कैसे खुले में शौच से मुक्त होगा मप्र...?
18-Jul-2016 08:54 AM 1234818
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की थी। इसके तहत देशभर में हर घर और हर स्कूल में शौचालय बनाने का अभियान शुरू किया गया। लेकिन 2 साल बाद भी मप्र में 24 फीसदी ग्रामीण आबादी और 22 फीसदी शहरी क्षेत्र में लोग शौचालय का उपयोग नहीं करते हैं, जबकि बांग्लादेश जैसे छोटे देश की स्थिति भी हमसे बेहतर है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने जब सरकार को फटकार लगाई तो अब जाकर मप्र सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में अगली बार होने वाले पंचायत चुनाव में सरपंच और पंच पद पर वे ही उम्मीदवार चुनाव लड़ सकेंगे जिनके घर में शौचालय होगा। लेकिन सरकार के इस फरमान से मप्र खुले में शौच मुक्त हो पाएगा इसमें संदेह है। क्योंकि प्रदेश में अभियान कहीं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है, तो कहीं इच्छा शक्ति और जागरुकता के अभाव में दम तोड़ रहा है। इंदौर को छोड़ दें तो प्रदेश के अधिकतर जिलों में स्वच्छता की हकीकत अधूरी ही है। शौचालय में कंडे-लकड़ी भरे हैं। न सीट है न छत। अभियान को सार्थक बनाने के लिए क्रांतिकारी प्रयासों की जरूरत महसूस की जा रही है। हद तो यह देखिए कि केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र विदिशा में ही मोदी के स्वच्छता अभियान को तगड़ा झटका लगा है। विदिशा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कर्मस्थली है जहां नगरपालिका में सीएम के अति विश्वासपात्र कार्यकर्ता मुकेश टण्डन अध्यक्ष पद पर पदस्थ हैं। लेकिन यहां स्वच्छता योजना के तहत बनाए गए 1309 शौचालय लापता हैं। दस्तावेज बोलते हैं कि 1809 शौचालय बनाए गए हैं परंतु फिजीकल वेरिफिकेशन में मात्र 500 ही मिले। 1309 शौचालय कहां गए, किसी को नहीं पता। शौचालय घोटाले का पता तब चला जब स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत वेब पोर्टल में शौचालय निर्माण से सम्बंधित जानकारी अपडेट करना थी। वो भी हितग्राही के फोटो के साथ। इस मामले में सर्वे दल जांच करने निकला तो ये चौंकाने वाला मामला सामने आया। इसी तरह दतिया के एक गांव में 84 शौचालय बनाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन 24 शौचालय भी नहीं बन पाए हैं। इसके साथ प्रदेश के कई हिस्सों में शौचालय आर्थिक अनियमितता की भेंट चढ़ चुका है। बालाघाट जिले में 57 हजार शौचालय बनाने के दावे की जांच में 6805 शौचालय ही मिले। शिवपुरी के दिनारा में तो टॉयलेट घोटाला के चलते प्रभारी सीईओ एके श्रीवास्तव को जेल जाना पड़ा और सरपंच-सचिव ने फरारी काटकर अग्रिम जमानत करानी पड़ी। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने इस पूरे मामले में जांच के आदेश दिए हैं। अब विदिशा की गलियों में नगर पालिका के कर्मचारी उन लोगों की तलाश कर रहे हैं जिनके नाम लिस्ट में हैं। ऐसा नहीं कि ऐसे मामले केवल कुछ ही जिलों में ही सामने आए हैं। बल्कि प्रदेशभर में स्थिति खराब है। जहां कई जिलों में शौचालय निर्माण की योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं वहीं कई जिलों में इस दिशा में सुस्ती से काम हो रहा है। रतलाम शौच मुक्त भारत के नजरिए से 50 वें पायदान पर है। 2015-16 में 33,010 शौचालय निर्माण का लक्ष्य था, जबकि सिर्फ 6,452 ही बन सके है। नीमच में लक्ष्य की तुलना में 40 फीसदी शौचालय अधूरे हैं। 