01-Aug-2016 08:40 AM
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असाढ़ की इस रिमझिम में धन खेतों में जाने दो,
कृषक-सुंदरी के स्वर में अटपटे गीत कुछ गाने दो।
दुखियों के केवल उत्सव में इस दम पर्व मनाने दो,
रोऊंगी खलिहानों में, खेतों में तो हर्षाने दो।
कवि रामधारी सिंह दिनकर की इस नायिका की तरह मध्यप्रदेश के विधायक भी विधानसभा के मानसून सत्र में उठाए गए सवालों पर बहस नहीं हो पाने के कारण व्यथित दिखे। उनका कहना था कि विधानसभा क्षेत्र में तो हमारे काम हो नहीं रहे हैं। जब विधानसभा में अपने सवाल उठाकर हमें अपनी व्यथा बताने और उसका समाधान चाहने का मौका मिलता है तो विषयांतर बताकर हमारे सवालों को टाल दिया जाता है। दरअसल, विधायकों की खींज का प्रमुख कारण यह था कि उनके सवालों का उचित जवाब सदन में नहीं मिल रहा था। अपनी व्यथा से व्यथित विधायक कई बार सदन की गरिमा के विपरीत अलोकतांत्रिक रवैये पर उतर गए। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि प्रदेश की जनता के अरमान कैसे पूरे होंगे जब प्रजातंत्र के मंदिर में अलोकतांत्रिक पुजारी होंगे।
विधानसभा को प्रजातंत्र का मंदिर कहा जाता है। लेकिन प्रजा के इस मंदिर के पुजारियों के अलोकतांत्रिक रवैये से प्रजा के हितों का यहां चीर हरण किया जाता है। अब तो आलम यह है कि इस चीर हरण में अफसरशाही भी शामिल हो गई है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि मंदिर में हर समय अलोकतांत्रिक माहौल देखा जा रहा है। स्थिति यह हो गई है कि यहां न लोक है, न कोई दृष्टि है, न लोक-चेतना है और न लोक-सृष्टि है। इसलिए हर बार के सत्र की तरह इस बार भी मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में न तो विधायक संतुष्ट दिखे और न ही यहां होने वाले मंथन से निकलने वाले निर्णय जनहितैषी दिखे। आलम यह रहा कि सत्तापक्ष और विपक्ष के विधायक सरकार से असंतुष्ट दिखे। इस विधानसभा सत्र के दौरान एक बात यह भी देखने को मिली की मुख्यमंत्री ने अपने विधायक दल की बैठक ही नहीं बुलाई।
हंगामें, असंतोष और आरोप-प्रत्यारोप के बीच इस बार सबसे अच्छी बात यह रही कि सदन में विधायकों की उपस्थिति बराबर बनी रही। इस 12 सदस्यीय सत्र में 9 बैठकें हुई जिनमें विधायी, वित्तीय तथा लोक महत्व के कई कार्य सम्पन्न हुए। इस दौरान 11 शासकीय विधेयक भी पारित किए गए। इस बार विधायकों ने ऑनलाईन प्रश्न किए। जिससे इस सत्र में कुल 3,707 प्रश्न विधानसभा को प्राप्त हुए जिनमें 1969 तारांकित तथा 1738 अतारांकित प्रश्न थे। ध्यानाकर्षण की कुल 719 सूचनाएं प्राप्त हुई, जिनमें से 62 पर सदन में चर्चा हुई। सदन में नियम 139 के अधीन अतिवृष्टि से प्रदेश के जिलों में क्षति के संबंध में अविलंबनीय लोक महत्व के विषय तथा नियम 142- क के अधीन अशासकीय शिक्षण संस्थाओं द्वारा मनमाने तरीके से फीस व अन्य शुल्क वसूले जाने से उत्पन्न स्थिति जैसे तात्कालिक महत्व के विषय पर चर्चा हुई। इस मानसून सत्र में विधायकों ने प्रश्न पूछने में जैसी रुचि दिखाई उनका जवाब देने में अधिकारियों ने उतनी ही कोताही बरती। इस कारण विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्तापक्ष के विधायक भी सरकार पर बिफरे। जिसके चलते रोजाना प्रश्नकाल बाधित होता रहा। इस मामले