18-Jul-2016 08:59 AM
1234809
राजस्थान पुलिस के जख्मों पर 3 सितंबर, 2015 के बाद नमक छिड़कने का सबसे अच्छा तरीका यह है: उसके किसी भी अफसर से यह पूछ लें कि वे आनंद पाल सिंह को कब गिरफ्तार करेंगे। यही वह दिन था जब यह खूंखार अपराधी नागौर जिले के पर्बतसर से दर्जन भर हथियारबंद कमांडो के चंगुल से निकल भागा था। उनमें से कुछ को उसने मिठाई में नशा देकर बेहोश किया, कुछ पर गोलियां चलाईं और बाकी के साथ सांठगांठ की थी। उस दिन उसे, उस पर चल रहे ढेरों मुकदमों में से एक में बरी होने के बाद वापस लाया जा रहा था। मीडिया और फेसबुक पर उसकी तस्वीरों में मजबूत कद-काठी, लहराते लंबे घुंघराले बाल, दोस्ताना मुस्कान, आत्मविश्वास से भरी चालढाल और बेफिक्र मुद्रा दिखाई देती है, जिसने उसके कई कद्रदान पैदा कर दिए हैं।
एक पूर्व हेड कांस्टेबल के पांच बच्चों में से एक इस भगौड़े ने 31 मई को जिंदगी के 42 साल पूरे किए। पांच राज्यों के 1,200 पुलिसकर्मी और दो दर्जन आईपीएस अफसर उसकी तलाश में हैं और सैकड़ों टेलीफोन कॉल की छानबीन कर रहे हैं। फिर भी 15 जून को वह उन सबकी आंखों में धूल झोंककर ग्वालियर शहर के दीनदयाल नगर में मध्य प्रदेश पुलिस के एक कांस्टेबल की मिल्कियत वाले मकान से भाग निकला। आनंद पाल 2006 में एक हत्या के बाद से ही कानून की गिरफ्त से बचकर भागता रहा है। 2012 में पुलिस अधिकारी शांतनु सिंह ने उसे जयपुर के बाहरी इलाके में एक फार्म हाउस में बंदूक की नोक पर हथियार डालने को मजबूर कर दिया था और उसके साथ एके-47 सहित हथियारों का भारी जखीरा भी पकड़ा था। उसके खिलाफ तकरीबन तीन दर्जन मुकदमे चल रहे हैं जिनमें से नौ में अदालतें उसे बरी कर चुकी हैं। लंबित मामलों में पांच हत्या के हैं।
अब जब उसे उत्तर प्रदेश की पुलिस तलाश रही है, उसके वकील ए. पी. सिंह ने पिछले हफ्ते राजस्थान हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चि_ी लिखी है कि उसके मामले सीबीआई को सौंप दिए जाएं क्योंकि इनाम के चक्कर में पुलिस उसे एनकाउंटर में मार डालना चाहती है। हालांकि गृह मंत्री कटारिया ने 22 जून को स्पष्ट किया कि सरकार उसे मारना नहीं बल्कि जेल में रखना चाहती है। आनंद पाल की कहानी रावण राजपूत समुदाय से आए एक नौजवान की कहानी के तौर पर सुनाई जाती है। राजपूतों में यह निचली जाति है मगर एक जमाने में यह शासक समुदाय था। अलबत्ता आजाद हिंदुस्तान में इनका कद छोटा कर दिया गया और वर्चस्व खेतिहर जाटों को सौंप दिया गया जिन्होंने आजादी के आंदोलन में कांग्रेस के साथ अपने रिश्तों की फसल काटी। इस दुश्मनी की समाज पर भी गहरी छाप है जो शेखावाटी इलाके में अपराध और सियासत तक फैल गई है। इन जिलों में वर्चस्व जाटों का है मगर राजपूतों की भी अच्छी-खासी मौजूदगी है। ताकतवर और संपन्न जाट समुदाय को ओबीसी कोटे में आरक्षण की मंजूरी मिलने के साथ ही कई गैर-जाट जातियां जाट माफियाओं के खिलाफ हो गईं और चुपचाप आनंद पाल की हिमायत करने लगीं। धीरे-धीरे वह एक ऐसे गैंगस्टर के तौर पर उभरा जिसे इतना निष्पक्ष माना जाता था कि जाटों के अलावा हरेक जाति और मजहब के स्थानीय मुजरिम, शराब के तस्कर, उगाही करने वाले गुंडे और बदमाश उसकी तरफ खिंचे चले आए. स्थानीय किस्सों में उसे रॉबिनहुड का दर्जा दे दिया गया, यानी एक ऐसा डकैत जिससे गरीब डरते नहीं थे बल्कि उससे मदद की उम्मीद कर सकते थे।
कई तरह के सफल-विफल धंधे करने के बाद 2000 में उसने लाडऩूं से पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और जीता। मगर वह उस वक्त की कांग्रेस सरकार में कृषि मंत्री और जाट नेता हरजी राम बुरडक के बेटे की शक्ल में ताकतवर प्रतिद्वंद्वी से प्रधान का चुनाव हार गया। पंचायत की बैठकों में उसके हमलावर रवैए की वजह से उस पर एक के बाद एक कई मुकदमे दर्ज हो गए। यहां से मुकम्मल जुर्म और बर्बरता की दुनिया में दाखिला ज्यादा दूर नहीं था। 2001 में लूट के एक मामले में उसका चालान किया गया और उसके बाद जल्दी ही उसने अपने जुर्म के साझेदारों के साथ एक मेडिकल स्टोर के सेल्समैन खैरराज जाट की हत्या कर दी। 2004 आते-आते वह बेधड़क घूमने लगा और इसी दौरान उसने मौलासर कस्बे में एक राजूपत औरत के अपहरण के आरोपी नानू राम जाट को मारने के लिए तेजाब का इस्तेमाल किया। आखिरकार उसी साल उसने नागौर शहर में पुलिस के सामने हथियार डाल दिए। लेकिन जल्दी ही जनवरी 2005 में उसे जमानत पर छोड़ दिया गया और उसके बाद वह राजनीति के साथ अपराध की दुनिया में पैर पसारने लगा। और अब वह राजस्थान पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया है।
उसके ज्यादातर गुर्गे हो
चुके हैं गिरफ्तार
पुलिस ने दावा किया कि उसने मार्च की मुठभेड़ के बाद उसके ज्यादातर गुर्गों को पकड़ लिया है। आइजीपी (ऑपरेशंस) बीजू जोसफ जॉर्ज, जिन्हें आनंद पाल को पकडऩे की जिम्मेदारी सौंपी गई है, मानते हैं, हरेक गिरफ्तारी के साथ हमारा काम कुछ और मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह एक नए खोल में घुस जाता है, मगर हम उसके ऊपर फंदा कस रहे हैं। वहीं उनके बॉस और राज्य पुलिस की दो विशेष इकाइयों आतंक रोधी दल और विशेष कार्य बल के प्रमुख आलोक त्रिपाठी कहते हैं, पिछली बार उसे पकडऩे में हमें छह साल लगे थे। इस बार अभी सिर्फ नौ महीने ही हुए हैं।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी