01-Aug-2016 09:18 AM
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किसानों को राहत देने के लिए राज्य सरकार ने 10 लाख टन प्याज बिना सोचे समझे तो खरीद लिया लेकिन अब वही प्याज सरकार को रुला रही है। किसानों से छह रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से खरीदी गई प्याज भंडारण के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होने से अब सड़ रही है। खरीदी, भंडारण और परिवहन खर्च के बाद 7.50 रुपए प्रतिकिलो की प्याज को चार रुपए में बेचा जा रहा है बावजूद खरीदार नहीं पहुंच रहे हैं। आलम यह है कि प्रदेश के 650 गोदामों से 57 पर अधिकारी तराजू लेकर बैठे रहते हैं। अब तो आलम यह है कि टारगेट पूरा करने के लिए अधिकारी-कर्मचारी खुद प्याज खरीदने लगे हैं। राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) ने 31 जिले में सहकारी समितियों के जरिए 28 जुलाई तक 7500 क्विंटल प्याज की बिक्री की थी। प्याज की बिक्री 6 अगस्त तक होगी।
सरकार को 20 करोड़ की चपत
किसानों को राहत देने के लिए खरीदी गई प्याज राज्य सरकार के लिए सिरदर्द बन गई है। शुरुआती दौर में ही 20 करोड़ की चपत लग गई है। प्याज के रखरखाव के लिए पर्याप्त संसाधनों के अभाव में अब तक 90 हजार क्विंटल प्याज जहां खराब हो चुकी है वहीं बैंक से इसके लिए ऋण लेने पर एक करोड़ का ब्याज अलग से हो गया है। यही नहीं सरकार स्तर पर किए जा रहे तमाम प्रयासों के बाद भी व्यापारी प्याज खरीददारी के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में मप्र राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) किसानों से कुल 10 लाख क्विंटल प्याज की खरीदी की थी। इसे 650 गोदामों में रखा गया था। इसमें से 90 हजार क्विंटल प्याज अब तक खराब हो चुका है। हर दिन हजारों क्विंटल प्याज छटाई में खराब हो रही है। अनुमानित 10 फीसदी प्याज खराब होने की जानकारी है। मार्कफेड के अफसरों के मुताबिक बारिश से जितनी प्याज खराब हुई है, वह सब सडऩा शुरू हो गई है। सभी गोदामों में छटाई का कार्य शुरू है। इस पर भी हर दिन दो हजार से ज्यादा मजदूर लगवा कर प्याज की छटाई कराई जा रही है। इस पर आने वाला खर्च इससे अलग है। प्याज की खरीदी के बाद लागत करीब 12 रुपए प्रति किग्रा. पड़ रही है। हालांकि बाजार में चूंकि रेट काफी नीचे है, ऐसे में नुकसान पर प्याज बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
प्याज खरीदी के बाद परिवहन, भंडारण आदि को मिलाकर कुल 2.50 रुपए प्रति किग्रा का खर्च आया है। यह राशि भी बैंक से ऋण लेकर करीब 25 करोड़ रुपए खर्च की गई है। इस पर भी सरकार को ब्याज देना है। अब तक में 10 लाख क्विंटल खरीदी के लिए कुल 85 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च मार्कफेड उठा चुकी है। बताया जाता है कि प्याज की खरीदी और बिक्री पर होने वाले नुकसान में से आधा केन्द्र सरकार वहन करेगी।
नीलामी का प्रयास भी विफल
मार्कफेड ने नुकसान से बचने के लिए इस प्याज को बाजार में नीलाम करने का निर्णय लिया था। इसके बाद टेंडर जारी किया गया। बताते हैं कि न्यूनतम 60 पैसे प्रति किग्रा से लेकर 3.16 रुपए तक का रेट आया। इसके बाद मार्कफेड ने नीलामी प्रक्रिया को निरस्त कर दिया। इसके बाद 4 रुपए प्रति किग्रा की दर से खुली बिक्री करने का निर्णय लिया गया। बताया जाता है कि बगैर तैयारी और भंडारण के लिए पुख्ता व्यवस्था करने से पहले प्याज की खरीदी व करोड़ों रुपए की बर्बादी के मामले में लापरवाही सामने आई है। मप्र वेयर हाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन से अनुबंधित सामान्य वेयरहाउस में प्याज का भंडारण किया गया, नतीजतन करोड़ों की प्याज सड़ गई, वहीं कॉर्पोरेशन ने प्याज खरीदी के एक महीने बाद इसके उचित भंडारण की कवायद शुरू की और 12 अधिकारियों के दल को नासिक भेजा। दल ने दो दिन नासिक एवं आसपास प्याज के भंडारण वाली तकनीक से निर्मित वेयरहाउस का निरीक्षण किया। दल की अनुशंसा लाखों टन प्याज को सडऩे से नहीं बचा सकी। वजह देर से की गई कवायद थी। रिपोर्ट के मुताबिक पर्याप्त उपायों के बावजूद प्याज को तीन-चार महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
तो लगेगी 50 करोड़ की चपत
अब तक में सरकार को करीब 20 करोड़ रुपए की क्षति हो चुकी है। मार्कफेड ने सरकार की गारंटी पर यूको बैंक से 85 करोड़ रुपए का ऋण 9.75 फीसदी दर पर लिया है। 15 करोड़ रुपए सरकार अपने खाते से दे चुकी है। ब्याज की रकम भी सरकार ने देने को कहा है। किंतु करीब 8 करोड़ रुपए का प्याज खराब हो चुका है। जबकि यदि 4 रुपए की दर से प्याज की बिक्री के हिसाब से सरकार को करीब 50 करोड़ रुपए का नुकसान होना संभावित है। इसमें बैंक का ब्याज भी जुड़ा है।
-अनूप ज्योत्सना यादव