उमा के आने से भाजपा में उबाल
15-Apr-2013 11:11 AM 1234808

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त होने के बाद पहली बार भोपाल आईं उमा भारती का स्वागत कई नेताओं के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। प्रदेश कार्यालय में उस दिन उमा भारती के आने से भाजपाइयों के चेहरे की रंगत उड़ गई थी। कई नेता तो यह कहते पाए गए कि आखिर कैसे झेलेंगे दीदी को। कभी उमा को हाशिए पर धकेलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर स्वयं उन्हें घर से लेकर आए थे। उमा के आते ही हुजूम ने जो गगन चुंबी नारेबाजी की उससे साफ जाहिर हो गया कि भाजपा की यह फायर ब्रांड नेत्री मध्यप्रदेश में आप्रासंगिक नहीं हुई है। भले ही वो मध्यप्रदेश से धकेल कर यूपी से चुनाव जीती हों परंतु मध्यप्रदेश में चुनाव के वक्त वह शिवराज के साथ पूरी दम खम के साथ रहेंगी। कार्यकर्ताओं और समर्थकों के दिल में उमा का जो स्थान है उसे 8 वर्ष के वनवास के बावजूद कोई डिगा नहीं पाया है। लंबे अरसे बाद मध्यप्रदेश के भाजपा कार्यालय में पहुंची उमा भारती ने शिवराज सिंह की तारीफ पर तारीफ की और मध्यप्रदेश के विकास को सर्वश्रेष्ठ बताया। प्रभात झा ने भी मुक्त कंठ से मुख्यमंत्री शिवराज की प्रशंसा की।
दरअसल यह प्रशंसाए इस बात के लिए थीं कि भाजपा की अंदरूनी कलह जगजाहिर न हो, लेकिन मंच पर आसीन चेहरे केवल नजरें मिला रहे थे। दिल नहीं मिल रहे थे, शिवराज सिंह चौहान का चेहरा पढ़ा जा सकता था उमा भारती के दिगन्त भेदी नारों में शिवराज का तेज कहीं न कहीं दबता नजर आया। यह बात सत्य है कि मध्यप्रदेश में शिवराज एक निर्विवाद सर्वमान्य नेता हंै, लेकिन ऐन चुनाव से पहले उमा भारती और प्रभात झा को महत्वपूर्ण भूमिकाओं में लाकर राजनाथ सिंह ने कहीं न कहीं शिवराज की चैन की नींद हराम तो कर ही दी है। सीधे तौर पर भले ही इसका प्रभाव दिखाई न दे, लेकिन भीतर ही भीतर कहीं न कहीं खींचतान अवश्य उभरेगी। उमा भारती और प्रभात झा की नई भूमिकाओं के चलते दोनों के समर्थक अब यह उम्मीद लगा रहे हैं कि टिकिट वितरण में दोनों नेताओं को अवश्य तवज्जो दी जाएगी। भाजपा को नजदीक से देखने वालों का भी कहना है कि चुनाव के समय शिवराज और नरेंद्र सिंह तोमर को फ्री हैंड मिलना अब संभव नहीं है। कम से कम टिकिट वितरण में तो संतुलन स्थापित करना ही होगा। दरअसल नौकरशाही ने शिवराज को जो फीडबैक दिया है और उसके मुताबिक जिन विधायकों के टिकिट काटे जाने हैं वे अब उमा भारती तथा प्रभात झा की मौजूदगी से थोड़े आश्वस्त नजर आ रहे हैं। कहीं न कहीं उन्हें संबल मिलने की आशा है। वैसे भी उमा भारती साढ़े सात साल बाद प्रदेश की राजनीति में वापस लौटी हैं पर कटुता अभी भी उनके अंतर मन में अवश्य कहीं न कहीं किसी कोने में जरूर रही होगी क्योंकि पिछले साढ़े सात साल में उनके साथ जो सलूक हुआ उसे भुलाना आसान नहीं है और न ही इतना आसान है प्रभात झा के लिए उस क्षण को भुलाना जब पोखरण की तर्ज पर उन्हें बिना बताए तोमर की ताजपोशी की तैयारी गुप-चुप कर ली गई। इसीलिए शिवराज और तोमर के चुनावी गणित को कहीं न कहीं उमा और झा की मौजूदगी से नुकसान पहुंचने वाला है। भीतरी सूत्रों की मानें तो शिवराज और तोमर ने कई स्थानों पर मौजूदा विधायकों को बदलने की तैयारी रखी है। इसका असर दिखाई देने लगा है, गुना में भाषण देने से इनकार करने पर जिला मंत्री बहादुर सिंह रघुवंशी ने पूर्व राज्य मंत्री गोपाल सिंह जाटव को मंच पर ही तीन चांटे मार दिए। बाद में रघुवंशी को निष्कासित भी कर दिया गया था। रघुवंशी का दर्द यह है कि वह भीड़ जुटाने से लेकर कालीन बिछाने तक का काम खुद करते हैं, लेकिन जब भाषण देने और माला पहनने की बात आता है तो बड़े नेता आगे हो जाते हैं।  केवल रघुवंशी का ही नहीं बहुत सारे स्थानीय नेताओं का यही दर्द है।
आगामी चुनाव से पहले इस असंतोष को शांत नहीं किया गया तो परिणाम भयानक हो सकते हैं। नेता तो नेता उनके अंग रक्षकों के भी भाव इस कदर बढ़ गए हैं कि अब उनके अहम भी टकराने लगे हैं। हाल ही में दमोह सांसद शिवराज सिंह लोधी पर सागर जिला पंचायत अध्यक्ष हरवंश सिंह राठौर के गनमैन और ड्राइवर ने बंदूक तान दी। शिवराज ने इन लोगों को प्रोटोकाल का उल्लंघन न करने की सीख दी थी, जिस पर विवाद बढ़ गया और मामला यहां तक पहुंच गया। अपने-अपने नेताओं की पैरवी करने के लिए अब भाजपा के कार्यकर्ता भी समाजवादी पार्टी की तर्ज पर मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। भाजपा के स्थापना दिवस समारोह में भी कई स्थानों पर गुटबाजी देखने को मिली है। गुटबाजी का यही आलम रहा तो मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं रह जाएगा। इसीलिए भाजपा के युवा मोर्चा, महिला मोर्चा, किसान मोर्चा में सभी गुटों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए आवश्यकता से अधिक पदाधिकारी ठूंस दिए गए हैं। युवा मोर्चा में 46 पदाधिकारी होने चाहिए तो 133 हैं, महिला मोर्चा में भी 46 होने चाहिए तो 201 हैं, किसान मोर्चा और अल्पसंख्यक मोर्चा में भी आवश्यकता से तिगुने पदाधिकारी लाए गए हैं इसी के कारण अब भाजपा भी खास-खास  लोगों को उपकृत करने वाली पार्टी बनती जा  रही है। उधर किसान मोर्चा के कुछ पदाधिकारियों ने प्रदेश सरकार की किसान नीतियों की खुलकर आलोचना करते हुए शिवराज सिंह को परेशानी में डाल दिया है। चुनाव से पहले किसानों के बीच पनपते असंतोष को दबाने के लिए किसान मोर्चा को सशक्त बनाया जा रहा है। लेकिन लगता है इस मोर्चे में सही पदाधिकारियों की नियुक्ति करने में भाजपा असमर्थ रही है।
भोपाल से सुनील सिंह

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