प्रदेश भाजपा में ढाक के तीन पांत
01-Aug-2016 09:03 AM 1234818
मप्र में अघोषित तौर पर 2018 विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। प्रदेश सरकार चुनावी तैयारी में जुट गई है, लेकिन  भाजपा संगठन अभी कछुए की चाल से चल रहा है। दरअसल पार्टी ने अभी तक अपनी नई कार्यकारिणी का गठन तक नहीं किया है। पुरानी काम चलाऊ कार्यकारिणी से काम चलाया जा रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी टीम बनाएंगे, उसके बाद प्रदेश की टीम गठित होगी। आधा साल बीत गया इस चक्कर में। इतनी देर पहले कभी नहीं हुई। आलम यह है कि प्रदेश में ऊपरी तौर पर मजबूत दिख रही भाजपा के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के बीच निष्क्रियता फैलती जा रही है। इसी का परिणाम है कि अभी हाल ही में पार्टी मैहर, मंडीदीप और ईशागढ़ निकाय चुनाव में बुरी तरह हारी है। नई कार्यकारिणी को लेकर प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान का कहना है कि अभी विचार विमर्श चल रहा है। भाजपा में बहुत विचार-विमर्श के बाद जो निर्णय या निष्कर्ष आते हैं अक्सर वे खोदा पहाड़ की तर्ज पर निराश करने वाले और जगहंसाई के होते हैं। क्योंकि भाजपा में अक्सर वही होता है जो पूर्व निर्धारित होता है यानी ढाक के तीन पात। हालांकि प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी की घड़ी लगता है अब निकट आ गई है। वैसे तो कई बार कहा गया कि गठन शीघ्र किया जाएगा मगर नेताओं के आश्वासन पर विश्वास कम रह गया सो जैसा लिखा भी जाता है। हालांकि अधिकृत तौर पर यह भी कहा जाता है कि पुराने ही सही प्रदेश पदाधिकारी तो हैं न। लेकिन नंदूभैया की टीम में कौन आएगा कौन जाएगा इसे लेकर असमंजस ने सबको उदासीन कर रखा है। कार्यकर्ताओं को डर है बहुत मंथन के बाद अमृत कम, विष के ज्यादा निकलने का। पुराने नेता-कार्यकर्ताओं को नई टीम में जगह मिलेगी या मामूली बदलाव के बाद पैराशूट लैंडिंग करने वाले स्काईलेब ही धमाके के साथ आएंगे। सच्चे और अच्छे कार्यकर्ताओं को जगह नहीं मिली तथा निजी समर्थकों की ताजपोशी होती है तो अगले चुनाव की डगर कठिन होती दिखेगी। मिसाल के तौर पर तीन नगरीय चुनावों मंडीदीप, मैहर और ईशागढ़ में भाजपा की एकतरफा हार मनमानी करने वालों को कार्यकर्ताओं की तरफ से जगाने वाला थप्पड़ है। कार्यकर्ताओं में उम्मीद है कार्यकारिणी गठन में पहाड़ खोदने पर चुहिया तो कम से कम नहीं निकलेगी। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि कार्यकारिणी गठन में हो रही देरी का मुख्य कारण है प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत की रणनीति। दरअसल पद संभाले सुहास भगत को तीन महीने बीत गए हंै, लेकिन अभी तक पार्टी नेताओं को न तो भगत की कार्यप्रणाली समझ में आई और न ही वे उनकी रणनीति को समझ पा रहे हैं। भगत नियमित रूप से दौरा भी करते हैं, इस दौरान वे पार्टी नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर रहे हैं, लेकिन उनकी कार्यप्रणाली को लेकर संगठन में ज्यादा बदलाव भी नहीं दिखा है। साथ ही उनकी मदद के लिए नियुक्त किए गए सह संगठन मंत्री अतुल राय के कार्य की भी पार्टी में समीक्षा शुरू हो गई है। हालांकि संगठन महामंत्री के रूप में सुहास भगत 2018 की रणनीति पर काम कर रहे हैं, संभवत: जल्द ही गठित होने वाली प्रदेश कार्यकारिणी में भगत की सख्ती का असर दिख सकता है। भाजपा नेता सुहास भगत को हलके में तो नहीं ले रहे हैं, लेकिन उनकी परेशानी इस बात को लेकर है कि उन्हें पूर्व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की तरह भगत के दरबार में तवज्जो नहीं मिल रही है। पार्टी नेताओं का मानना है कि नई कार्यकारिणी में सबसे ज्यादा दखल संगठन महामंत्री का ही होगा। इसलिए नेता भगत से नजदीकियां बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। संगठन महामंत्री के तीन महीने के कार्यकाल के दौरान खास बात यह निकलकर आई है कि वे पार्टी के हर पदाधिकारी और कार्यकर्ता से मिलते हैं और सुनते भी हैं, लेकिन वे किसी पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करते हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि नई कार्यकारिणी में ऐसे नेता फ्रंट पर आ सकते हैं जो पिछले कुछ समय से भाजपा में बैकफुट पर चले गए थे। हर गतिविधि पर संघ की नजर सुहास भगत के जरिए प्रदेश भाजपा में संघ का सीधा दखल बढऩे लगा है। प्रदेश में होने वाली हर गतिविधि पर संघ की नजर है। ऐसे में चाहे मंत्री पद से हटाए जाने के बाद बाबूलाल गौर द्वारा विधानसभा में सरकार को घेरने का मामला हो या फिर दो दिन में पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय द्वारा भोपाल में दी गई भुट्टा पार्टी हो। संगठन महामंत्री के जरिए संघ तक सबकी रिपोर्ट पहुंच रही है। मंत्री पद से हटाए जाने के बाद नाराज सरताज सिंह का गुस्सा संघ ने सुहास भगत के जरिए ही शांत कराया। -अक्स ब्यूरो
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