01-Aug-2016 09:33 AM
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स्वामी प्रसाद मौर्या, आरके चौधरी सरीखे वरिष्ठ नेताओं के साथ बसपा का टाइटल मिट जाने के बाद बसपा में जंग अस्तित्व को बचाने की खातिर शुरू हो गई थी। बसपा सुप्रीमों मायावती संजीवनी की तलाश में जुटीं थी कि किसी तरह से वे आने वाली सर्दियों में चुनावी सरगर्मियां बढ़ाने का माद्दा रखें। इस फेहरिस्त में उत्तरप्रदेश में भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर के बयान ने बसपा में फिर से प्राण फूंक दिए। अलग-थलग पड़ी पार्टी में एकता का संचार हो गया है। लेकिन मायावती के पक्ष में लड़ी जा रही लड़ाई का रुख एक आम गृहणी ने चंद घंटे में ऐसा मोड़ दिया है कि वह आज आम आदमी का चेहरा बन चुकी है। वह गृहणी है दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह।
उत्तरप्रदेश में दलित की राजनीति शुरू कर भाजपा ने बसपा को मुद्दा विहीन कर दिया था। सूबे में सियासत में अपनी अच्छी तरह से पकड़ बनाने के लिए सियासी दलों ने आंबेडकर को तो कांधे पर लादकर अपना बताना शुरू कर दिया लेकिन स्त्रीत्व पर हुई इस टिप्पणी पर पुरजोर विरोध होना लाजिमी है। साथ ही मायावती ने दांव चलते हुए कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के लिए बेबाकी से धमकी भी दे डाली कि अब यदि उनके कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आएं तो उनकी जिम्मेदारी नहीं होगी। मतलब साफ है...एक विशालकाय प्रदर्शन। जिसमें मुखालिफत होगी सभी दावेदारों की। जनता यकीन भी करेगी क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती के पास तथ्य है दयाशंकर की बद्जुबानी का।
जहां बीते कई कार्यक्रमों में भाजपा दलितों को करीब लाने की हर संभव कोशिश करती हुई नजर आई है, उसे इस घटनाक्रम के बात तगड़ा झटका लगने वाला है। हालांकि उपाध्यक्ष पद से दयाशंकर को हटाया जाना भी दलितों का हिमायती बताने की खातिर हुआ है। संदेश है कि किसी भी तरह की विवादित टिप्पणी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन कई कद्दावर पार्टी के वरिष्ठ पदों पर आसीन हैं और विवादित बयानों की बात...तो बिलकुल पूछिए ही मत। मुगालता दयाशंकर को भी यही था कि वे इस बयान के सहारे दिनों दिन सुपर स्टार बन जाएंगे। लेकिन बयान में जिसको घेरना चाहा वो तो नहीं बल्कि पूरा स्त्रीत्व समा गया और सितारे गर्दिश में चले गए। उत्तरप्रदेश में भाजपा के साथ अन्य को चुनौती देने के लिए बसपा को मुद्दा चाहिए था। मुद्दा विकास हो नहीं सकता क्योंकि गुलाबी पत्थरों पर विकास की परिभाषा चीख-चीखकर पैसे के बेफिजूल खर्च की दुहाईयां दे रही है। जातिवाद के सहारे यूपी की सियासत में कुर्सी पाने की लालसा करीबन सभी दलों की थी। जिसमें आंबेडकर को सभी दलों द्वारा कंधे पर टिकाने के बाद बसपा की ख्वाहिशों में धूल जरूर पड़ी थी। पर, अब मुद्दा होगा महिलाओं की इज्जत, मायावती का अपमान, सियासत में फायदा तलाशने की खातिर चरित्र पर लांछन..... जिसमें मायावती के साथ दलित खेमे के साथ अन्य भी फिर से एकजुट होते नजर आ रहे हैं।
लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियों ने अछूत घोषित कर दिए गए दयाशंकर को लेकर जो लड़ाई स्वाति ने छेड़ी है, उसके समर्थन में भाजपा लखनऊ में बेटी के सम्मान को लेकर मैदान में उतर गई है। दरअसल स्वाति ने बसपा के नेताओं की टिप्पणियों पर ऐसा प्रहार किया है कि मायावती चारों खाने चित हो गई हैं। अब आलम यह है कि वे अपने नेताओं को कोस रही हैं। उधर स्वाति सिंह उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए बड़ा हथियार मिल गईं हैं जिसे पार्टी चुनाव में अजमा भी सकती है।
क्या अब भाजपा पर दया दिखाएंगे दलित?
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के एक आपत्तिजनक बयान ने दलितों का दिल जीतने की भाजपा की कोशिशों पर पलीता लगा दिया है। मायावती के अपमान के खिलाफ बसपा के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ की सड़कों पर जैसा जोरदार प्रदर्शन किया उससे भाजपा नेताओं की नींद जरूर उड़ गई होगी। उधर संसद में मायावती ने खुद मोर्चा संभाला और कहा कि ये घटना दिखाती है कि भाजपा अंबेडकर के सम्मान का नाटक तो करती है लेकिन उसकी सोच नहीं बदली है। दयाशंकर को फौरन पार्टी से निकाल कर और उनके बयान के लिए अरुण जेटली ने खेद प्रकट करके भाजपा ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। लेकिन विरोधी पार्टियों के तेवर को देखकर लगता है की दयाशंकर का यह बयान चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम