क्या घोटाले का सच पता चलेगा?
30-Nov-2012 12:00 AM 1234757

एक लाख 76 हजार करोड़ यह आकड़ा बहुत बड़ा लगता है, बल्कि किसी छोटे मोटे देश के सकल घरेलु उत्पाद के बराबर है किन्तु कैग ने 2008 में टू जी स्पैक्ट्रम आवंटन में सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रूपये के नुकसान का अनुमान लगाया था जिसपर

अब सवालिया निशान लग रहे हैं बल्कि कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि भाजपा ने कैग विनोद रॉय को राजनीति में ऊंची पोजीशन का लालच देकर यह आंकड़ा निकलवाया। लेकिन इसका उलटा भी हो सकता है कि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कार्यालय में पूर्व महानिदेशक आर पी सिंह जो कह रहे हों वह उनकी नहीं कांग्रेस की भाषा हो क्योंकि नयी नीलामी में बड़े खिलाडिय़ों ने बोली ही नहीं लगाई और जो बोलियाँ लगीं वे मामूली हैं। इसी कारण कपिल सिब्बल से लेकर कई कांग्रेसी नेताओं ने कैग की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
बहरहाल आर पी सिंह का बयान नया विवाद पैदा कर रहा है आर पी सिंह ने कहा है कि  2008 में टू जी स्पैक्ट्रम आवंटन में सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रूपये के नुकसान के सी ए जी का  अनुमान अतिश्योक्ति है। श्री सिंह के अनुसार दूरसंचार मंत्रालय का लेखा परीक्षण पूरा होने के बाद उन्होंने इसके हर पहलू पर ऑडिट रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया था। उनकी रिपोर्ट में नुकसान के अनुमान का कोई आंकड़ा नहीं था। बल्कि उसमें कहा गया था कि ज्यादा स्पैक्ट्रम रखने वाली कंपनियों से 37 हजार करोड़ रूपये वसूले जा सकते हैं। अगर कोशिश की जाए, तो इसे अब भी वसूला जा सकता है। 2010 में संसद में पेश नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में 2008 के टू जी स्पैक्ट्रम आवंटन से सरकारी खजाने को नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था, जिसे लेकर राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था। तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा को पद छोडऩा पड़ा और संयुक्त संसदीय जांच समिति बनाई गई। आवंटन विवाद के कारण उच्चतम न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों के 122 लाइसेंस रद्द कर दिये। हाल में टू जी स्पैक्ट्रम की नीलामी में कंपनियों द्वारा ज्यादा उत्साह न दिखाये जाने से इस मामले ने अलग मोड़ ले लिया है। वित्तमंत्री पी चिदम्बरम और दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल सहित कई केन्द्रीय मंत्रियों ने सी ए जी के इस आंकलन को मनगढ़ंत बताया था। आरपी सिंह ने कहा है कि वह इस रिपोर्ट से सहमत नहीं थे, लेकिन उन्हें इस पर दस्तखत करने पड़े थे। आरपी सिंह सीएजी में महानिदेशक (पोस्ट एंड टेलिकम्युनिकेशन्स) रहे हैं। सिंह ने कहा है कि सीएजी अधिकारियों ने बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी से भी मुलाकात की थी। जोशी पीएसी के चेयरमैन हैं और संसद की पीएसी में जोशी ने जो रिपोर्ट लिखी, उसमें भी 2जी स्पेक्ट्रम पर गंभीर सवाल उठाए गए थे, लेकिन इस रिपोर्ट को बाकी सदस्यों ने स्वीकार नहीं किया था। सिंह का कहना है कि उन्होंने बड़े अधिकारियों को यह लिखकर बताया था कि वह 2जी स्पेक्ट्रम की रिपोर्ट से सहमत क्यों नहीं हैं, लेकिन सीएजी विनोद राय से उनकी कभी बात नहीं हुई। सिंह ने आरोप लगाया है कि कैग विनोद राय के दबाव में उसने टू जी की रिपोर्ट तैयार की जिसमें जानबूझकर घाटा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया। टेलीकॉम के                 पूर्व डीजी आर पी सिंह ने यह भी दावा किया               कि रिपोर्ट मुरली मनोहर जोशी के घर तैयार की गई थी।
क्या सही है दिग्विजय का दावा?
आरपी सिंह के खुलासे के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का वह दावा एक बार फिर चर्चा में आ गया जो उन्होंने कैग विनोद रॉय को लेकर किया था। कोल घोटाले की रिपोर्ट पर दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कैग राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते हैं उसी से प्रेरित होकर यह रिपोर्ट तैयार की गई है, वे भविष्य में बीजेपी में शामिल हो जाएंगे।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्टो के कारण कई मामलों में सांसत में फंसी सरकार अब कैग को नियंत्रित करने के लिए उसका ढांचा बदलने पर विचार कर रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने कैग को बहुसदस्यीय बनाने की मंशा जाहिर की है। नारायणसामी के इस बयान की विपक्ष और सिविल सोसाइटी ने कड़ी आलोचना की है। भाजपा ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। नारायणसामी ने कहा कि कैग को बहुसदस्यीय बनाने संबंधी शुंगलू समिति के सुझावों पर सरकार गंभीरता पूर्वक विचार कर रही है। पूर्व कैग वीके शुंगलू ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कैग को तीन सदस्यों वाली संस्था बनाने से पारदर्शिता और कामकाज सुधरेगा। सदस्य के तौर पर चार्टर्ड एकाउंटेट को रखने का भी सुझाव पूर्व कैग ने दिया है। सामी ने कैग को हदें भी बताई। सामी के मुताबिक उनकी निजी राय है कि कैग अपनी संवैधानिक मर्यादा से बाहर जा रहे हैं। सभी संवैधानिक संस्थाओं के लिए जरूरी है कि वे अपनी हद में रहकर काम करें। कैग की रिपोर्ट को अंतिम नहीं माना जा सकता। संसद इसका आकलन करती है। कैग तो हजारों रिपोर्ट पेश कर चुका है, जिसमें केंद्र सरकार, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और अधिकारियों पर सवाल उठाए गए हैं। अगर कैग की रिपोर्ट के आधार पर निर्णय लिए जाएं तो किसी के लिए भी काम करना मुश्किल हो जाएगा। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब कैग को लेकर सरकार की ओर से आलोचना के सुर उठे हैं। गुडग़ांव में कैग विनोद राय के नजरिए पर केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध जाहिर किया था। सत्तारूढ़ खेमे से कैग पर निरंकुशता के आरोप भी लगते रहे हैं। बवाल के बाद हालांकि नारायणसामी अपने बयान से मुकर गए, लेकिन विपक्ष को मौका मिल गया।
भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि यह विचार खराब ही नहीं असंवैधानिक भी है। सरकार के मुखर आलोचक जनता पार्टी प्रमुख सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कहा कि सरकार कैग की स्वायत्तता कमजोर करने का प्रयास कर रही है। क्योंकि 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लाक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल आयोजन सहित कई मामलों में कैग की रिपोर्ट पर सरकार सांसत में फंसी है।
द्यअरुण दीक्षित

 

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