य की महादशा के बावजूद मिथुन लग्न वालों को शनि इतना परेशान नहीं करता। शनि कभी-कभी ताकत बन जाता है।
असम की जीत इसी कारण हुई है। तो क्या भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव आसान है और वो सरकार बना लेंगे। इस प्रश्न पर आचार्य कहते हैं, भाजपा के लिए योग ठीक है। लेकिन संभव है कि बाकी दलों का योग इनसे बेहतर हो। उसे अलग से देखना पड़ेगा। फिलहाल तो गणना कहती है कि भाजपा का जनाधार बढ़ेगा। अब देखना है कि आगामी चुनावों में भाजपा का भाग्य उसे कहां ले जाता है।
क्षेत्रीय दलों से जाति, धर्म के मुद्दे पर न उलझे भाजपा
भाजपा के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि वह जाति और धर्म के मुद्दे पर भाजपा से न उलझे। बनारस के प्रकांड ज्योतिषशास्त्री मनीष मनोहर पांडेय कहते हैं कि भाजपा कोई व्यक्ति नहीं है जिसके लिए गणना की जा सके। वो कहते हैं, ज्योतिषीय गणना के लिए जरूरी है कि किसी व्यक्ति का नाम, जन्म का समय और स्थान ठीक-ठीक पता हो। ऐसा मोदी, सोनिया आदि के लिए तो संभव है लेकिन पार्टी के लिए नहीं। किसी दल का कोई पंचांग नहीं हो सकता। गणनाओं का यह खेल एक गणित है। इस गणित को सही करने के लिए फिलहाल भाजपा को एक राष्ट्रीय पार्टी की तरह विराट सोच के साथ काम करना होगा।
-दिल्ली से रेणु आगाल