राहुल ने भूरिया को दिया फ्री हेंड
16-Apr-2013 09:30 AM 1234780

मध्यप्रदेश कांग्रेस में भूरिया को लेकर चल रहे भूचाल को राहुल गाँधी ने विराम दे दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश के पदाधिकारियों को साफ कर दिया है कि मौजूदा हालातों में नेतृत्व परिवर्तन करना संभव नहीं है लिहाज़ा भूरिया के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा। सोनिया गाँधी पहले ही भूरिया को अभयदान दे चुकी हैं। लेकिन भूरिया आलाकमान से मिली इस ताकत के बाद भी ताकतवर नहीं हो पाए हैं क्योंकि गुटबाजी के चलते वे सभी नेताओं को एकजुट करने में नाकाम रहे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण भूरिया की घोषणा के बाद भी समन्वय समिति की बैठक न हो पाना है। नवम्बर माह के बाद से भूरिया केवल आश्वासन दे रहे हैं किन्तु समन्वय समिति की बैठक अभी तक नहीं हो पाई है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं को समन्वय समिति की बैठक में बुलाना आसान नहीं है। यही कारण है कि  7  माह बाद चुनाव हैं किन्तु जमीन पर कांग्रेस का संगठन कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं है। संगठन की यह कमजोरी मैदान में साफ नजऱ आ रही है। बिना किसी समन्वय के की जा रही यात्रायें फ्लॉप शो में तब्दील हो चुकी हैं। नेताओं का चुनावी शेड्यूल क्या है यह अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है इसी कारण संभागीय सम्मलेन उतने सफल नहीं रहे हैं और उनसे जो माहौल बनना था वह माहौल नहीं बन पाया है। समझा जाता है कि मई माह में कर्नाटक के चुनावी नतीजों के बाद प्रदेश कांग्रेस को दुरुस्त करने के लिए कुछ कदम उठाये जा सकते हैं। शायद वी के हरिप्रसाद को कर्नाटक भेजा जायेगा। हरबंश सिंह को संगठन में लेन के पीछे यही मंशा है कि वे पुराने नेता हैं और अच्छे तालमेल से काम करना जानते हैं। गुटबाजी से परेशान राहुल गाँधी ने साफ कर दिया है कि वर्तमान ताकत से ही चुनाव लड़ा जायेगा कोई बदलाव संभव नहीं है भले ही चुनाव हाथ से निकल जाये। राहुल की मंशा आगामी 5 वर्ष में कांग्रेस संगठन से गुटबाजी समाप्त करना है। 
कांग्रेस की जनजागरण यात्रा की शुरुआत सीधी और सिंगरौली से करने का सीधा आशय यही है कि पार्टी जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच अपनी एकजुटता प्रकट करना चाहती है। भूरिया और अजय सिंह इन प्रयासों में जी-जान से जुटे हुए हैं कि चुनाव आने से पहले कम से कम बाहरी तौर पर ही सही कांग्रेस एक पार्टी के रूप में जनता के सामने खड़ी हो सके। ये दोनों नेता भरपूर मेहनत कर रहे हैं। भूरिया ने तो एक कदम आगे बढ़कर यह भी कहा है कि ज्योतिरादित्य से उनके विवाद भारतीय जनता पार्टी का कुप्रचार है। इसमें कुछ सच्चाई नहीं है। भूरिया कहते हैं कि सिंधिया के साथ उनका तनाव नहीं है और वे सिंधिया से मुलाकात करते रहते हैं। हालांकि भूरिया ने यह बात मीडिया में चल रही खबरों को शांत करने की दृष्टि से कही है। लेकिन सच तो यह है कि सिंधिया और भूरिया के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर तनाव बना ही रहा है। सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की जब बात उठी थी तो उसका भीतर ही भीतर विरोध हुआ था। परिवर्तन यात्रा 4 अप्रैल से सीधी सिंगरौली से प्रारंभ हो चुकी है। भूरिया और अजय सिंह दोनों एक साथ ही इस सघन मैदानी यात्रा में कांग्रेस को पुन: सत्ता में लाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
भूरिया अक्सर जनसभाओं में मध्यप्रदेश सरकार की आलोचना करने के बाद एक बात दोहराना नहीं भूलते कि कांग्रेस के शासनकाल में भी कुछ गलतियां हुई थीं, जिनके चलते कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी। वे गलतियां कौन सी थी यह भूरिया ने कभी खुलकर नहीं बताया। खुलकर नहीं बताना उनकी विवशता है क्योंकि मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की मुखालफत करना आज भी किसी कांग्रेसी के लिए आसान नहीं है। वर्ष 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में दो पराजय झेल चुकी कांग्रेस के पास वर्तमान में 66 विधायक है। बीते 4 वर्षों के दौरान हुए उप चुनाव में भी कांग्रेस कोई प्रभावी जीत नहीं दर्ज करा पाई। इसी कारण मौजूदा 66 विधायकों की संख्या कैसे बढ़ाई जाए यह सबसे बड़ा सवाल है। यदि इस बार भी कांगे्रस का सफाया होता है तो फिर राज्य में कांग्रेस संगठन को खड़ा करना  चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए कई अभिनव प्रयोग किए हैं। हाल ही में कर्नाटक में उन्होंने साफ कर दिया कि यदि किसी प्रत्याशी की सिफारिश किसी बड़े नेता द्वारा आती है तो फिर उस प्रत्याशी को जिताने का दारोमदार भी सिफारिशकर्ता के ऊपर रहेगा। अन्यथा प्रत्याशी सहित सिफारिशकर्ता की भविष्य की संभावनाएं धूमिल हो सकती है। प्रश्न यह है कि क्या मध्यप्रदेश में यह खास फार्मूला काम करेगा। क्योंकि यहां चारों दिग्गज दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांतिलाल भूरिया अपने-अपने समर्थकों को टिकिट दिलाने के लिए प्रयासरत रहेंगे। यदि राहुल गांधी ने यह फार्मूला मध्यप्रदेश में तय किया तो कम से कम इतना अवश्य हो सकता है कि सभी सिफारिशकर्ता उन प्रत्याशियों पर ही दांव लगाना चाहेंगे, जिनमें जीतने की क्षमता है। राहुल चाहते हैं कि यदि 10 टिकिट की सिफारिश की है तो कम से कम छह सीटें जिताना चाहिए। जो सिफारिशकर्ता इसमें कामयाब हो जाएंगे उनका कद प्रदेश की राजनीति में बढऩा तय माना जा रहा है और इसी आधार पर भविष्य के मुख्यमंत्री का फैसला भी हो सकेगा। इसी को देखते हुए अब प्रत्याशियों के चयन में विशेष सावधानी बरती जाएगी जिसका फायदा कांग्रेस को चुनाव के समय मिल सकता है।

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