16-Apr-2013 09:29 AM
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एमपी 04/एचए 4684 यह हैं उस मटीज कार का नंबर जिस पर सवार होकर योगीराज अंतत: बर्खास्तगी की कगार पर पहुंच ही गए। एफ 11-18/2008/सत्रह/मेडि-1 यह है योगीराज की बर्खास्तगी के आदेश का क्रमांक। देर से ही सही मध्यप्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य योगीराज शर्मा को सरकार ने वित्तीय अनियमितताओं का दोषी मानते हुए सेवाओं से बर्खास्त कर दिया। इस मामले को अप्रैल 2007 में पाक्षिक अक्स ने प्रमुखता से उठाते हुए स्वास्थ्य विभाग के संचालक डॉ. शर्मा द्वारा सरकारी कार को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवाने के कांड का भांडा फोड़ किया था। उसके बाद से आज तक योगीराज शर्मा के विरुद्ध शासन ने कई तरह से कार्रवाई की, लेकिन वे हाईकोर्ट से स्टे लाने में कामयाब रहे। एक बार फिर शासन ने बर्खास्तगी का ब्रह्मास्त्र चलाया है। देखना यह है कि अब योगीराज आगे क्या कदम उठाते हैं। भ्रष्टाचार के इस अभूतपूर्व प्रकरण के बाद उम्मीद की जा रही थी कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने केंद्र के समक्ष जिद करके जो भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनवाया है उसके दायरे में कम से कम योगीराज शर्मा जैसे भ्रष्टाचारी अवश्य आएंगे, लेकिन यह अभी तक सपना ही बना रहा। बल्कि यह गंभीर प्रकरण तो लोकायुक्त में भी दर्ज नहीं हुआ है। विभागीय जांच में योगीराज शर्मा के दोषी पाए जाने के बाद भी अफसर उन्हें बचाने में क्यों लगे। यह समझ से परे है।
हालांकि इस मामले में लगातार बदनामी से बचने के लिए सरकार ने हाईकोर्ट में केविएट लगाई है ताकि योगीराज शर्मा बचाव का इंतजाम न कर सकें पर सरकारी फइलों में तो योगीराज समर्थक अफसरों द्वारा उन्हें बचाने का प्रयास बदस्तूर जारी है। जिन विभागीय जांचों में उन्हें दोषमुक्त किया गया उनको सही तरीके से देखा जाए और उनकी गहराई में जाने की कोशिश की जाए तो साफ पता चलेगा कि योगीराज को कितना उपकृत किया गया है। वर्ष 2002 में अपने एक पत्र क्रमांक डीपीएच/2002 दिनांक 7 मई 2002 को योगीराज शर्मा ने सरकारी कार्यप्रणाली की धज्जियां उड़ाते हुए इस मटीज कार का रजिस्ट्रेशन प्राइवेट नंबर पर कराने का आदेश दिया था। तब से लेकर आज अप्रैल 2013 तक लगभग 11 वर्षों में योगीराज के खिलाफ कार्रवाई कछुआ चाल से ही बढ़ी है। इस कार्रवाई में कोई गति इसलिए नहीं आ पाई क्योंकि योगीराज को बचाने वालों को फेहरिस्त लंबी है। बल्कि अभी तक तो लोकायुक्त ने उक्त मामले में एफआइआर ही नहीं की तो चालान तो दूर की कौड़ी है। आखिर कौन बचा रहा है योगीराज शर्मा को। इस मामले में सदन को भी गुमराह किया गया। विभाग के पास संपूर्ण जानकारियां उपलब्ध थी, लेकिन उसके बाद भी सदन को जानकारी नहीं दी गई। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई ने कहा कि जानकारी एकत्र की जा रही है। इसका मतलब साफ था कि डॉ. शर्मा को विभाग का खुला संरक्षण मिला हुआ था। यह प्रश्न (क्रमांक 562) 21 फरवरी 2007 को विधानसभा में पूछा गया। इस मामले के उजागर होने के बाद भी लगभग 5 माह तक विभाग द्वारा योगीराज शर्मा को बचाया जाता रहा। वर्ष 2007 में 10 सितंबर को योगीराज शर्मा को निलंबित किया गया। बाद में उनके खिलाफ 7 दिसंबर 2007 को चार्जशीट दाखिल की गई और बाद में 10 दिसंबर 2007 को उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। जिसे योगीराज शर्मा ने न्यायालय में चुनौती दी और उनकी सेवानिवृत्ति पर रोक लगा दी गई। बाद में नवंबर 2008 में सरकार ने निलंबन जारी रखने के आदेश दिए जिसको योगीराज शर्मा ने कोर्ट में चुनौती दी। तब से अभी तक यह मामला इसी तरह सरकारी कार्रवाई में लटका हुआ है, लेकिन योगीराज जैसे भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कोई सख्त कदम न उठाया जाना एक प्रश्न चिन्ह है।