में विजयपुर के कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत कहते हैं कि सरकार और अफसर मिलकर विधायकों के सवालों का जवाब देने से कतराते हैं। इस बार तो मेरे ही व्यापमं से संबंधित सवाल को बदल दिया गया। विधानसभाध्यक्ष को चाहिए कि मूल सवाल को बदलने की साजिश के गुनहगारों का पता लगाकर सजा दिलाएं। वह कहते हैं कि भाजपा के भी कई विधायकों के सवालों का या तो उचित जवाब नहीं दिया गया या फिर जवाब ही नहीं दिया गया। अब ऐसे में विधायक हंगामा नहीं करें तो क्या करें। सागर से भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन कहते हैं कि हंगामा करने से विधानसभा की कार्यवाही बाधित होती है। हालांकि इस बार विधानसभा अन्य सत्रों की अपेक्षा बहुत अच्छा चला। कुछ सवालों के विषयांतर किए जाने पर विधायकों में रोष दिखा। लेकिन जो सवाल विषय में है ही नहीं उसका जवाब कैसे दिया जा सकता है। विधानसभा में कई बार ऐसी स्थिति आई कि विधायक असंतुष्ट दिखे लेकिन सदन की परंपरा है तो उसका पालन करना ही होगा।
केवलारी से कांग्रेस विधायक रजनीश सिंह कहते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर में नेताओं का अलोकतांत्रिक कार्य व्यवहार निंदनीय हैं। लेकिन वास्तविक हकीकत तो और भी कड़वी हैं! दरअसल सदन की कार्यवाही पर पूरी तरह अफसरशाही हावी है। उनका आरोप है कि इस कारण न तो हमारे सवालों का जवाब समय पर दिया जा रहा है और जो दिया जा रहा है वह उचित नहीं होता है। ऐसे में विधायक अपने असंतोष को जाहिर करता है। वहीं गंजबासौदा से कांग्रेस के विधायक निशंक कुमार जैन तो कहते हैं कि सरकार के संरक्षण में अधिकारी गलत जवाब दे रहे हैं। ऐसे अफसरों को सरकार बचा रही है। इस सरकार के रहते राजतंत्र का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। राजतंत्र के मंदिर के पुजारी के सवालों का गलत जवाब देने वालों को सरकार का संरक्षण मिल रहा है तो फिर उचित सवाल के जवाब की कल्पना कैसे की जा सकती है। वह कहते हैं कि जब भी भ्रष्टाचार का मुद्दा आता है सरकार खुद हंगामा करवाती है। वह कहते हैं कि 19 जुलाई को सिंहस्थ के घोटाले से संबंधित कई प्रश्न थे। लेकिन सरकार ने उस दिन अचानक छुट्टी घोषित कर दी। यही नहीं अगले दिन उस दिन के प्रश्नों को भी नहीं लिया गया और न ही प्रश्नोत्तरी ही दी गई। वह कहते हैं कि इस प्रदेश में सत्ता के दलाल, माफिया और भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी सुरक्षित हैं।
मनासा से भाजपा के विधायक कैलाश चावला ने सदन में भले ही कई मौकों पर सरकार के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन वे इस बात से संतुष्ट हैं कि इस बार हाउस अच्छा चला है। सदस्यों ने जनता की समस्याओं को उठाने का भरपूर प्रयास किया है लेकिन विपक्ष ने अपना कर्तव्य निर्वहन नहीं किया है। यह उनकी राजनीतिक मजबूरी है। वर्ना क्या जरूरत थी दिग्विजय सिंह को कि वे सदन का सदस्य नहीं होने के बावजूद ट्वीट कर सदस्यों को भड़काने की। मंदसौर विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया कहते हैं कि इस बार सत्र जिम्मेदारी से चला। कार्यसूची पर अमल हुआ। पहली बार सदन में सदस्यों की मौजूदगी दिखी। वह कहते हैं कि बसपा ने जरूर व्यवधान डाला। वह भी इस बात से खिन्न नजाए कि सदन में विधायकों के सवालों का जवाब ठीक से नहीं दिया गया। वह कहते हैं कि विधायक बड़ी उम्मीद से सवाल लगाता है लेकिन अधिकारी उसका जवाब गलत देते हैं। ऐसे में मंत्री और सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वे विधायक को संतुष्ट करें।
