01-Aug-2016 08:25 AM
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केंद्र में यूपीए के शासनकाल में बुंदेलखंड को मिले विशेष पैकेज और मनरेगा में अभी तक लगभग 1 हजार 265 करोड़ रुपए पानी व रोजगार के नाम पर बहा दिए गए। फिर भी बुंदेलखंड के लोगों की न तो प्यास बुझ सकी और न ही पलायन रुक सका। साल की शुरुआत में ही पड़े भयावह सूखे से अकाल जैसे हालात बन गए थे। पैकेज के तहत बने लगभग 48 हजार स्टापडेम में से सैकड़ों अब बारिश के पानी में ही बह गए हैं।
पन्ना में पिछले सप्ताह आई केंद्रीय टीम ने मिट्टी से स्टापडेम व तालाब बनाने की पुष्टि की है, जो बह गए थे। भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े पैकेज में इस तरह फर्जीवाड़ा हुआ है कि किसी ने पत्नी के नाम तो किसी ने भाई के नाम पर कपिल धारा तक बहा दी। हाल ही में सागर जिले में ग्राम पंचायत के एक सचिव को इसलिए निलंबित किया है कि उसने पत्नी के नाम पर फर्जी तरीके से कपिल धारा योजना का कुआं खुदवाया लिया था। हालांकि बुंदेलखंड पैकेज में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार में अभी तक छोटी मछलियां समझी जाने वाले मात्र छोटे कर्मचारियों, अफसरों, निर्माण एजेंसियों पर ही कार्रवाई हो सकी। बुंदेलखंड पैकेज से अलग-अलग कार्यों के लिए स्वीकृत राशि, वित्तीय व भौतिक टारगेट और उपलब्धि की पड़ताल की तो यह हकीकत उजागर हुई। यह ऐसे काम हैं जो सिर्फ पानी और रोजगार उपलब्ध कराने के लिए किए गए हैं। बुंदेलखंड पैकेज का एक और हिस्सा वन विभाग, पशुपालन विभाग के लिए दिया गया था, जिसे जंगलों में जलस्त्रोत, इनके विकास व पशुपालन पर खर्च किया गया है। इन कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार उजागर हो चुका है। करोड़ों रुपए की राशि की बंदरबाट होने के बाद भी अभी तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी है। बुंदेलखंड पैकेज राजनीतिक दृष्टि से भी चर्चा का विषय रहा है।
मनरेगा में मजदूरी भुगतान एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इसीलिये यह बुन्देलखण्ड में पलायन रोकने में नाकाम साबित हो रही है। दमोह जिले में तेन्दूखेड़ा ब्लाक के ग्राम देवरी लीलाधर में यह बात सामने आई। यहाँ के कई लोगों की मजदूरी पिछले एक साल से बकाया है। लोग कहते हैं कि यदि मजदूरी समय पर मिल जाये तो वे गांव में ही रहकर मजदूरी करना चाहेंगे। 3000 की आबादी वाले इस गांव में 688 परिवार निवास करते हैं, जिनमें 250 परिवार लोधी और इतने ही परिवार दलित समुदाय के हैं। आदिवासी समुदाय के 125 परिवारों के साथ ही कुछ संख्या में रेकवाल, ठाकुर और ब्राम्हण परिवार निवास करते हैं। यहाँ सूखा और पलायन का सबसे ज्यादा असर दलित एवं आदिवासी परिवारों पर देखा जा सकता है, जिनमें भूमिहीन या बहुत कम भूमि वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। छोटे और सीमान्त किसानों के असिंचित खेतों में कोई फसल नहीं हो पाई, किन्तु बीज, खाद और कीटनाशक हेतु के लिये कर्ज की फसल लगातार बढ़ रही है। गांव के उमाशंकर अहिरवार बताते हैं कि हर साल खरीफ में धान और रबी में गेहूँ कि थोड़ी-बहुत उपज हो जाती थी, किन्तु इस बार तो वह भी नहीं हुई, जिससे पेट भरने का संकट पैदा हो गया। इस दशा में पलायन ही एक मात्र रास्ता दिखाई देता है।
रोजगार और भरण पोषण के सन्दर्भ में सबसे बड़ा मुद्दा मनरेगा का है, जिसके जरिए गांव में रोजगार उपलब्ध कराने और पलायन से मुक्ति के सपने देखे गए थे। लेकिन इस गांव के मिश्रीलाल, शंकर, कीरथ, हीरा, रामलाल सहित कई लोग कहते हैं मनरेगा में काम के बजाय बाहर जाकर और तकलीफ उठाकर काम करना ज्यादा अच्छा है। क्योंकि वहाँ मजदूरी तो मिल जाती है, मनरेगा में तो मजदूरी भी नहीं मिलती। ये वे लोग हैं जो मनरेगा में अपनी कई दिनों की मजदूरी खो चुके हैं। सरपंच और पंचायत सचिव भी यह बताने के लिये तैयार नहीं है कि उनकी मजदूरी मिलेगी या नहीं और यदि मिलेगी तो कब तक?
कहां गए 45 हजार 887 स्टाप डेम?
बुंदेलखंड के सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना और दतिया जिले में 537.27 करोड़ रुपए में बने 45 हजार 887 स्टाप डेम में से अभी तक कई धराशाही हो चुके हैं, तो कई जगह स्टाप डेम के नाम पर एक बूंद पानी भी नहीं रुक सका है। यही हाल 10.71 करोड़ रुपए से बने 2 हजार 658 खेत-तालाबों का है। कुछ हितग्राहियों ने पुराने तालाब को नया बताकर रुपए ऐंठ लिए तो कुछ अफसरों ने कागज पर ही तालाब बना दिए हैं। स्टाप डेम के रेनोवेशन एवं रिचार्जिंग के नाम पर भी जमकर लूटपाट की गई। छह जिलों में 75.57 करोड़ रुपए की लागत से 2 हजार 559 रुपए से स्टाप डेम के रेनोवेशन एवं रिचार्जिंग का काम किया गया है। मजेदार बात यह है कि इनमें से कई स्टॉप डेम अब प्रधानमंत्री ग्रामीण सिंचाई परियोजना में सिंचाई की क्षमता बढ़ाने के लिए भी शामिल कर लिए गए हैं।
-जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया