18-Jul-2016 09:02 AM
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बिक्री कर (सेल्स टैक्स) सरकार किसी भी सामान की खरीद-फरोख्त पर कर वसूलती है। यह सरकार की आय का एक साधन होता है। लेकिन मध्यप्रदेश में सेल्स टैक्स विभाग के द्वारा व्यापारियों को लाभ पहुंचाने और अपनी कमाई करने के लिए नियमानुसार छापे की कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस कारण सरकार को हर साल करोड़ों रुपए की चपत लग रही है। विभाग की इस कार्यप्रणाली से वरिष्ठ अधिकारी वाकिफ हैं लेकिन वे इसे रोकने की कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि मप्र में सेल्स टैक्स न देने वाले व्यवसायियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पांच एंटीइवेजन ब्यूरो इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और सतना में कार्यरत हैं। इनकी मॉनीटरिंग इंदौर मुख्यालय से होती है। टैक्स न देने वाले व्यवसायिक संस्थानों के खिलाफ एंटीइवेजन ब्यूरो के अधिकारी धारा-55-56 के तहत कार्रवाई करते हैं। इस धारा में स्पष्ट उल्लेख है कि जब भी ब्यूरो कहीं छापामार कार्रवाई करता है तो उसकी वीडियो रिकार्डिंग होनी चाहिए। उस रिकार्डिंग की सीडी बनाकर विभाग में रखी जाती है। लेकिन प्रदेश में इसका पालन नहीं हो रहा है। सेल्स टैक्स विभाग के सूत्रों का कहना है कि दरअसल रिकार्डिंग इसलिए नहीं की जा रही है क्योंकि उससे छापे की हकीकत सामने आ सकती है। विभाग के अधिकारियों का दावा तो यहां तक है कि अगर विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एंटीइवेजन ब्यूरो द्वारा मारे गए छापे और विभाग में रखी गई छापे की सीडियों की संख्या का मिलान कर ले तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
दरअसल ब्यूरो के अधिकारी जब छापामार कार्रवाई करते हैं तो नियमानुसार उन्हें उसी स्थल पर छापे में मिले दस्तावेजों आदि की जब्ती बनानी होती है। लेकिन वे ऐसा न करके सारे जब्त कागजात और डायरी आदि पेटी में बंद करके ऑफिस ले आते हैं। जबकि नियम यह है कि किसी आपदा-विपदा में ही ऐसा किया जा सकता है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि छापे के बाद दो-तीन अधिकारियों की उपस्थिति में व्यवसायी के सामने उक्त पेटी में बंद कागजातों की जब्ती बनाई जाती है। इस दौरान व्यवसायी से सांठगांठ कर उसे महत्वपूर्ण कागज लौटा दिए जाते हैं, जिससे सरकार को पेनाल्टी की बड़ी रकम मिल सकती है।
यही नहीं व्यापारी से सांठगांठ होने के बाद उस पर थोड़ी बहुत पेनाल्टी लगाई जाती है। और उस पर जो टैक्स बकाया रहता है उसे वसूल कर दर्शाया जाता है कि विभाग ने छापामार कार्रवाई में बड़ी वसूली की है। विभागीय अधिकारियों का दावा है कि उच्च स्तर के अधिकारी एंटीइवेजन ब्यूरो के छापे की मॉनीटरिंग करते हैं। लेकिन वे भी इस सांठगांठ में शामिल रहते हैं इस कारण न तो नियमानुसार छापे की कार्रवाई हो पाती है न ही पेनाल्टी की वसूली।
दरअसल यह पूरा खेल सांठगांठ से चल रहा है। एंटीइवेजन ब्यूरो के अधिकारियों का काम छापामार कार्रवाई कर दोषी संस्थानों से पेनाल्टी के तौर पर पैसा लाना है। लेकिन वे छापे की कार्रवाई इस तरह करते हैं कि अगर व्यापारी से सांठगांठ हो जाए तो केवल उससे टैक्स लिया जाता है। विभाग में किस तरह की गड़बडिय़ां चल रही हैं इसका खुलासा छतरपुर और सतना में मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड के टैक्स चोरी मामले में हो चुका है। लेकिन विभाग पर फिर भी नकेल नहीं कसी जा रही है। अगर ऐसे सैकड़ों मामलों को फिर से जांचा जाए तो टैक्स चोरी के कई और मामले सामने आएंगे।
हाईकोर्ट ने पेपटेक पर लगा 10 करोड़ के दंड को उचित माना
छतरपुर और सतना में मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड के टैक्स चोरी मामले में हाईकोर्ट की जबलपुर खण्डपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि कंपनी पर वाणिज्यिक कर विभाग ने जो 10 करोड़ का टैक्स वसूली का दंड लगाया है वह उचित है। यही नहीं कोर्ट ने कंपनी को फटकार भी लगाई है और कहा है कि वह कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। उल्लेखनीय है कि अपर आयुक्त पीके शिवहरे द्वारा स्वप्रेरणा से इस बहुचर्चित मामले की जांच करके मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड पर 10.34 करोड़ रुपए का अतिरिक्त दंड लगाया था। उसको लेकर कंपनी हाईकोर्ट में गई थी। 14 जुलाई को इस मामले में विभाग की ओर से समदर्शी तिवारी ने पक्ष रखा। जिस पर चर्चा करते हुए हाईकोर्ट ने आर्थिक दंड को उचित माना। कोर्ट के निर्णय के बाद विभाग के अधिकारियों के घालमेल की पोल भी खुल गई है। उल्लेखनीय है कि जब विभाग के एक अधिकारी द्वारा लगाए गए 10 करोड़ के अर्थदण्ड को दूसरे अधिकारी द्वारा 0 कर दिया जाता है उस समय मुख्यालय के अफसर आखिर कर क्या रहे थे। मुख्यालय के अफसरों ने इस मामले में जांच क्यों नहीं की? इससे मुख्यालय भी संदेह के घेरे में आ गया है।
-इंदौर से विशाल गर्ग