राऊ से कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने भी अफसरशाही को निशाना बनाते हुए कहा कि विधायकों को राजतंत्र का अलोकतांत्रिक पुजारी क्यों कहा जा रहा है? दरअसल विधायक सदन में अलोकतांत्रिक इसलिए हो जाते हैं कि सरकार और अफसर मिलकर विधायकों को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। भाजपा सरकार जिस तरीके से अफसरों के साथ मिलकर विधायकों के सवालों को दरकिनार करवा रही है उससे भ्रष्टाचार दिन पर दिन सिर चढ़कर बोल रहा है। वहीं कसरावद से कांग्रेस विधायक सचिन यादव कहते हैं कि इस बार सिंहस्थ घोटाले के कारण सरकार सदन में चर्चा से बचती रही। सरकार की कार्यप्रणाली से प्रश्नकाल के औचित्य पर ही सवाल उठने लगा है। उन्होंने दावा किया कि इस बार अधिकारियों ने 90 प्रतिशत सवालों की गलत जानकारी दी है। सरकार में अफसर हावी हैं। उन्होंने कहा कि अवैध उत्खनन, मिट्टी मिले गेहूं और बीपीएल से नाम काटे जाने के मामले पर सरकार बचने की कोशिश करती रही इस कारण सत्तापक्ष के विधायक भी सरकार से असंतुष्ट दिखे।
सदन में तो हर्षाने दो
चंदला से भाजपा विधायक आरडी प्रजापति कहते हैं कि विधानसभा सत्र के दौरान जितने सवाल किए जाते हैं उनमें से पूरे सही तो नहीं होते। लेकिन मंत्रियों ने उनका सही जवाब देने की कोशिश की है। दरअसल कुछ गलत अधिकारियों-कर्मचारियों के कारण सवालों के जवाब गलत आ रहे हैं। ऐसे लोगों पर अंकुश लगाना चाहिए। जब तक उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी स्थिति सुधरेगी नहीं। आज प्रदेश में स्थिति यह है कि अधिकारियों के कारण विधानसभा क्षेत्र में तो काम हो नहीं रहे हैं। सदन हमारे लिए ऐसा स्थल है जहां हम खुलकर अपनी बात रख सकते हैं। लेकिन अफसरों के कारण हम यहां भी खुश नहीं रह पा रहे हैं। आलम यह है कि अधिकांश अधिकारी मंत्रियों को भी गुमराह कर रहे हैं। किसी भी विभाग को विधायक के सवालों का तीन दिन में जवाब देना चाहिए। लेकिन महीनों बाद भी जवाब नहीं मिलते हैं। यही नहीं प्रश्न संदर्भ समिति में भी निर्णय नहीं हो पाता है। हो भी कैसे जब भी समिति की बैठक होती है कोई न कोई प्रमुख सचिव गायब रहता है। वह कहते हैं कि अफसरशाही इस कदर हावी है कि वह मंत्रियों से भी गलत जवाब दिलवा रहे हैं। ऐसे में मंत्रियों की भी किरकिरी हो रही है।
आरडी प्रजापति की बात का समर्थन करते हुए टीकमगढ़ से भाजपा विधायक केके श्रीवास्तव कहते हैं कि प्रश्न के उत्तर अधिकारियों के द्वारा बनकर आते हैं। अधिकारी अपने को सही साबित करने के लिए जवाब देते हैं। अगर विधायक किसी सवाल के जवाब से संतुष्ट नहीं होता है तो उसका भौतिक सत्यापन करवाना चाहिए। इसके लिए एक ज्वाइंट कमेटी बनानी चाहिए। यह कमेटी अपनी जांच करें और विधायक को संतुष्ट करे। इस बार सवालों के जवाब में जिस तरहकी गलतियां देखने को मिली उस कारण सदन की कार्यवाही उत्साह वर्धक नहीं रही। कांग्रेस तो पूरी तरह निराश दिखी। कांग्रेस के विधायकों से अधिक तो भाजपा के