भ्रष्टों के खिलाफ यह कैसी नीति पहले हटाओ फिर लाओ
01-Aug-2016 08:55 AM 1234865
अगर कहा जाए की मप्र का कृषि विभाग घोटालेबाजों का अड्डा बन गया है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। दरअसल इस विभाग के अधिकारियों द्वारा कृषि कल्याण की योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। आलम यह है कि जिलों में पदस्थ उप संचालकों द्वारा केन्द्र और राज्य सरकार की योनजाओं को पलीता लगाया जा रहा है और विभाग में उन्हें पहले हटाओं फिर वापस लाओं की नीति पर काम चल रहा है। ऐसे में ये अफसर समझ रहे हैं कि वे जितना चाहे भ्रष्टाचार करें कोई उनका बाल बांका भी नहीं करेगा। अभी हाल ही में रतलाम में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। यहां के उप संचालक केएस खपेडिय़ा के खिलाफ लगातार अनियमितताओं की शिकायत आ रही थी। उनके खिलाफ अलीराजपुर की एक शिकायत को गंभीरता से लेते हुए उन्हें पद से हटा दिया गया। लेकिन 15-20 दिन बाद पुन: उन्हें फिर वहीं पदस्थ कर दिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार खपेडिय़ा को हटाया क्यों गया था और फिर उन्हें उसी जगह पदस्थ क्यों किया गया। विभाग के अधिकारी कहते हैं कि विभाग में इन दिनों ऐसा ही चलन है। पहले अनियमितता की शिकायत आने पर दोषियों को हटाया जाता है और फिर बाद में उन्हें पदस्थ कर दिया जाता है। इसी कड़ी में इस विभाग के आला अफसर ने केएस खपेडिय़ा की फाइल हाथों-हाथ लेकर मंत्री के पास गए और दोबारा उसी जगह पदस्थ कराया। यानी कृषि विभाग में अंग्रेजों की नीति पर काम चल रहा है। दोषियों को पहले हटाओं और फिर उनसे कहा जाता है कि अगर नौकरी सही सलामत चाहते हो तो अब जैसा हम कहेंगे वैसा करना। फिर उसके बाद उक्त अधिकारी को पदस्थ कर दिया जाता है। इससे विभाग के अधिकारियों में संशय की स्थिति है। आलम यह है कि बड़ी-बड़ी अनियमितता करने वाले बड़े अधिकारियों को बख्श दिया जाता है और छोटे अधिकारियों पर कार्रवाई की जाती है। विभाग में चल रही इस भर्राशाही से हर कोई परेशान है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश के 51 जिलों में से लगभग आधे जिलों में कृषि उप संचालक पदस्थ हैं बाकी जिले प्रभारियों के भरोसे चल रहे हैं। इनमें से आधे उप संचालक किसी न किसी जांच में फसे हुए हैं। आलम यह है कि कृषि विभाग में खाद, बीज और अन्य किसान उपयोगी योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। इसको लेकर विधानसभा में लगातार सवाल किए जा रहे हैं। आलम यह है कि कृषि उपसंचालकों के भ्रष्टाचार की गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी।  सागर जिले में बीज वितरण समितियों को लाभ पहुंचाने के चलते लगभग छह करोड़ रुपये का घपला सामने आने पर कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कृषि विभाग के उपसंचालक एमएल चौहान को निलंबित कर दिया है। विधानसभा में कांग्रेस विधायक हर्ष यादव ने सागर जिले में बीज वितरण और अनुदान में हुई गड़बड़ी का मामला उठाया। उन्होंने पूर्व में हुई जांच का हवाला दिया। कृषि मंत्री बिसेन ने तबादले का हवाला दिया, मगर यादव ने इस कार्रवाई को नाकाफी बताया। आखिरकार बिसेन ने चौहान को निलंबित किए जाने के साथ जांच कराने का ऐलान किया। यादव का आरोप था कि बीज समितियों को लाभ पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां हुई हैं, इसमे लगभग छह करोड़ की अनियमितता हुई है। इस दौरान भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन कहा कि 11 लाख से अधिक का गलत भुगतान भी किया गया है। ऐसे अफसर के सिर्फ तबादला किया जाना ठीक नहीं है। यह तो एक अफसर की कहानी है लगभग सभी जिलों में उप संचालकों द्वारा इसी तरह भ्रष्टाचार किया जा रहा है। