01-Aug-2016 09:21 AM
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पिछले आठ साल से कांग्रेस को युवा करने के प्रयास में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है की वह क्षेत्रीय दलों से भी दयनीय हो गई है। ऐसे में कांग्रेस की मझधार में फंसी नाव को उबारने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को राज्यों और केंद्र में पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए नेताओं की उसी पुरानी ब्रिगेड पर निर्भर होना पड़ा है जिससे कभी वे छुटकारा पाना चाहते थे। दरअसल, राहुल ने जितने युवा नेताओं पर दांव खेला है उनमें से अधिकांश फुस्स हो गए हैं। ऐसे में राहुल को पार्टी के पुराने नेताओं की याद आने लगी है।
नया नौ दिन और पुराना सौ दिन की नीति पर चलते हुए जहां राहुल पुराने नेताओं पर विश्वास बढ़ा रहे हैं, वहीं पार्टी हित में अपने चहेतों की बलि भी दे रहे हैं। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, राहुल के पसंदीदा रणनीतिकार मधुसूदन मिस्त्री को चलता कर दिग्गज गुलाम नबी आजाद को प्रभारी महासचिव बनाया गया है। राहुल के एक और प्रिय प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री को हटाकर राज बब्बर लाए गए हैं। खत्री अब चुनाव स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख होंगे, जिसका टिकट वितरण में अहम रोल होगा। राहुल के पसंदीदा जितिन प्रसाद और आर.पी.एन. सिंह को यूपी में ही रहने दिया गया है और बतौर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएं ली गई है।
एक अन्य घटनाक्रम में पार्टी आलाकमान ने चुनाव प्रबंधन समिति में अमेठी के पूर्व सांसद संजय सिंह को शामिल करने का फैसला किया। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त संजय सिंह ने अमेठी में राहुल के खिलाफ चुनाव लडऩे की धमकी दी थी जिसके तुरंत बाद उन्हें असम से राज्यसभा सीट की पेशकश की गई थी। हकीकत यह है कि दिल्ली की गद्दी से बेदखल होने वाली 78 वर्षीया शीला दीक्षित पर कांग्रेस का भरोसा जताना इस बात का संकेत है कि दिग्गज नेताओं के बाहर होने के बाद उनकी जगह लेने के लिए नेताओं की दूसरी पंक्ति तैयार करने का राहुल का प्रयोग नाकामयाब रहा है। यह भी एक बड़ी वजह है कि राहुल पार्टी नेतृत्व संभालकर शीर्ष स्तर पर बहुप्रतीक्षित फेरबदल शुरू करने के मामले में अनमने-से हैं। 2014 की शिकस्त ने पार्टी को वक्त और मौका दोनों दिए, लेकिन तब से वह सिर्फ रिवर्स गियर में चल रही है।
2014 के चुनाव से पहले पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में राहुल ने कहा था कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोगों को टिकट दिए जाने के खिलाफ हैं। संदर्भ महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण थे जिन्हें बाद में टिकट मिला और वे राज्य से जीतने वाले दो कांग्रेसी उम्मीदवारों में रहे। एक साल बाद उन्हें राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक सदस्य कहते हैं, चव्हाण की जीत राहुल के लिए सबक थी। उन्होंने जाना कि कागजी सिद्धांतों और जमीनी हालात में क्या अंतर है। वे ऐसे लोगों से घिरे हैं जिन्हें पासा फेंकना तो आता है, लेकिन मतदाताओं को कैसे जीतते हैं, इसका कोई अंदाजा नहीं। चव्हाण की नियुक्ति पहला बड़ा बदलाव थी। ऐसी अटकलें थीं कि राहुल के नेतृत्व संभालते ही सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल का पत्ता साफ हो जाएगा, लेकिन राहुल के सबसे भरोसेमंद सहयोगी कनिष्क सिंह की छुट्टी हो गई। कांग्रेस के एक राज्यसभा सांसद के मुताबिक, उन्हें प्रियंका के साथ काम करने के लिए कहा गया है। लोकसभा में हार के बाद राहुल ने उन नए लोगों की सूची तैयार की थी जिन्हें पुनर्गठित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में शामिल करना था, लेकिन कुछ नहीं हुआ जिन चार लोगों के पास वह सूची थी, उनमें से एक पटेल थे।
