चीत्कार करते हमले की खामोश सजा
30-Nov-2012 06:30 PM 1234801

दिन-दहाड़े देश की मायानगरी मुम्बई को खून से सराबोर करने वाले खूंखार, दुर्दांत आतंकवादी जिसके हाथ बच्चों, वृद्धों, महिलाओं सहित निहत्थे लोगों को मौत की नींद सुलाते नहीं कापें उसे भारत के महाराष्ट्र की पुलिस ने 21 नवम्बर को गुपचुप तरीके से सुबह साढ़े सात के करीब फांसी दे दी

और महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने अपनी पुलिस के इस शौर्य का वर्णन दूरदर्शन पर इस फांसी की घोषणा कर किया। कसाब की फांसी अब इतिहास बन चुकी है, उससे जुड़ी कहानियां, चाहे वे बिरयानी और कबाब खाने की हों या मुकेश के गाने गुनगुनाने की हों अब कसाब की कब्र में दफन हो चुकी हैं। कसाब की इन अदाओं का महिमागान कर टीआरपी बढ़ाने की जुगत करने वाला मीडिया भी अब शांत है किन्तु सवाल वही मुंह बाये खड़ा है कि यदि हम अमेरिका की तरह आतंकवादियों को उनकी मांद में घुसकर नहीं मार सकते तो कम से कम अपने ही देश में उन्हें छाती ठोंककर सजा ए मौत तो दे सकते हैं। कसाब को सजा देने का श्रेय सरकार स्वयं को दे रही है, किन्तु कसाब को सजा होने में हुयी देरी के कुयश से सरकार नहीं बच सकती, उसकी सुरक्षा पर होने वाले करोड़ों के खर्च को इस देश के करदाताओं ने भोगा है, 66 मासूम लोगों को बेरहमी से मारने वाले कसाब की 1088 दिन मेहमाननवाजी करने के बाद उसकी माकूल सजा पर यदि सरकार को गर्व है तो यह गौरावभाव हर भारतीय के लिए चिंता का विषय है। कसाब को गुपचुप फांसी भारत के लिए निहायत शर्म का विषय बनता जा रहा है, जो कायरता हमने कंधार विमान अपहरण कांड के दौरान दिखलाई वही कायरता 21 नवम्बर को दोहराई गयी। इसी कारण देश के नागरिकों ने कसाब की फांसी पर राहत भले ही महसूस की हो किन्तु उसके जेहन में जो सवालात हैं उनका सामना करना सरकार के लिए कठिन हो सकता है। क्या मुम्बई हमले के बाद भी देश की आतंरिक सुरक्षा इतनी कमजोर है कि यहाँ फांसी जैसे महत्वपूर्ण कदम की जानकारी देश के प्रधानमंत्री को टीवी से लगती है। प्रधानमंत्री को क्यों जानकारी नहीं दी गयी? यह कोई पोखरण परमाणु विस्फोट नहीं था कि जानकारी गोपनीय रखी जाती (पोखरण दो की जानकारी प्रधानमंत्री को थी) यह तो एक आतंकवादी को उसके घृणित कृत्य के लिए दण्डित किये जाने का मामला है, जिसे दुनिया के सारे देश खुलेआम करते हैं, इसमें छुपाने जैसा क्या है? बहरहाल कसाब की फांसी के बाद अब भारत को अपनी आतंरिक सुरक्षा पर गंभीर उपाय करने की आवश्यकता है।
कसाब को फांसी पर चढ़ाने के लेकर संसद में सवाल बार-बार उठा था। कांग्रेस और विपक्ष के बीच तीखी नोक-झोक भी हुई थी। शक की सुई इसलिए भी घूम रही है कि काफी समय से हो-हल्ला और तीखी आलोचनाओं के बाद भी कांग्रेस और मनमोहन सरकार कसाब की दया याचिका खारिज करने के लिए तैयार नहीं थी। कसाब और आतंकवादी देश ने हमारी मातृभूमि को हिंसक कार्रवाई कर लहूलुहान किया था और हमारी संप्रभुता-अस्मिता को बमों और गोलियों से कुचला था। ऐसी करतूत की सजा पर इतनी देर हुई क्यों?
अचानक कांग्रेस और मनमोहन सरकार में इतनी इच्छा शक्ति कैसे जग गयी कि कसाब को फांसी पर लटकाने जैसे गंभीर और बोल्ड निर्णय को अंजाम तक पहुंचा दिया गया? अजमल कसाब के साथ ही साथ संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया? अगर कांग्रेस सही में आतंकवाद के प्रति गंभीर होती और उसमे राष्ट्र की संप्रभुता के प्रति चाकचौबंद जिम्मेदारी होती तो वह सिर्फ कसाब को ही नहीं बल्कि अफजल गुरू को भी फांसी पर लटकाया होता?
गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं व नरेन्द्र मोदी गुजरात के रास्ते केन्द्र की सत्ता पर दस्तक देने के लिए आगे बढ़ रहे हैं और केन्द्र में कांग्रेस अपनी जनविरोधी नीतियों से हलकान भी है, अलोकप्रियता का शिकार भी है, इसलिए एक दृष्टिकोण यह भी है कि कांग्रेस का यह कदम अपनी जनविरोधी नीतियों से उत्पन्न परिस्थितियों के प्रबंधन की नीति से उठा हो सकता है। राष्ट्र की अस्मिता के लिए अजमल कसाब जैसे राष्ट्रद्रोहियों और दुश्मनों का अंत होना जरूरी है और अजमल कसाब का अंत भी हुआ। फर्क यह नहीं पड़ता कि कसाब का अंत  वास्तविक फांसी से हुई है या फिर डेंगू के डंक से? जरूरी यह भी है कि पाकिस्तान सहित सभी आतंकवादी संगठनों को कड़ा संदेश दिया जाये कि भारत भी अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए पराक्रम दिखा सकता है।
केन्द्र और महाराष्ट्र की कांग्रेसी सरकार की एक और अदूरदर्शिता को हमें ध्यान में रखना चाहिए। पाकिस्तान में पूर्व उच्चायुक्त जी पार्थ सारथी ने एक गंभीर सवाल उठाया है। पार्थ सारथी का सवाल यह है कि अजमल कसाब को पुणे की जेल में दफनाया क्यों गया? अजमल कसाब आतंकवादी था और उसने हमारी मातृभूमि पर लहूलुहान किया था। केन्द्र और महाराष्ट्र की सरकार ने कसाब को पुणे की जेल में दफना कर कायरता ही दिखायी है। खासकर भारत सरकार को वीरता दिखानी चाहिए थी और दूरदर्शिता से काम लेना चाहिए था। भारत सरकार के सामने ओसामा बिन लादेन का उदाहरण सामने था। अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में काम-तमाम करने के बाद उसे किसी कब्र में नहीं दफनाया था। अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन का शव समुद्र में जल कीड़ों को खाने के लिए फेंक दिया था। भारत सरकार को अमेरिका का अनुसरण करते हुए कसाब के शव को अरब सागर में फेंक दिया जाना चाहिए था। अगर भारत सरकार ने यह दूरदर्शिता और वीरता दिखायी होती तो निश्चित तौर आतंकवादी देशों और आतंकवादी संगठनों को एक और कड़ा संदेश जाता कि भारत भूमि को कंलकित करने व लहूलुहान करने की ऐसी ही सजा मिलेगी और उन्हें कब्र तक नसीब नहीं होगी।
कसाब के अंत को दुश्मन देश या फिर कट्टरपंथी ताकतें किस प्रकार से स्वीकार करते हैं और उनकी प्रतिक्रिया कितनी जहरीली होगी, हमें किस प्रकार की कूटनीति का सामना करना पड़ेगा? ये सवाल अति महत्वपूर्ण हैं। इन सवालों पर हमारी कूटनीतिक संवर्ग की चाकचौबंद एक्सरसाइज की जरूरत होनी चाहिए। हमारी कूटनीतिक संवर्ग इस सच्चाई से अवगत भी होगी। हमें दुनिया को यह बताने की जरूरत है कि आतंकवादी देश और आतंकवादी संगठन हमारी संप्रभुता के खिलाफ वर्षों से किस प्रकार से अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ रखे हैं? दुनिया आतंकवादी देशों की करतूत और हिंसक राजनीति से अवगत भी है। लेकिन हमारी
कमजोरी यह है कि जब दुनिया हमारी बात अनसुनी करती थी तब हम अपने दुश्मन देश की आतंकवादी नीति के खिलाफ बोलते थे पर जब दुनिया यह मान चुकी है कि हमारे दुश्मन और आतंकवादी देशों की आतंकवादी नीति से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की शांति और सदभाव को खतरा है तब आतंकवादी देशों व आतंकवादी संगठनों के खिलाफ हमारी बोली अंतराष्ट्रीय मंचों पर बंद क्यों हो गयी? मुबंई हमले पर खूब बयानबाजी हुई थी। बयानों में वीरता की खूब बातें थीं। अहसास कराने की झूठी कसरत भी यह हुई थी कि भारत अब आतंकवादी देशों और आतंकवादी संगठनों की गर्दन नाप कर ही रहेगा? जैसे-जैसे समय बीतता चला गया वैसे-वैसे हमारी वीरता जमींदोज होती चली गयी, हमारी सरकार और हमारा कूटनीतिक सवंर्ग और आतंकवादी देशों और आतंकवादी संगठनों के सामने आत्मसमर्पण करते चले गये। अंतर्राष्ट्रीय नियामकों में आतंकवादी देश गर्जना कर झूठ परोसने से बाज नहीं आया पर हमारी सरकार अंतर्राष्ट्रीय नियामकों में रक्षात्मक नीति पर चलती रही। यही है हमारी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ नीति की कमजोरी और विसंगतियां।
