17-Aug-2016 05:57 AM
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बुंदेलखंड मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश का वह इलाका है जो कई मायने में विशेषखंड है। प्राचीन काल में बुंदेलखंड क्षेत्र पहाड़ी-पठारी रहा है। जिनकी गुफाओं में ऋषि मुनि तपस्या किया करते थे, जालौन में जालव ऋषि थे तो कालपी में व्यास ऋषि का आश्रम था। तपस्वियों की तपो भूमि बुंदेलखंड की माटी में कई विभूतियों ने जन्म लिया। इसमें आल्हा-उदल, ईसुरी, कवि पद्माकर, लक्ष्मीबाई जैसी अनेक हस्तियों का नाम शामिल है। यहां के संबंध में एक बात कही जाती है चित्रकूट में रम रहे, रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा परत है, सो आवत इही देशÓ।
बुंदेलखंड अपनी भौगोलिक बनावट और स्थिति के लिहाज से भी विशेष है। उत्तर में गंगा का मैदानी भाग और दक्षिण में विन्ध्य पहाडिय़ों के बीच बसे इस क्षेत्र में सिंध, बेतवा, टौंस, धसान, और चम्बल जैसी सदानीरा नदियां बहती हैं। फिर भी इसे विडंबना ही कहेंगे कि बुंदेलखण्ड बेहाल रहता है। बुंदेली में ये कहावत बड़ी मशहूर है- इत जमुना उत नर्मदा, इत चंबल उत तौंस, छत्ता तोरे राज में किए लरन की हौंस।
यानि जिसके एक छोर पर जमुना दूसरे पर नर्मदा, इस पार चंबल, उस पार तमसा नदियों की अविरल धारा कल-कर करती है। जो बुंदेलखंड राजा छत्रशाल के शासन काल में अजेय रहा हो आज उसकी पहचान सूखे से होती है। भुखमरी, बेरोजगारी, अवैध खनन जैसे तमाम विशेषण भी समय-समय पर बुंदेलखंड के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। प्राकृतिक आपदा को छोड़ दिया जाए तो ऐतिहासिक, भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से विशेष होने के बावजूद बुंदेलखण्ड हाशिए पर क्यों है? ये सवाल कई मायने में महत्वपूर्ण है।
उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में बुंदेलखंड के हिमायतियों की संख्या भी बढ़ गई है। राजनीतिक दल बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिए अपने-अपने मॉडल और ब्लूप्रिंट को बेहतर बता रहे हैं। ऐसे में यह सवाल प्रासंगिक हो जाता है कि बुंदेलखंड की याद चुनाव नजदीक होने पर ही क्यों आती है।
उत्तरप्रदेश के सात जिलों (झांसी, हमीरपुर, बांदा, ललितपुर, महोबा, जालौन और चित्रकूट) वाले बुंदेलखंड की कुल आबादी तकरीबन एक करोड़ बयालीस लाख है (14,198, 668)। राजनीति के लिहाज से इस क्षेत्र का बहुत महत्व है। 19 विधानसभा सीटों वाले बुंदेलखंड में जब-जब चुनाव आता है नेता गरजते हैं। जनवरी 2008 में एक रैली के दौरान तत्कालीन बसपा सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था, राज्य सरकार की लापरवाही की वजह से बुंदेलखंड की जनता केंद्र सरकार की योजनाओं से महरूम है। 18 फरवरी, 2012 को बसपा प्रमुख मायावती ने एक चुनावी रैली के दौरान कहा, बुंदेलखंड के विकास के लिए हमने केंद्र सरकार से 80 हजार करोड़ रुपए की मांग की थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यानि जो भी आया सिर्फ गरजा, बरसा कोई नहीं, भगवान भी नहीं।
फरवरी, 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा समर्थित सरकार के हारने के बाद बुंदेलखंड के लोगों ने आस छोड़ दी थी, क्योंकि बुंदेलखंड के लोगों के बीच ये संदेश दिया गया था कि बसपा ही इनकी असल हिमायती है। इस बीच 16वीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए इसमें बुंदेलखंड क्षेत्र से बसपा को 19 में से 6 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि सपा को 5 सीटें मिलीं। इस लिहाज से बुंदेलखंड बसपा के लिए हमेशा फायदेमंद रहा है, फिर भी सिर्फ बयानों में प्राथमिकता में रहा। अब इस क्षेत्र पर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नजर है। और वे इसे भुनाने में लगे हुए हैं।
तकदीर बदलने के दावे निकलते हैं खोखले
प्राकृतिक आपदा बुंदेलखंड के लिए अभिशाप है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। यहां सूखा और जलसंकट हमेशा से महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके स्थाई समाधान के उपायों पर विचार किया जाना चाहिए था। पर अफसोस है कि ऐसा नहीं हुआ। दैवीय आपदा से कोई जीत नहीं सकता है ये बात सच है लेकिन इससे बचने के उपायों पर विचार तो किया ही जा सकता है। अच्छी बात है कि मौजूदा सरकार जल संकट के स्थाई उपायों के लिए मुख्यमंत्री जल संचय योजना चला रही है। इसके तहत हजारों तालाबों के पुनरुद्धार की प्रक्रिया चल रही है। प्रख्यात समाजसेवी एवं जलपुरुष के नाम से मशहूर राजेन्द्र सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री ने तालाबों के जीर्णोद्धार तथा जल संचयन के लिए जो कार्य किया है, उसके बारे में सभी को सोचना चाहिए। इस कार्य ने सभी को एक सन्देश दिया है तथा चेतना जगी है।
-जबलपुर से सिद्धार्थ पाण्डे