चुनाव का सामना कर रहे पंजाब में सबसे पहले कमान कमलनाथ को सौंपी गई, एक ऐसा दिग्गज जो राहुल का विश्वस्त नहीं था। दिल्ली में 1984 के सिख दंगों में भूमिका के आरोपों के बीच कमलनाथ का कार्यकाल दो दिन ही टिक सका। फिर कमान हिमाचल प्रदेश से विधायक आशा कुमारी को दी गई जो एक शाही परिवार से हैं और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की भतीजी हैं। इतना ही नहीं, घूसखोरी के आरोप में इस्तीफा देने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल को राज्य में पार्टी के शहरी नवीकरण कार्यबल का प्रमुख बनाया गया। एक लोकसभा सांसद कहते हैं, युवा कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा तो राहुल के करीबी हैं। वे राज्य में विधायक हैं। हैरत की बात है कि उन्हें बड़ी भूमिका नहीं मिली। पहले राहुल ने कैप्टन अमरिंदर की मांग के आगे झुकते हुए उन्हें पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था, बेशक इसके लिए उन्हें अपनी पसंद प्रताप सिंह बाजवा को बरखास्त करना पड़ा था। कई अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि यह असम के घटनाक्रम का सीधा असर था जहां पार्टी के कद्दावर नेता हेमंत बिस्व सरमा की रंजिशों को दूर करने से राहुल के बार-बार मना करने के बाद वे बीजेपी में चले गए थे।
एक महासचिव कहते हैं, राहुल ने सोचा भी न था कि हेमंत इस्तीफा दे देंगे। जिस दिन हेमंत अलग हुए, राहुल को अपनी गलती का एहसास हुआ। तब से वे क्षेत्रीय दिग्गजों के साथ सावधानी से पेश आते हैं। हरियाणा के एक शीर्ष नेता कहते हैं कि यह हेमंत का प्रभाव ही था कि पिछले माह राज्यसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार आरके आनंद की हार में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की भूमिका के ठोस सबूत के बाद भी उन्होंने आलाकमान को कार्रवाई से रोक दिया था। दरअसल राहुल को अब समझ में आ गया है कि पुराने नेता ही कांग्रेस की नैय्या पार करा सकते हैं।
राहुल सोते नहीं हैं, देश के लिए सपने देखते हैं!
गुजरात के ऊना जिले में कथित गौरक्षकों द्वारा कुछ दलित युवकों की पिटाई के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में भारी हंगामा हुआ है। इस दौरान राज्यसभा की कार्रवाई दो बार स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते हुए इस घटना की जांच संयुक्त संसदीय समिति से करवाने की मांग की है। इस मुद्दे पर हुई बहस सोशल मीडिया का हिस्सा रही लेकिन इसी दौरान लोकसभा की एक घटना ने यहां सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं। सोशल मीडिया पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की एक तस्वीर खूब शेयर की गई है। इसमें वे आंख बंद किए हुए दिख रहे हैं और लोगों का कहना है कि वे लोकसभा में सो रहे थे। इस तस्वीर के साथ सोशल मीडिया में कई दिलचस्प टिप्पणियां आई हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने पिछले दिनों पत्रकारों से बात करते हुए बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती पर अभद्र टिप्पणी की थी। मायावती ने यह मुद्दा राज्यसभा में उठाया जहां भाजपा के अरुण जेटली सहित तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने दयाशंकर सिंह की आलोचना की है। पार्टी ने दयाशंकर सिंह पर कार्रवाई करते हुए उन्हें उपाध्यक्ष पद से हटा दिया है। सोशल मीडिया पर इस खबर के बहाने भाजपा लोगों के निशाने पर है। यहां आई टिप्पणियों में दयाशंकर सिंह के बयान को भाजपा की मानसिकता भी बताया जा रहा है।
भारतीय हॉकी के महान खिलाडिय़ों में शामिल मोहम्मद शाहिद का आज निधन हो गया है। वे काफी समय से बीमार चल रहे थे। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान शाहिद ने 1980, 1984 और 1988 के ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। सोशल मीडिया में उनके निधन पर कई लोगों ने शोक जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि हमने उन्हें बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन न तो हमारी प्रार्थनाएं काम आईं और न ही उनको दी जाने वाली चिकित्सकीय मदद।
राहुल इस साल बन सकते हैं कांग्रेस अध्यक्ष
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को इसी साल पार्टी की बागडोर मिल सकती है। राहुल को ऑल इंडिया कांग्रेस समिति के विशेष सत्र में पार्टी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। 1998 से पार्टी की कमान संभाले हुए सोनिया गांधी अपने पुत्र के लिए अध्यक्ष पद को छोड़ेंगी। हालांकि वह कांग्रेस संसदीय पार्टी की प्रमुख बनी रह सकती हैं। सूत्रों के अनुसार, राहुल को कमान मिलने के बाद वह पुरानी टीम के बजाए नई टीम के साथ काम करना पसंद करेंगे। पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले माना जा रहा है कि वह संगठन में बड़ा फेरबदल कर सकते हैं। नए महासचिवों के साथ-साथ अन्य पदों पर नए लोगों की नियुक्तियां हो सकती हैं। वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ नए चेहरों को भी राहुल की टीम में जगह दी जाएगी। सूत्रों की मानें तो प्रियंका गांधी को इस सत्र में कोई पद दिए जाने की संभावना नहीं है।
-दिल्ली से ऋतेन्द्र माथुर