01-Aug-2016 08:49 AM
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राजधानी के आसपास के जिलों में खेती के लिए वनों में इन दिनों अवैध कटाई चल रही है। आलम यह है कि रायसेन, सिहोर, होशंगाबाद, विदिशा आदि जिलों के वन क्षेत्रों में ठूंठ ही ठूंठ नजर आ रहे हैं, लेकिन वन विभाग को इसकी जानकारी ही नहीं है। बाड़ी बरेली एवं बम्होरी तक के लंबे क्षेत्र में फैले इस विशाल वन में बेशकीमती सागौन काटे जा रहे हैं वहीं तेंदूखेड़ा के दोनी और अलोनी में भी धुंआधार पेड़ काटे जा रहे हैं। बरेली क्षेत्र में वनों की अवैध कटाई के मामले नए नहीं हैं, लेकिन इन दिनों लकड़ी माफिया ज्यादा सक्रिय नजर आ रहा है। बारिश के मौसम में अधिकारी और अन्य लोग कम निरीक्षण कर पाते हैं इसका फायदा उठाकर वन माफिया खुले आम वनों में अवैध कटाई करने में जुट जाता है।
सरकार प्रतिवर्ष वनों की रक्षा एवं उसकी वृद्धि के लिए करोड़ों रुपए वन विभाग को देती है ताकि प्रदेश में वनों का विकास हो सके। साथ ही वनों की सुरक्षा के लिए वन चौकी, जांच चौकी, वॉच टावर एवं वनों में आवागमन के लिए मार्ग निर्माण पर यह राशि खर्च की जाना चाहिए। लेकिन संबंधित अधिकारी सरकार से प्राप्त इस राशि का उपयोग वन विकास के नाम पर स्वयं विकास कर खर्च कर रहे हैं। जिला रायसेन के मध्य विंध्याचल पर्वत माला जो कि सिंघोरी अभयारण्य के अंतर्गत आता है। यहां पदस्थ रेंजर, डिप्टी रेंजर, नाकेदार और वन पालों की मिली भगत से वनों का जमकर दोहन किया जा रहा है। जिसका जीता जागता सबूत सिंघोरी अभयारण्य के अंतर्गत आने वाली बाड़ी एवं बम्होरी रेंज के वे वन ग्राम हैं, जहां आज वर्तमान में भारी मात्रा में पीला सोना कहलाने वाला सागौन काटा जा रहा है।
वनक्षेत्र में शामिल रमगढ़ा, पाली डुंगरिया, दूड़ादेह, डगडगा, पनझिरपा, भगदेई, करतौली, भर्तीपुर, सांतरा आदि ग्रामों में नाकेदार एवं वनपालों की मिली भगत से सिंघोरी अभयारण्य की लगभग 500 एकड़ वन भूमि से हरे-भरे वृक्ष काट कर अतिक्रमण किया गया है। वहीं अभयारण्य क्षेत्र में आए दिन शिकार की घटनाएं देखने और सुनने में आ रही है। इसके बाद भी वन विभाग द्वारा अभयारण्य में हो रहे अतिक्रमण, अवैध कटाई एवं शिकारियों पर कार्रवाई नहीं की जा रही। वर्तमान मे बारना जलाशय का आधा भाग सिंघोरी अभयारण्य के अंतर्गत आता है। जहां पर मछली ठेकेदारों की शिकारी वोट चलते हुए सहजता से देखी जा सकती है। वहीं विगत दिनों विभाग के ही एक कर्मचारी के द्वारा गस्ती वाहन से रात के अंधेरे मे अवैध रूप से सागौन की सिल्लियां ले जाते हुए वन विभाग के अधिकारियों ने पकड़ी थी। लेकिन इसके बाद भी वनों की कटाई का अवैध कार्य अभी भी जारी है। जिला रायसेन से गुजरने वाली विंध्याचल पर्वतमाला के इर्द गिर्द तकरीबन 287 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला सिंघोरी अभयारण्य आज अपने ही मातहतों के द्वारा बरती जा रही उदासीनता के कारण बदहाली के आंसू बहा रहा है। बकतरा से शुरू होकर बाड़ी बरेली एवं बम्होरी तक के लंबे क्षेत्र में फैले इस विशाल वन में बेशकीमती सागौन, जंगली जानवर आदि अकूत वन संपदा से पटा पड़ा है। अभयारण्य की सीमा के अंतर्गत बारना जलाशय का भी एक हिस्सा आता है। जिसमें जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं। वर्तमान में सिंघोरी अभयारण अवैध कटाई एवं शिकार का जरिया बन गया है। लक्कड़ चोरों द्वारा बड़े स्तर पर वनों में प्रतिदिन अवैध कटाई की जाती है। इसे छिपाने के लिए ठूंठों में आग लगाई जा रही है। इससे बड़े-बड़े सागौन के वृक्ष बिना कटाई के चोरी के लिए तैयार किए जाते हैं।
सिंघोरी अभयारण्य के अंतर्गत आने वाले ऐसे कई ग्राम है। जहां आज भी अकूत मात्रा में वेश कीमती सागौन पाया जाता है। जिसमें वनक्षेत्र में आने वाले ग्राम रमगढ़ा, पाली डुंगरिया, दूड़ादेह, डगडगा, पनझिरपा, भगदेई, करतौली, भर्तीपुर, सांतरा आदि गांवों के साथ बम्होरी रेंज के करतोली, जैतगढ़, पौढ़ी सहित गांवों के साथ-साथ सिलवानी के ग्राम खान बरेली एवं जंगलों से भी वेश कीमती
सागौन गाडरवारा, वनखेड़ी, नरसिंहपुर सहित राजधानी भोपाल तक लकड़ी चोरों द्वारा पहुंचाया जा रहा है।
रात को लगा देते हैं आग
तेंदूखेड़ा के भैंसाघाट से 12 किमी दूरी पर स्थित दोनी और अलोनी के बीच में जंगल को खेत बनाने के लिए बड़े स्तर पर पेड़ काटने का खेल चल रहा है। यहां पर विशालकाय पेड़ माफियाओं ने काटकर जमींदोज कर दिए हैं। परेशान करने वाली बात यह है कि यहां पर पेड़ काटकर गिराए जाते हैं और रात में उनमें आग लगा दी जाती है। जिससे वह खाक हो जाते हैं। जबेरा और तेंदूखेड़ा की सीमा से लगे दोनी और अलोनी के बीच में बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई चल रही है। यहां पर बड़े-बड़े पेड़ों की पहले छाल उतारी जा रही है, उसके बाद उन्हें कुल्हाड़ी से काटकर गिराया जा रहा है। ऐसी स्थिति में सैकड़ों पेड़ों
की अब तक बली दी जा चुकी है। जायजा लेने के दौरान कई पेड़ काटने
के बाद जले पड़े मिले।
-इंदौर से नवीन रघुवंशी