18 हजार शौचालय के स्थान पर जून तक केवल 5400 ही बन पाए हैं। मंदसौर में सवा लाख से ज्यादा लोगों के घरों में अब भी शौचालय नहीं हैं। करीब एक लाख 13 हजार शौचालय नहीं बने। लक्ष्य की तुलना में 30 फीसदी ही बन पाए। खंडवा में पिछले वर्ष 36 हजार शौचालय का लक्ष्य था, लेकिन 10 हजार भी नहीं बन पाए। इस साल 1.18 लाख शौचालयों का लक्ष्य है। बड़वानी में 2017 तक खुले में शौच से मुक्त करने का सपना कोसों दूर है। डेढ़ लाख से ज्यादा घर ऐसे हैं, जिनमें शौचालय नहीं हैं। बुरहानपुर में 28,134 शौचालय बनाने का लक्ष्य था, लेकिन केवल 7 हजार ही बनाए जा सके हैं। खरगोन में स्थिति गंभीर है। शौचालय की आड़ में 1300 रुपए की वसूली हो रही है। शहर के 17 सौ घरों में शौचालय नहीं हैं। आलम यह है कि यहां के लोग आज भी खुले में शौच कर रहे हैं। इसी तरह झाबुआ में शौचमुक्त गांवों को कागजों में समेट दिया है। 34 हजार 52 शौचालय बनाने का लक्ष्य था जिसमें से 20342 ही बन पाए हैं। धार जिले के पौने दो लाख परिवार खुले में शौच को मजबूर हैं। इस वर्ष 78 हजार शौचालय का लक्ष्य है जबकि 6376 बन पाए हैं। देवास में गत वर्ष 30,358 शौचालय बनाने का लक्ष्य था, जिसमें से 17001 बन सके। 2016-17 में 36 हजार के लक्ष्य में से 6755 शौचालय बने हैं। राजगढ़ जिले में 1.40 लाख के लक्ष्य के मुकाबले 22,716 शौचालय बन सके हैं। आधे से अधिक शौचालयों की राशि नहीं मिल पाई। वहीं सीहोर में एक लाख 17 हजार 884 शौचालय बनाने के लक्ष्य में से 81 हजार 431 बन पाए। 155 पंचायत ओडीएफ हो चुकी है। गुना में 30 हजार शौचालय के लक्ष्य के मुकाबले 2120 का निर्माण हो चुका है। पानी नहीं होने से उपयोग नहीं हो रहा है। अशोकनगर में 19742 शौचालय बनाने का लक्ष्य था, जिसमें से 2300 बन सके हंै। खुले में शौच मुक्त ग्राम पंचायतों का लक्ष्य 47 है। कटनी में दो वर्ष के दौरान 36 हजार शौचालय बनाने के लक्ष्य का 35 प्रतिशत कार्य यानी 12448 शौचालय बन पाए हैं। शहडोल में 30 हजार शौचालय के लक्ष्य के मुकाबले केवल 3082 ही बन सके। बीते वर्ष भी 30 हजार में से 17325 शौचालय बने थे। उधर, अनूपपुर में बीते वर्ष 25,290 के लक्ष्य में से 15715 शौचालय बन पाए। इस वर्ष 24000 में से अब तक 4984 ही बने हैं। मंडला में 2016-17 में 54000 शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। अब तक 15,600 का निर्माण हो चुका है। छिंदवाड़़ा में दो साल में 72 हजार शौचालय बने, 170 पंचायतों को ओडीएफ घोषित किया, लेकिन गुणवत्ता के अभाव में टूट-फूट गईं। बालाघाट की 690 पंचायतों में से 76 खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित हो चुकी हैं। दतिया में 4820 शौचालय निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया, जिसमें से 495 का ही निर्माण हुआ। शिवपुरी में 25 हजार टॉयलेट बनाने का लक्ष्य था, जिसमें 50 फीसदी भी नहीं बन पाएं है। इनमें से 80 फीसदी उपयोग विहीन हैं। भिण्ड में 1.76 हजार शौचालय का निर्माण होना था लेकिन 61 हजार ही बन पाए हैं। आदत न होने से 80 फीसदी उपयोग नहीं कर रहे। वहीं श्योपुर में पानी की कमी के चलते 1.12 लाख शौचालय बनाने के लक्ष्य के मुकाबले 20 हजार बन पाए हैं। इस वर्ष 42000 के लक्ष्य में से 2600 शौचालय ही बने हैं। वहीं मुरैना में इस वर्ष 42000 शौचालय निर्माण का लक्ष्य है, जिसमें से सिर्फ 2600 बने हैं। यानी यहां 10 फीसदी भी शौचालय निर्माण का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। जबकि यहां अब तक 10500 शौचालय बन जाना था। इसी तरह डबरा में इस वर्ष 6000 शौचालय बनाने का लक्ष्य है, जिसमें से अब तक 815 बने हैं, जबकि 2015-15 में 6000 का लक्ष्य था, जिसमें से सिर्फ 3800 बन सके। सागर में 2,34,931 शौचालय का लक्ष्य है, जिसमें से दो साल में मात्र 48 हजार बन सके हैं। 17 पंचायतें ओएफडी हो सकी हैं। छतरपुर में 2016-17 में मात्र 2426 शौचालयों का निर्माण हुआ, जबकि तीन वर्ष में 25213 बन पाए हैं, जबकि लक्ष्य 2. 