01-Aug-2016 08:42 AM
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अरविंद केजरीवाल ने शुरू में राजनीति की बिसात पर कई गलतियां कीं लेकिन उन गलतियों से सीखकर किस तरह एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह आगे बढऩा बखूबी आ गया है। केजरीवाल की नजर फिलहाल पंजाब पर है। तभी तो दिल्ली को अपने दो सबसे विश्वस्त मंत्रियों-मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के हाथों सौंप कर वह बाकी राज्यों में आप के विस्तार एवं केंद्र सरकार से अपनी लड़ाई के अहम मुद्दे पर ही खुद को केंद्रित कर रहे हैं। इन दो मंत्रियों के पास कुल 32 विभागों में से 17 विभाग हैं , जो यह बताता है की या तो आप की सरकार में कोई ऐसा और व्यक्ति नहीं है जिस पर केजरीवाल खुद भरोसा कर पायें।
यूं तो मंत्रिमंडल में मामूली फेरबदल भी बेवजह नहीं होता, उस पर भी केजरीवाल सरकार में तो फैसले कई वजहों को तोल मोल कर ही लिए जाने का इतिहास रहा है। ये बात तो गोपाल राय से परिवहन विभाग लेने के बाद ही साफ हो गयी थी कि दिल्ली सरकार में मनीष सिसोदिया के बाद अगर कद किसी मंत्री का है तो वो सत्येंद्र जैन हैं। क्योंकि स्वास्थ्य, एमसीडी, गृह, ऊर्जा जैसे हाई प्रोफाइल महकमे तो उनके पास पहले से ही थे। यानि करने को काम कम था ऐसा तो कतई नहीं है। अब पहले परिवहन और अब शहरी विकास विभाग देने का मतलब तो साफ है कि केजरीवाल के वो नजदीकी और भरोसेमंद बन गए हैं। या यूं कहें कि संकटमोचक तब भी अतिश्योक्ति शायद ना हो, क्योंकि शहरी विकास विभाग आने वाले समय में कई लिहाज से सरकार के लिए जरूरी है।
शहरी विकास विभाग के अंदर एमसीडी आता है, जिसके चुनाव अगले साल शुरुआत में होने हैं और नगर निगम में बीजेपी की सत्ता है। उसके अलावा दिल्ली सरकार को अनधिकृत कॉलोनियों को रेगुलर करने के लिए केंद्र को साधना जरूरी है। ये वही कॉलोनियां हैं जहाँ दिल्ली की 40 फीसदी आबादी रहती है और आम आदमी पार्टी के लिए वोट बैंक मानी जाती है। इसलिए एमसीडी चुनावों से उन्हें रिझाने की जिम्मेदारी भी अब सत्येंद्र जैन के कंधों पर आ गयी है। इस फेरबदल में अहम बात ये है कि शहरी विकास विभाग अब तक सिसोदिया संभालते थे जिन्हें केजरीवाल का दाहिना हाथ माना जाता है, तो क्या सिसोदिया सरकार में कमजोर हुए हैं और जैन मजबूत? या बात कुछ और ही है।
दरअसल दिल्ली सरकार में जिम्मेदारियों का बंटवारा बड़ा रोचक है। अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री होने के बावजूद कोई भी विभाग शुरु से ही अपने पास नहीं रखा। ज्यादातर विभाग सिसोदिया के जिम्मे थे उनमें वित्त विभाग भी शामिल है। हालांकि केजरीवाल दफ्तर नियमित तौर पर आते थे और जो सीएम का कामकाज है उसे देखते भी रहे। इस काम में उनकी पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार की भूमिका अहम रही। लेकिन जैसे-जैसे पंजाब, गोवा और गुजरात जैसे राज्यों में आम आदमी पार्टी पैर पसारने की तैयारी में लग रही है, वैसे-वैसे केजरीवाल को दिल्ली के लिए कम वक्त मिल रहा है।
अब तक बतौर उप मुख्यमंत्री सिसोदिया केजरीवाल की अनुपस्थिति में उनका काम देखते रहे हैं। लेकिन अब तक भी जो फाइल मुख्यमंत्री के कार्यालय से ही गुजरनी होती है उस पर केजरीवाल के दफ्तर की मुहर जरूरी होती है। लेकिन अब जबकि सियासी जिम्मेदारी केजरीवाल के कंधों पर कई गुना बढ़ गयी है तो सिसोदिया को दिल्ली सरकार की पूरी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी है। यानि मुख्यमंत्री भले केजरीवाल ही रहेंगे लेकिन सिसोदिया को उपमुख्यमंत्री के साथ ही कार्यकारी मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भी देने पर विचार हो रहा है।
लेकिन इससे यह भी पता चलता है की पार्टी को चलाने के लिए आप के भीतर विश्वासी कार्यकर्ताओं की कमी है जिस पर पार्टी और स्वयं केजरीवाल को आने वाले समय में मुसीबत का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि पार्टी का विस्तार तो हो रहा है, लेकिन पार्टी में विश्वासी कार्यकर्ता ही नहीं, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो 32 विभागों में बंटी दिल्ली सरकार में कई और भी चेहरे होते जो सरकार के काम काज को चला रहे होते। 9 सदस्यीय मंत्रिमंडल में मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के अलावा तीन और ऐसे मंत्री हैं जिनके पास तीन से चार विभाग हैं। केजरीवाल को सिकंदर की तरह केवल विजय पर ही नहीं बल्कि विजय को संभाल कर रखने पर भी ध्यान देना चाहिए और वह तभी हो सकता है जब आपकी सेना विश्वश्त हो और आपकी जीती हुयी जमीन पर कब्जा बनाए रखे नहीं तो एक तरफ आप पार्टी जीत कर आगे बढ़ती जायेगी और पीछे से जीती हुयी जमीन खिसकती चली जाएगी।
-सिद्धार्थ पाण्डे