विधायकों ने प्रश्न लगाए। वे तो बस हमारे प्रश्नों के आधार पर सरकार को घेरने की कोशिश करते रहे। उधर लांजी से कांग्रेस विधायक हिना कावरे कहती हैं कि मैंने पहले सत्र में जो सवाल पूछा था उसका आज ढाई साल बाद भी जवाब नहीं मिला है। इस बार हमारे महत्वपूर्ण ध्यानाकर्षण को नहीं लिया गया। उधर सुर्खी से भाजपा विधायक पारूल साहू भी असंतुष्ट दिखीं। वह कहती हैं कि 20 जुलाई को पीएचई को लेकर तारांकित प्रश्र आया था लेकिन उसमें अफसरों द्वारा सही जवाब नहीं दिया गया। आलम यह है कि दो साल पुराने काम अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। नौकरशाही पर अंकुश जरूरी है।
भाजपा और कांग्रेस के इतर बसपा विधायकों का इस बार अलग ही राग रहा। उत्तरप्रदेश में भाजपा नेता द्वारा मायावती के खिलाफ की गई अभद्र टिप्पणी को मुद्दा बनाकर बसपाइयों ने विधानसभा की कार्रवाई को बाधित किया। अम्बाह से बसपा विधायक सत्र प्रकाश सखवार कहते हैं कि मायावती का अपमान पूरी महिला जाति का अपमान था। इसलिए हमने मध्यप्रदेश विधानसभा के माध्यम से पूरे देश को स्त्री के सम्मान का संदेश दिया है। वहीं मनगवां से बसपा विधायक शीला त्यागी कहती हैं कि मायावती विवाद उत्तरप्रदेश का ही नहीं बल्कि पूरे देश का है। अगर हमने सदन में इसके विरोध में कुछ किया है तो इसमें गलती कहां है। विधायकों के इतर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरण शर्मा इस बात से खुश हैं कि विधायकों में सदन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। वह कहते हैं कि इस बार विधानसभा की कार्यवाही अच्छी चली है और हमारी कोशिश होगी कि इसे और बेहतर बनाया जाए।
रोज बाधित होता है प्रश्नकाल, हम कहां कहें अपनी बात
मध्यप्रदेश विधानसभा में पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंचे विधायकों का दर्द सामने आया। विधायकों ने सदन में प्रश्नकाल पूरा न चलने देने पर भाजपा विधायकों ने अध्यक्ष के सामने तीखी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि अक्सर प्रश्नकाल बाधित किया जाता है। हम अपनी बात कहां रखें। इससे हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। प्रश्नकाल पूरा न चलने देने पर भाजपा विधायक अनिल फिरोजिया ने अध्यक्ष के सामने तीखी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि हम लोग जो पहली बार विधायक बनकर आये हैं, व्यवधान के कारण प्रश्नकाल में अपने प्रश्न ही नहीं पूछ पाते, क्या हम जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं। उन्होंने कहा कि प्रश्नकाल को बाधित करने में विपक्ष के साथ कुछ भाजपा के लोग भी शामिल हैं। उन्होंने पूछा कि हम अपनी बात ऐसे में कहां रखें। शून्यकाल में भाजपा के गिरीश गौतम ने यह मामला उठाते हुए कहा कि प्रश्नकाल के दौरान अक्सर हंगामा होने से हम अपनी बात नहीं रख पाते और न ही हमारे सवाल चर्चा में आ पाते हैं। उन्होंने अध्यक्ष से इस बारे में व्यवस्था बनाने की मांग की। वहीं भाजपा के मोहन यादव ने कहा कि कुछ लोग गर्भगृह में आ जाते हैं। उनका कहना था कि प्रश्नकाल बाधित न हो इसके लिए अध्यक्ष को व्यवस्था बनानी चाहिए।
57 सवालों का एक जवाब कलेक्टरों ने नहीं दी जानकारीÓ
