01-Aug-2016 09:27 AM
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वाणिज्यिक कर विभाग की भर्राशाही के कारण प्रदेश में सेल्स टैक्स चोरी पर लगाम नहीं लग रही है। प्रदेश में जितना उत्पादन और विक्रय हो रहा है उस हिसाब से सरकार को टैक्स नहीं मिल रहा है। आखिर मिले भी कैसे? सेल्स टैक्स चोरी करने वालों के खिलाफ न तो विभागीय अधिकारी और न ही मंत्री दम दिखा पा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश में सेल्स टैक्स की चोरी अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर धड़ल्ले से चल रही है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह देखिए कि विभाग में चल रही गतिविधियों की जानकारी खुद मंत्री जयंत मलैया तक को नहीं है। तभी तो पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड के फर्जीवाड़े के मामले में उनसे पूछने पर वे कहते हैं मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। यानी मामला हाईकोर्ट तक पहुंच जाता है और मंत्री को खबर नहीं रहती है।
हालांकि विभाग में अभी भी कुछ ऐसे ईमानदार अफसर हैं जो पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड जैसी टैक्स चोरी करने वाली संस्थाओं के खिलाफ बिना किसी दबाव के काम करके सरकार को 10 करोड़ रुपए के राजस्व का लाभ कराते हैं। प्रदेश के इस कुख्यात मामले में जिस तरह विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने नाफरमानी दिखाई उससे ऐसा लगने लगा था कि यह कम्पनी 10 करोड़ रुपए का अर्थदंड पचा जाएगी। लेकिन हाईकोर्ट ने भी उसे आइना दिखा दिया। हैरानी तो इस बात की होती है कि इस मामले में जब प्रदेशभर में बवाल मचा था उस समय विभाग के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पूछपरख नहीं की। हालांकि विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने पत्र लिखकर जरूर चेताया था। ऐसे में सवाल उठता है कि जब जवाबदार ही गंभीर मामलों को लेकर चुप बैठेंगे तो विभाग की भर्राशाही कैसे दूर होगी।
प्रदेश में वाणिज्यिक कर विभाग के अधिकारियों और टैक्स चोर व्यापारियों के बीच ऐसा गठबंधन हो गया है कि अब विभाग के ईमानदार अफसर डरे-सहमे हुए हैं। उन्हें डर सता रहा है कि अगर उन्होंने किसी टैक्स चोर व्यापारी के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाया तो उनकी नौकरी भी दांव पर लग सकती है। दरअसल, बीते साल नवंबर में सागर के डिप्टी कमिश्नर एचएस ठाकुर को षड्यंत्र पूर्वक जिस तरह तथाकथित घूसकांड में फंसाया गया
था उससे विभाग के अन्य अफसर भी डरे हुए हैं। इसका परिणाम यह है कि सागर के संभागीय उपायुक्त कार्यालय में डिप्टी कमिश्नर एचएस ठाकुर की जगह कोई जाने को तैयार नहीं है। इस कारण संभागीय उपायुक्त कार्यालय पिछले 9 महीनों से प्रभारी अफसरों के भरोसे चल रहा है। अफसरों के नहीं होने से कार्यालय के कामकाज पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जानकारी के अनुसार कार्यालय में असिस्टेंट कमिश्नर के दो पद हैं। जिसमें से एक सागर वृत्त में है जबकि दूसरा उपायुक्त कार्यालय में है। पिछले महीनों में सागर वृत्त में पदस्थ टीसी वैश्य के रिटायर होने से यह पद भी खाली पड़ा है।
आलम यह है कि वाणिज्यिक कर विभाग के आला अधिकारी सागर में असिस्टेंट कमिश्नर और डिप्टी कमिश्नर नहीं भेज पाने का एक अलग ही कारण बता रहा है। इंदौर स्थित आयुक्त कार्यालय के एक एडिशनल कमिश्नर का कहना है कि इस समय विभाग में सहायक आयुक्त और उपायुक्त स्तर के अफसरों की कमी है। इंदौर में अपर आयुक्त के 9 में से 7 पद खाली हैं। संभागों में पदस्थों करने के लिए डीसी के 43 में से 20 पद खाली हैं। सहायक आयुक्त के 53 पद हैं, उनमें से 20 खाली हैं। हालांकि विभाग के इस जवाब मेें कोई दम नहीं है क्योंकि सागर में हुए ट्रेप के पहले भी लगभग यही स्थिति थी।
लूप लाइन में जाने को तैयार...
वाणिज्यिक कर विभाग में टैक्स चोर व्यापारियों और भ्रष्ट अफसरों की सांठ-गांठ का असर यह है कि ईमानदार अफसर लूप लाइन में जाने को तैयार हैं लेकिन वे सागर जैसी जगहों पर जाने से कतरा रहे हैं। बताया जाता है कि करीब तीन महीने पहले इंदौर में पदस्थ एक असिस्टेंट कमिश्नर का सागर ट्रांसफर होना तय हो गया था। लेकिन उन्होंने विभागीय मंत्री समेत अन्य जगह गुहार लगाकर अपना ये ट्रांसफर रुकवा लिया। बदले में वह विभाग की लूप लाइन में जाने को तैयार हो गए। ऐसे में फिलहाल सागर संभागीय कार्यालय की जिम्मेदारी जबलपुर कार्यालय में पदस्थ डिप्टी कमिश्नर ओपी वर्मा और असिस्टेंट कमिश्नर एनएस चौहान के प्रभार में है। अफसरों के नहीं होने से शासन को राजस्व की हानि तो हो रही है। साथ ही व्यापारी वर्ग भी परेशान होता है। हालात ये है कि साधारण अपीलीय मामलों में सुनवाईयां कई-कई तारीखों में निपटाई जा रही हैं। चूंकि जबलपुर से सागर जाने वाले अफसरों के पास पहले से ही जबलपुर और छिंदवाड़ा जैसे बड़े सर्किल का प्रभार है। इसलिए वे भी बमुश्किल सागर का काम निबटा पा रहे हैं। अफसरों के नहीं होने से कई व्यापारियों की मौज है। वे समय पर टैक्स जमा नहीं कर रहे। यहां तक कि जिन पर रिकवरी निकली है वे उसे जमा करने में कतरा रहे हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि किसी भी तरह की जुर्माने की कार्रवाई का अधिकार केवल सहायक आयुक्त या उससे ऊपर के अफसर के पास होता है। इसलिए फिलहाल जब तक वे नहीं है, टैक्सेशन में मनमानी की जा सकती है।
-इंदौर से विशाल गर्ग