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां किसानों के हित में काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विभागीय अफसर किसानों को छलने में लगे हुए हैं। मप्र में किसानों की भलाई के लिए संचालित योजनाओं में सब्सिडी घोटाला सामने आ चुका है। बताया कि फर्जी आवेदनों पर कृषि विभाग के मैदानी अधिकारियों ने प्रकरण बनाकर सब्सिडी हजम कर ली। यह खुलासा ड्रिप स्प्रिंकलर योजना की जांच में सामने आया था। इसके बाद रीवा, सतना, सागर, धार, रतलाम में विभागीय स्तर पर कराई गई जांच में गड़बड़ी के प्रमाण मिले हैं। इस आधार पर रतलाम के तत्कालीन उप संचालक सीके जैन और धार के आरपी कनेरिया के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए डायरेक्टर से अभिमत मांगा गया है। इस मामले में जैन का कहना है कि मुझसे जवाब मांगा गया था जिसे मैंने बनाकर भेज दिया है। वहीं सतना में उप संचालक एसके शर्मा, रीवा और सागर के उप संचालकों के खिलाफ डीई का ऑर्डर कर दिया गया है। बताया जाता है कि इन जिलों में जब जांच की गई तो सामने आया कि बिल की फोटोकॉपी लगाकर पैसे निकाल लिए गए। किसान के खातों में सब्सिडी जमा नहीं कराई गई। पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारों को ताक पर रखकर हितग्राहियों का मनमर्जी से चयन किया गया। हितग्राहियों को जो सामग्री वितरित की गई, वह भी संदेह के घेरे में है। केन्द्रीय योजनाओं में किसानों से यंत्रों का चयन नहीं कराकर निजी कंपनियों को सीधे क्रय आदेश दिए गए। लक्ष्य के विरुद्ध अधिक पूर्ति कराकर शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया। प्रदेश को चार बार कृषि कर्मण अवार्ड दिलाने वाले किसानों के साथ किस तरह का खेल खेला जा रहा है यह हर बार खेती-किसानी के सीजन में देखने को मिलता है। मैदानी अफसर  कंपनियों के साथ मिलकर किसानों को घटिया से घटिया खाद-बीज दिलवाते हैं और इसमें जमकर फर्जीवाड़ा किया जाता है। लेकिन विसंगति यह देखिए कि लगभग सभी जिलों में हो रहे इस भ्रष्टाचार की भेंट अभी तक केवल चार उप संचालक ही चढ़ पाए हैं। इनमें दो भाई नामदेव हेडाऊ और जानराव हेडाऊ भी शामिल है। सागर में नामदेव हेडाऊ को लोकायुक्त पुलिस ने बीज वितरण समिति प्रबंधक से बीज वितरण के लायसेंस नवीनीकरण की ऐवज मे दो लाख रूपए की रिश्वत लेने के आरोप मे गिरफ्तार किया। उसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। वहीं एक अन्य मामले में जानराव हेडाऊ को भी निलंबित किया गया है। उल्लेखनीय है कि  2012 में इनके दोनों के खिलाफ जाति प्रमाण फर्जी होने की शिकायत शासन से की गई थी। तीन साल तक चली लंबी जांच के बाद पांच सदस्यीय समिति द्वारा दोनों भाईयों के जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार दिया। वहीं दतिया में पदस्थ रहे कृषि उप संचालक एसपी शर्मा का रिश्वत लेते एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें शर्मा एक कृषि उपकरण के सप्लायर से नोटों की गड्डियां लेते हुए दिखे थे।  जिसको देखने के बाद कृषि विभाग ने शर्मा के खिलाफ कार्रवाई कर निलम्बित कर दिया। वहीं अभी हाल ही में विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान अनियमितता के कारण एमएल चौहान को निलंबित किया गया है। यानी जिस विभाग में पग-पग पर भ्रष्टाचार पसरा हुआ है वहां भ्रष्टों को इस तरह संरक्षण दिया जा रहा है कि उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई नहीं हो पा रही है। विभाग एक तरफ कृषि को लाभ का धंधा बनाने में जुटा रहा दूसरी तरफ अमानक खाद-बीज बेचने और बिकवाने वालों को संरक्षण दिया जा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि माननीयों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। बालाघाट से भाजपा सांसद बोध सिंह भगत को नकली बीज बेच दिए गए। यह खुलासा तब हुआ जब सांसद ने अपने खेत में धान की बुवाई की, लेकिन रोपा गया बीज अंकुरित नहीं हुआ। प्रदेश में अब तक नकली खाद बेचने वाली 6 कंपनियों व 4 डीलरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। पिछले एक सप्ताह में हर जिले में कारोबार कर रही कंपनियों व उनके डीलरों से सैंपल लेकर राज्य के अलावा केंद्र सरकार में रजिस्टर्ड लैब में टेस्ट कराए गए। 