01-Aug-2016 09:16 AM
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दुनिया के किसी देश में शायद ही सेना प्रमुख के मुंह से निकले हुए शब्द और उनकी शारीरिक भाषा उतना महत्व रखते हों जितना पाकिस्तान में रखते हैं। वहां जब किसी नए सेना प्रमुख की नियुक्ति या फिर मौजूदा सेवारत सेना प्रमुख के सेवा विस्तार की बात आती है तो अजीब सी हलचल मच जाती है। सभी में इस मुद्दे के गुण-दोष की अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करने के लिये रक्षा एवं सुरक्षा विशेषज्ञों से रायशुमारी की होड़ मच जाती है। ऐसे परिदृश्य में अगर पाकिस्तान के प्रमुख शहरों और विशेषकर छावनियों में एकाएक सैंकड़ों की संख्या में ऐसे पोस्टर नजर आएं जिनमें मौजूदा प्रमुख से आगे आनेÓÓ की अपील की गई हो, जिसका सीधा सा मतलब देश में मार्शल लॉ लागू करने की मंशा, तो आप लोगों के बीच बढ़ रहे उन्माद की कल्पना कर सकते हैं।
हाल के दिनों में पाकिस्तान की कुछ प्रांतीय राजधानियों और कई अन्य शहरों में, विशेषकर पंजाब में, ऐसा ही देखने को मिला जब रातोंरात सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ की बड़ी तस्वीरों वाले पोस्टर सड़कों पर लगे मिले। उनमें उन्हें उद्धृत करते हुए लिखा था, जाने की बात हुई पुरानी, खुदा के लिये अब आ जाओ।ÓÓ ये पोस्टर सिर्फ तीन वर्ष पूर्व चुनाव आयोग के पास पंजीकृत होने वाले अनजान से राजनीतिक दल मूव ऑन पाकिस्तानÓÓ द्वारा लगाए गए थे। इस पार्टी की कमान फैसलाबाद के रहने वाले एक व्यवसायी मोहम्मद कामरान के हाथों में है जो फैसलाबाद, सरगोधा और लाहौर में कई स्कूलों का संचालन करते हैं।
मीडिया के साथ बातचीत के दौरान पार्टी के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि वह लोग मार्शल लॉ लागू करने की गुजारिश नहीं कर रहे हैं, जैसा कि समझा जा रहा है। चूंकि देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी वाले हालात बने हुए हैं ऐसे में उनका इरादा सिर्फ सेना प्रमुख को एक संवैधानिक सरकार स्थापित करने और दोनों पक्षों के बीच हस्तक्षेप करना है ताकि देश को राजनीतिक अराजकता से बचाया जा सके। यह वही दल है जिसने फरवरी 2016 में भी एक पोस्टर अभियान के माध्यम से सेना प्रमुख से नवंबर में होने वाली अपनी सेवानिवृति पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। जनरल शरीफ ने 25 जनवरी 2016 को आईएसपीआर ट्वीट के माध्यम से अपने इरादे स्पष्ट करते हुए लिखा था, मैं सेवा विस्तार में यकीन नहीं रखता और नियत तारीख पर सेवानिवृत हो जाऊंगा (यानी 28 नवंबर 2016)।ÓÓ
इन पोस्टरों के सामने आते ही कईयों की भृकुटियां तन गईं और यह बहुत जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। कुछ दिन पूर्व ही देश में हंगामा मचाने वाले पनामा पेपर लीक मसले के बाद हाल ही में लंदन से दिल की सर्जरी करवाकर लौटे पीएम नवाज शरीफ की मुश्किलों में इश पोस्टरबाजी ने और इजाफा कर दिया है। कुछ लोगों ने इस घटना के तार पाकिस्तान का दौरा करने वाले अमरीकी सीनेटर जॉन मैक्केन के उस बयान से जोडऩे का प्रयास किया जिसमें उन्होंने कहा था कि जनरल शरीफ निश्चित ही पाकिस्तानी सेना का नेतृत्व करते रहेंगे।
मुख्य विपक्षी दल पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने इन पोस्टरों को पहले से ही परेशान नवाज शरीफ की एक चाल के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उनका कहना था कि पीएम विरोध करने वालों को यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि अगर विपक्ष सड़कों पर उतरकर सरकार की जवाबदेही निश्चित करने का प्रयास करता है तो सेना राजनेताओं को घर का रास्ता दिखा सकती है। इस संदर्भ में माना गया कि सरकार जानबूझकर पनामा लीक्स की जांच रोकने के प्रयास कर रही है जिनमें पीएम शरीफ के परिवार के शामिल होने का आरोप है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में संविधान को उखाड़ फेंकने की मांग करने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्थन के खिलाफ बिना समय गंवाए तुरंत मामला दर्ज कर लिया जाता। लेकिन पाकिस्तान में सरकार ने उस समय तक इंतजार करना मुनासिब समझा जब तक कि आईएसपीआर ट्वीट नहीं किया कि इन पोस्टरों से सेना या उससे संबद्ध किसी भी संगठन का कोई वास्ता नहीं है और इसके बाद ही मामला पंजीकृत किया गया।
दोनों एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं
वजीरिस्तान में कुछ आतंकियों को खत्म करने के लिये जनरल शरीफ द्वारा प्रारंभ किया गया ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब और कराची की बेहाल कानून-व्यवस्था की स्थिति से सफलतापूर्व निबटने के चलते उनकी लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है। यह तथ्य देश की नवाज शरीफ की असैन्य सरकार के बिल्कुल विरोधाभासी है। इसका सबसे जीवंत उदाहरण यह है कि शरीफ के इलाज के लिये सात हफ्तों तक लंदन में रहने के दौरान पाकिस्तानी राजनीति जस की तस रही, सिर्फ टीवी चैनलों के अलावा किसी को भी प्रधानमंत्री की कमी महसूस नहीं हुई, कह सकते हैं कि किसी ने भी उनकी अनुपस्थिति पर ध्यान भी नहीं दिया। हालांकि जनरल शरीफ को आतंकवाद से संबंधित खेल के नियमÓÓ और माहौल को बदलनेÓÓ का श्रेय दिया जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि वे सिर्फ सेना द्वारा विदेशी और घरेलू नीति के संबंध में की गई गड़बडिय़ों को ठीक करने का प्रयास कर रहे है। विरोधियों का कहना है कि दोनों शरीफ एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। दूसरों के बीच भ्रम फैलाने के लिए सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा किया जा रहा है। ताकि भ्रम में फसे रहने के कारण लोग सरकार की विफलता की ओर ध्यान न दें।
-राजेश बोरकर