एक नई लौह महिलाÓ
18-Jul-2016 09:08 AM 1235030
23 जून को ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह के बाद से शायद ही कोई ऐसा दिन बीता है, जब किसी न किसी नए समाचार ने ब्रिटेनवासियों को भ्रमित और दुनिया को चकित न किया हो। तीन ही हफ्ते के भीतर टेरेसा मे का प्रधानमंत्री बन सकना भी एक ऐसी ही खबर है। जिन परिस्थितियों में टेरेसा मे ने ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने को तैयार हुई वह उन्हें एक नई लौह महिला होने का संकेत देता है। दरअसल यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद यह सवाल उठने लगा था कि प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के बाद ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा। सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर यूरोपीय संघ से अलग होने का ढोल सबसे जोर-शोर से पीटने वाले बॉरिस जॉनसन और घोर-दक्षिणपंथी विपक्षी दल यूकिपÓ (यूके इंडिपेंडेंस पार्टी) के बड़बोले नेता नाइजल फराज भी देखते ही देखते रणछोड़ बन गए। सभी मान रहे थे कि लंदन के लोकप्रिय मेयर रहे जॉनसन ही छात्र जीवन के अपने सहपाठी प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के उत्तराधिकारी बनेंगे। लेकिन जॉनसन ने उम्मीदवारी से ही इनकार कर दिया। लोकलुभावन बातें करने वाले मुंहफट नाइजल फराज ने भी अपनी पार्टी यूकिप का अध्यक्ष पद यह कहते हुए त्याग दिया कि मुझे राजनीति में जो पाना था मैंने पा लिया। अब मैं अपना (सामान्य) जीवन वापस चाहता हूं।Ó यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्षधर और विपक्षी, दोनों अब अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। ऐसे में टेरेसा मे प्रधानमंत्री बनने को तैयार हुई। ब्रिटेन को प्रधानमंत्री के रूप में तीन दशक पूर्व की मार्ग्रेट थैचर जैसी एक ऐसी लौह महिलाÓ मिली है, जिसे लोकप्रिय कहना कठिन है। 2010 से गृहमंत्री रहीं 59 वर्षीय टेरेसा मे अपने पादरी पिता की इकलौती संतान हैं। यूरोपीय संघ को वे भी बहुत शक की नजर से देखती रही हैं। प्रवासी श्रमिकों के प्रति कठोरतापूर्ण रुख के अतिरिक्त वे अपने चटकीले कीमती कपड़ों और उनसे भी महंगे और रंगबिरंगे जूतों-सैंडलों के लिए जानी जाती हैं। टोरी-लिबरल गठबंधन वाली पिछली सरकार में उनके एक सहयोगी मंत्री रह चुके विंस केबल उन्हें एक ऐसी दृढ़निश्चयी महिला बताते हैं जिसके आगे वित्तमंत्री ऑस्बर्न और प्रधानमंत्री कैमरन को भी झुकना पड़ जाता था। भारत जैसे देशों के छात्रों के लिए वीसा के नियमों में कठोरता उन्हीं की अकड़ का परिणाम है। 11 जून को यह तय हो जाने पर कि टेरेसा मे ही 13 जून को ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनेंगी, उन्होंने इसी सुपरिचित अकड़ के साथ कहा, ब्रेक्सिट मीन्स ब्रेक्सिट,Ó यानी ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो कर ही रहेगा। लेकिन अब देखना यह है कि वह संकट से ब्रिटेन को कैसे उबारती हैं। संसद की वैधता संकट में जनमत संग्रह के नतीजे ने देश के सबसे महत्वपूर्ण जनप्रतिनिधि संस्थान की वैधता को, यानी संसद की प्रासंगिकता को भी झकझोर कर रख दिया है। सांसदों को अब एक ऐसे तलाक पर अपनी् स्वीकृति की मुहर लगानी पड़ेगी जिसे वे चाहते ही नहीं थे। उनसे पूछा जा सकता है कि क्या वे अब भी उस जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उनसे सहमत ही नहीं है? तलाक की शर्तों पर यूरोपीय संघ के साथ आगे होने वाली बातचीत के मद्देनजर संसद की भूमिका को गहरी चोट पहुंची है। होना तो यह चाहिये था कि लगे हाथ मध्यावधि चुनाव भी होते। लेकिन, इसके लिए न तो विभ्रमित टोरी और न ही किंकर्तव्यविमूढ़ लेबर पार्टी के नेता ही तैयार हैं। ब्रिटेन अभी लंबे समय के लिए अपने आप में ही व्यस्त रहेगा। तलाक की प्रक्रिया संबंधी वार्ताओं में ही उलझा रहेगा। विदेश नीति उपेक्षित और स्थगित रहेगी। भारत, चीन और ऑस्ट्रलिया जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर पहुंचने की वे वार्ताएं नहीं कर पायेगा जो फिलहाल यूरोपीय संघ कर रहा था। अब ब्रिटेन को वे अलग से और अकेले करनी पड़ेंगी। अन्य देश भी अलग-थलग पड़ गए ब्रिटेन को वही राजनीतिक महत्व नहीं देंगे जो वे 27 देशों वाले यूरोपीय संघ को देंगे। यूरोपीय संघ भी ब्रिटेन के साथ भावी वार्ताओं में उसे वैसी रियायतें देने से कतरायेगा, जैसी वह उसे संघ का सदस्य बनाए रखने लिए दिया करता था। जनमतसंग्रह के अनपेक्षित परिणाम से इस समय यूरोपीय संघ के जर्मनी, फ्रांस, इटली इत्यादि देशों में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर जो रोष दिखाई पड़ रहा है, उसे उतरने में भी समय लगेगा। हां, इसमें कोई समय नहीं लगा कि यूरोपीय संघ के प्रमुख नेताओं में जो जगह अब तक डेविड कैमरन को मिला करती थी, वह अब इटली के प्रधानमंत्री मत्तेओ रेंसी को दी जाने लगी है। -ऋतेन्द्र माथुर
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