हमें एक बात यह भी नहीं भूलनी चाहिए कि पाकिस्तान की पूरी राजनीति भारत विरोध पर खड़ी होती है। पाकिस्तान की मौजूदा पीपीपी की सरकार अति कमजोर स्थिति में खड़ी है। आसिफ जरदारी खुद कालेधन के आरोप की चपेट में है। अलोकप्रियता के शिकार आसिफ जरदारी कसाब को हथकंडा के रूप में राजनीतिक इस्तेमाल कर सकता है। इसकी आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है। पाकिस्तान भारत के साथ न केवल कूटनीतिक संघर्ष को जहरीला करेगा बल्कि कश्मीर के सवाल को भी अंतराष्ट्रीय मंच पर उठा हमारी छवि को धूमिल करेगा? सामरिक तौर पर भी वह नया मोर्चा खोल सकता है। आतंकवादी संगठनों को नये सिरे से खड़ा कर सकता है। आतंकवादी संगठन भी कसाब के अंत से बौखलाकर भारत विरोधी हिंसक कारवाइयों को अंजाम दे सकते हैं। कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में आतंकवादी संगठनों की घुसपैठ और हिंसक कार्रवाइयों के खतरे भी हैं। इन खतरों के प्रबंधन के लिए ठोस सामरिक व सुरक्षा एक्सरसाइज की जरूरत कैसे नहीं होगी। हमारी पुलिस और अन्य सभी गुप्तचर एजेंसियों को और चाकचौबंद होकर कार्य करना होगा, आतंकवादियों के मंसूबों को अंजाम तक पहुंचने के पूर्व उनकी गर्दन नापनी होंगी, जैसा कि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने सफलता पायी है।
कसाब-अफजल गुरू जैसे प्रश्न का हल करते समय वोट की राजनीति को ध्यान में रखना घातक है। राष्ट्र की अस्मिता और सुरक्षा की कसौटी पर ही कसाब-अफजल गुरू जैसे प्रश्न का हल किया जाना चाहिए। कसाब के अंत के साथ ही साथ अफजल गुरू के प्रश्न का भी अंत क्यों नहीं किया गया? पाकिस्तान से बातचीत का दौर चलाने की कोई जरूरत नहीं है। पाकिस्तान के साथ बातचीत का दौर चलाना या फिर यह उम्मीद लगा कर रखना कि पाकिस्तान की आतंकवादी नीति जमींदोज हो जायेगी, यह सिर्फ खुशफहमी ही होगी? पाकिस्तान अपना चेहरा दिखा चुका है। कसाब उसका नागरिक था पर उसने कसाब का शव लेने से मना कर दिया। पाकिस्तान को मुबंई हमले के दोषियों लखवी, सईद जैसे आतंकवादी सरगनाओं पर कार्रवाई करने के लिए दृढतापूर्ण ढंग से कहना होगा। कार्रवाई नहीं तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने का संदेश देना होगा। क्या यह संदेश भारत सरकार देने के लिए तैयार होगी?
भारत की अस्मिता को तार-तार करने वाले अनेक मास्टर माइंड और जेहादी सरकार-ए-हिंदुस्तान के मेहमान है। संसद पर हमले का मास्टर माइंड अफजल गुरु अब भी जेल में है। उसकी दया याचिका 2005 से लंबित पड़ी है। फांसी का फंदा उसका भी इंतजार कर रहा है। इनको फांसी कब होगी यह प्रश्न बड़ा और देश की संप्रभुता से जुड़ा हुआ है। आतंकवाद पर नरमी अपनाकर हमने बहुत नुकसान किया है, लेकिन अब यह शुतुरमुर्गी आचरण छोडऩा होगा, साहस दिखाना होगा। लड़ाई के हर मोर्चे पर डटकर खड़ा होना पड़ेगा। अन्यथा देश के शत्रुओं को अवसर मिलता रहेगा।
द्यमुंबई से बिंदु माथुर

 

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