30 से अधिक सैंपल जांच में फेल निकले। इसके बाद गुना, खरगोन, धार व झाबुआ जिले में कृषि विभाग के अधिकारियों ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। बीज उत्पादक समितियां जांच के दायरे में आई कृषि विभाग ने 2014-15 के गेहूं बीज घोटाले में तत्कालीन उपसंचालक एमएल चौहान को सस्पेंड करने के बाद बीजोत्पादन से जुड़ी समितियों को जांच के घेरे में ले लिया है। विभाग के प्रमुख सचिव ने जांच के लिए तीन अधिकारियों की कमेटी गठित की है। कमेटी कब यहां आएगी। यह तय नहीं है। बीज घोटाले में सस्पेंड हुए एमएल चौहान नीमच में उप संचालक थे। बीज समितियों की जांच कृषि संयुक्त संचालक डीएल कोरी की अगुवाई में भोपाल के कृषि उप संचालक आरडी सिलावट और उनके सहयोगी अधिकारी करेंगे। बीज घोटाला करीब डेढ़ साल पहले उप संचालक चौहान के कार्यकाल में हुआ था। पिछले दिनों यह घोटाला विधानसभा में उठा। इस घोटाले में फंसे तत्कालीन उप संचालक चौहान ने 11.99 लाख के नीम तेल का भी भुगतान किया था। नीम तेल का प्रावधान नहीं होने के बावजूद उनके द्वारा भुगतान किया जाना नियम विरुद्ध माना गया है। उप संचालक चौहान सागर में 10 जनवरी 13 से 11 मई 15 तक रहे। इस दौरान उनका नाम बीज समितियों द्वारा उत्पादित बीज, बिक्री और किसानों की अनुदान राशि से जुड़ी आर्थिक गड़बड़ी के कई मामले उजागर हुए। उपसंचालक के बेटे की कंपनी ने किया बंटाढार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विदिशा में कृषि उपसंचालक बीएल पाठक ने मार्कफेड के अफसरों के साथ मिलकर अपने बेटे की कंपनी की घटिया वर्मी कंपोस्ट खाद किसानों को बंटवा दी। राज्य सरकार ने किसानों को उन्नत खेती के लिए प्रेरित करने किसानों को गेहूं के उन्नत बीज के अलावा वर्मी कंपोस्ट खाद उपलब्ध कराना थी। इसी का फायदा उठाते हुए डीडीए ने अपने बेटे सोमेश पाठक की कंपनी सद्गुरू हाईटेक रिसर्च को खाद सप्लाई का काम दिला दिया। यह खाद इतना घटिया था कि कई किसानों ने इसे लेने से ही इंकार कर दिया। उसके बाद कृषि विभाग के अधिकारियों के कान खड़े हुए। कृषि विभाग के संचालक मोहन लाल मीणा ने किसानों को घटिया वर्मी कंपोस्ट खाद वितरण करने के मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। जिसमें कृषि विभाग के अपर संचालक बीएम सहारे को अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं जांच दल में संयुक्त संचालक केपी अहिरवार, एके रस्तोगी और भोपाल संभाग के संयुक्त संचालक बीएम बालपांडे को भी शामिल किया गया है। इस मामले में जब बीएल पाठक से कई बार उनके मोबाइल पर बात करने की कोशिश की गई तो वे फोन काट देते थे। सरदार कितना असरदार कृषि विभाग के भ्रष्टाचार के मूल में एक सरदार जी की महत्वपूर्ण भूमिका है। बताया जाता है कि सरदार जी के बुने गए ताने बाने से ही विभाग में भ्रष्टाचार किया जा रहा है। सरदार जी कितने असरदार हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके बनाए घोटाले की रणनीति के भले ही अधिकारी उसके क्रियान्वयन के दौरान फंस जाते हैं लेकिन सरदार जी पर कोई आंच नहीं आती है। विभाग के कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि सरदार जी ही तय करते हैं कि किस कंपनी से क्या खरीदना है और क्या नहीं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश में अमानक खाद, बीज बेचने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है। अगर किसी जांच में कोई अधिकारी फंस जाता है तो वहां सरदार जी का असर काम करता है और उक्त अधिकारी को बचा लिया जाता है। यानी पूरा कृषि महकमा सरदार जी पर मेहरबान है। यहां यह बता दें कि पूर्व में सरदार जी पर आयकर विभाग का छापा भी पड़ चुका है लेकिन असरदार सरदार ने सबको मैनेज कर लिया। यह तो हमारा रुटीन वर्क है : बिसेन उप संचालक रतलाम केएस खपेडिय़ा के बारे में हाथों हाथ फाइल कराने पर बिसेन कहते हैं कि प्रमुख सचिव और मंत्री के बीच क्या हो रहा है यह बताने की बात है क्या, यह तो हमारा रुटीन वर्क है। किस कारण से हटाया मुझे पता नहीं, फाइल देखूंगा तब बताउंगा। -कुमार राजेंद्र
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