विधानसभा के सवालों के प्रति अफसरों की लापरवाही का आलम यह देखने को मिला कि एक ही दिन में 57 सवालों के जवाब में यह बताया गया है कि कलेक्टरों ने जानकारी नहीं दी है। इसमें से 36 तारांकित और 31 अतारांकित प्रश्न हैं। ऐसे 35 कलेक्टरों को जवाब नहीं भेजने के लिए राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता द्वारा सीधे तौर पर जिम्मेदार बताया गया है। मंत्री ने इस मामले में कलेक्टरों को घोर लापरवाह बताते हुए इनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की बात कही है। वहीं कार्यकारी नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन ने प्रश्नकाल के दौरान इस मसले को उठा कर विधायकों के सवालों का जवाब न देने को सरकार की संवेदनहीनता बताया है। बसपा विधायक शीला त्यागी कहती हैं अफसरशाही के कारण परेशान आ रही है। सतना में जिस फ्लायओवर को बनाने को लेकर 22 जुलाई के सत्र में ध्यानाकर्षण आया। उस पुल के बनने की सूचना तक अफसरों ने मुझे नहीं दी जबकि मैं प्रदेश स्तरीय लोक निर्माण विभाग की समिति की सदस्य हूं।
लोकतंत्र के मंदिर में अनूठी धर्मसभा...
मध्य प्रदेश विधानसभा में इस बार धर्मसभा का आयोजन किया गया। जिस विधानसभा में तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप होते थे वहां अद्भुत दृश्य देखने को मिला। दार्शनिक तपस्वी जैन संत आचार्य विद्यासागर के प्रवचन हुए जहां विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, सत्तारुढ़, विपक्ष दोनों के विधायकोंने पूर्ण सौहार्द, शांत भाव से प्रवचन सुने। विद्यासागरजी ने कहा कि आज जनप्रतिनिधियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आप जनता के लिए काम करें पद का अभिमान न करें, आप सेवा के लिए चुने गए हैं।
गौर की राह पर कई और
बड़ा मजेदार होता है मध्यप्रदेश विधानसभा के सत्र का नजारा। विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के असंतुष्ट विधायकों को भी मिल जाता है अपनी भड़ास निकालने का मौका। सरकार की पोल खोलने से भी नहीं हिचकते। इस सत्र में अगर कोई कॉमन वॉइसÓ खोजी जाए तो वह पूर्व गृहमंत्री बाबूलाल गौर की थी जिन्होंने ऐसे मसले उठाए जो शासन-प्रशासन की लापरवाहियों, अव्यवस्था और लालफीताशाही को उजागर किया। गौर की इस आवाज में भाजपा के उन विधायकों के स्वर भी आ मिले जो अपने क्षेत्र में काम न होने से परेशान हैं। भाजपा विधायकों के सुर सधे हुए थे लेकिन आरोप तीखे थे। भाजपा विधायक कैलाश चावला ने इस मौके का फायदा उठाया। बकाया वसूली के चक्कर में ट्रांसफार्मर से जुड़े उपभोक्ताओं की बिजली काट देने का मामला छह महीने पहले उठाया था। मुख्यमंत्री चौबीस घंटे बिजली देने का दावा करते हैं। पर चावला को अब तक उनके सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं मिला। सदन के भीतर भाजपा की ही ममता मीणा ने दो साल से अधूरी पड़ी सड़क का काम पूरा नहीं होने की तोहमत अफसरों पर लगाई थी। महिदपुर के विधायक बहादुर सिंह चौहान को मलाल है कि वे सवालों के जरिए करोड़ों के घोटालों को सरकार के संज्ञान में लाते हैं। पर अफसर फाइलें दबा लेते हैं। पेटलावद पंचायत का उदाहरण भी दे दिया उन्होंने। भाजपा के हितेंद्र सोलंकी ने सदन में डंके की चोट पर खंडवा में नकली बीज और खाद धड़ल्ले से बिकने और दोषियों पर कार्रवाई न होने का खुलासा किया।