01-Aug-2016 09:37 AM
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अमेरिकी कारोबारी डोनाल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए नामांकन स्वीकार कर लिया है। इस मौके पर उन्होंने वादा किया कि अमेरिका से वो अपराध और हिंसा खत्म कर देंगे। क्लीवलैंड में भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था के बिना कोई समृद्धि नहीं आ सकती है। उन्होंने गैरकानूनी आप्रवासन के खिलाफ कड़े कदम उठाने का वादा किया।
डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान में सबसे ज्यादा चंदा देने वालों में भारतीय मूल के अमेरिकी उद्योगपति और रिपब्लिकन हिंदू कोलिशन के संस्थापक शलभ कुमार डोनाल्ड भी हैं। शलभ या शल्ली कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी करीबी माने जाते हैं। पिछले हफ्ते उनकी डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात हुई। ट्रम्प कोई पारंपरिक राजनेता नहीं हैं। वे एक बिजनेसमैन हैं। नेता बोलते कुछ हैं करते कुछ हैं, लेकिन ट्रंप में ऐसी कोई बात नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि भारत और अमेरिका दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और इन दोनों देशों को सबसे मजबूत साथी होना चाहिए। ट्रम्प पाकिस्तान को वो भरोसेमंद साथी नहीं समझते। मोदी और ट्रंप में खूब बनेगी क्योंकि मोदी का दिमाग भी बिजनेसमैन की तरह काम करता है। उनका चुनावी घोषणा पत्र रिपब्लिकन पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र से मिलता-जुलता है। दोनों का व्यक्तित्वएक जैसा है।
भले ही उनके भाषणों के बाद विवाद शुरू हो गया लेकिन फिर भी उनको चाहने वालों की तादाद बढ़ती गई। उन्हें जनसमर्थन मिलता गया। मुझे लगता है कि इस चुनाव में अमेरिकी जनता सिस्टम के खिलाफ अपनी निराशा और हताशा ट्रंप को समर्थन देकर निकाल रही है। जनता चाहती है कि ऐसा नेता सत्ता में आए जो मुद्दों पर घुमाने-फिराने की बजाय सीधी बात करता हो। ऐसा नेता, जो अमेरिकी दुश्मनों से निपट सके। अमेरिका की इज्जत बहाल कर सके इसलिए अमेरीकियों को ट्रंप की बातें ज्यादा दिलचस्प लग रही हैं। ट्रंप ने प्रचार पैसे के बूते संभाला हो या बिना पैसे, वे अब तक सफल साबित हुए हैं।
अमेरिका को फिर से महान बनाने का उन्होंने चुनावी स्लोगन दिया है। पर गौर करें तो यह स्लोगन अमेरिका के चुनावों में नई बात नहीं है। वहां हर चुनाव में देखा गया है कि लगभग सभी उम्मीदवार कहते हैं कि अमेरिका को मजबूत बनाएंगे। उसे आगे बढ़ाएंगे। ट्रंप ने सीधे तौर पर कहा है कि अमेरिका ग्रेटÓ नहीं रहा, उसकी महानता खत्म हो गई है। इसके जरिए वे ओबामा प्रशासन की जमकर आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि अमेरिका का जो दबदबा एक दौर में था, उसमें काफी गिरावट आ गई है इसलिए उसे दोबारा हासिल करने के लिए उन्हें सत्ता सौंपे। अमेरिकी उनकी बातों में भरोसा भी जता रहे हैं। अमेरिकी जब वोट करने जाएंगे तो उनके दिमाग में यह बात जरूर रहेगी। जैसा कि देखने में आया है कि अमेरिका की कानून व्यवस्था इस वक्त डगमगाई हुई है। वहां हिंसा का दौर देखने को मिल रहा है। अफ्रीकन अमेरीकियों के साथ लगातार बदसलूकी बढ़ी है। अमेरिकी जनता मानती है कि उनके देश के सामाजिक हालात खराब हो रहे हैं।
चुनावों के मद्देनजर अमेरिका में एक बड़े तबके को लगता है कि उनका खोया वजूद और इज्जत डोनाल्ड ट्रंप लौटा सकते हैं। जिस प्रकार चीन, रूस और उत्तर कोरिया जैसे देश अमेरिका को सीधी चुनौती दे रहे हैं, इससे भी वहां के जनमानस में अमेरिका की कमजोर छवि बनी है। ट्रंप की इन चुनावों में जनता के बीच अपील बढऩे का बड़ा कारण ओबामा की विदेश नीति के मोर्चे पर विफलता है। पश्चिमी एशिया हिंसाग्रस्त है। आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हो रही।
अमेरिका अफगानिस्तान गया पर वहां अभी तक आतंकवाद पनप रहा है। जहां-जहां अमेरिका ने तानाशाहों को खदेड़ा, वहां अस्थिरता का दौर है। इराक के हालात में खास तब्दीली नहीं आई। सीरिया तो युद्ध का मैदान बना हुआ है। यूरोप में आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता हावी है। इसलिए ट्रंप इन मुद्दों को हवा दे रहे हैं कि जहां-जहां ओबामा गए वहां विफलता मिली और अमेरिका के प्रति भय खत्म हो गया। इसलिए वे अमेरिका को फिर महान बनाएंगे। ट्रंप अमेरिका में चुनाव जीत जाते हैं तो बड़ी हैरानी नहीं होनी चाहिए।
कदम दर कदम विनर बनते ट्रंप
डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ या उनके समर्थन में जो भी मत बन रहा हो पर यह बात पुख्ता तौर पर कही जा सकती है कि वे एक विनर (विजेता) हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव की शुरुआत से उन्होंने कदम दर कदम अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराकर आखिरकार रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी जीत ली है। इस अमेरिकी चुनाव में एक ऐसा उम्मीदवार दावेदार बना है, जो सत्ता प्रतिष्ठान का कभी हिस्सा नहीं रहा। ट्रंप को कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था, न ही उन्होंने कभी चुनाव लड़ा था। इन सबके बावजूद ट्रंप को अमेरिकी जनता पसंद कर रही है। एक और खास बात यह है कि जितने भी राजनेता होते हैं वे पॉलिटिकली करेक्टÓ होते हैं लेकिन ट्रंप ने इस चुनाव में कभी पॉलिटिकली करेक्टÓ बातें नहीं कीं। उन्होंने जब भी राय रखी सीधी और सपाट राय रखी।
-सुनील सिंह