50 लाख शौचालय बनाने का है। टीकमगढ़ में 36 हजार शौचालय के लक्ष्य में से केवल 3800 ही बने हैं। जिले में सबसे बड़ी समस्या निर्माण के बाद भुगतान की है। इन सबके बीच अच्छी खबर यह है कि इंदौर प्रदेश का पहला खुले में शौच मुक्त जिला बना है। 312 पंचायतों के 612 गांवों में मुहिम चलाई थी। वहीं सिवनी की 645 पंचायतों में शौचालय निर्माण पूर्ण हो चुका है। अब तक 75 हजार से ज्यादा शौचालय के निर्माण किए गए हैं। 31 मार्च 2017 तक सिवनी जिले को पूर्णत: खुले में शौच से मुक्त बनाने का लक्ष्य है। विदिशा में इस वर्ष 4200 शौचालय के लक्ष्य के मुकाबले तीन माह में ही 3954 बन चुके हैं। हालांकि 2015-16 में 38,884 के लक्ष्य के मुकाबले 13,900 ही बन पाए थे। जानकारों का कहना है कि शौचालयों का शत प्रतिशत उपयोग नहीं हो रहा है। शहडोल में ही 60 फीसदी शौचालयों का ताला नहीं खुल सका है। जागरूकता के अभाव में यही स्थिति प्रदेश के लगभग सभी जिलों की है। मंडला में 35 प्रतिशत लोग ही शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं। राजगढ़ में 50 प्रतिशत लोग ही उपयोग कर रहे हैं। विदिशा जिपं सदस्य सुभाषिनी बोहत के मुताबिक क्षेत्र में कई घरों में शौचालय नहीं होने से महिलाएं खेतों, मेड़ों पर शौच के लिए जाती हैं तो लोग पत्थर मारते हैं। करीब 80 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोगों के घरों में शौचालय नहीं। आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। शौचालय नहीं तो हटेंगे सरपंच प्रदेश में शौचालय निर्माण में तेजी लाने के लिए खाचरौद एसडीएम अशोक व्यास ने फरमान जारी किया है कि शौचालय विहिन गांवों के सरपंच को हटाने की कार्रवाई होगी। वहीं खुले में शौच करने वाले पर कानूनी कार्रवाई होगी। दरअसल विकासखंड में बीपीएल सूची में आने वाले ग्रामीणों के घरों में 13 हजार शौचालय का निर्माण होना था। लेकिन सीईओ, सरपंच और सचिवों की ढीलपोल से लक्ष्य पूरा नहीं हो सका है। निर्माण की प्रगति को लेकर एसडीएम ने कई बार रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन सीईओ ने रिपोर्ट नहीं दी। इस पर एसडीएम ने सख्त रुख अख्तियार किया है। शौचालय न होने से छात्राओं ने छोड़ी पढ़ाई ऐसे में जब केंद्र की मोदी सरकार शौचालयों को लेकर देशभर में बड़ा अभियान चलाकर लोगों को जागरूक करने में लगी है तबसतना जिले का एक प्राइमरी स्कूल की पांच छात्राओं ने शौचालय न होने के विरोध में स्कूल आना छोड़ दिया है। यह साहसिक कदम उठाया है कक्षा आठ की छात्रा सीमा पटेल, वंदन वर्मा, गीतांजलि चतुर्वेदी, शिवा कुमारी और शिवांशी ने। सतना जिले की इन पांच छात्राओं ने भीष्मपुर गांव के गर्वनमेंट हायर सेंकेंडरी स्कूल में आना छोड़ दिया है। भीष्मपुर ग्राम पंचायत के सदस्य वीरेन्द्र कुमार पटेल ने बताया कि इनकी देखादेखी कई अन्य छात्राएं भी टॉयलेट न होने के कारण स्कूल छोडऩे का मन बना रही हैं। उन्होंने बताया कि छात्राएं इस स्कूल की बजाय जिले के अमरपाटन कस्बे के स्कूल में एडमिशन लेना चाहती हैं, जो गांव से बीस किलोमीटर दूर है। वहीं स्कूल छोडऩे वाली एक छात्रा सीमा पटेल ने आरोप लगाया कि स्कूल में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय है, लेकिन अपने निर्माण के बाद से ही उस पर पिछले सालभर से ताला लटका हुआ है। सीमा बताती है कि इसके चलते टॉयलेट के लिए हमें स्कूल के बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसकी जानकारी शिक्षकों और अन्य अधिकारियों को भी है लेकिन कोई कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं है। -विकास दुबे
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