18-Jul-2016 08:45 AM
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पिछले 12 साल से अधिक समय से सत्ता से दूर रही कांग्रेस मप्र में क्या इतनी बदहाल हो गई है कि उसके पास आगामी विधानसभा चुनाव के लिए 230 प्रत्याशी भी नहीं हैं? यह सवाल किसी आम मतदाता का नहीं बल्कि कांग्रेस के नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेर खान का आरोप है। दरअसल असलम शेर खान लगातार पार्टी में चल रही गुटबाजी पर आरोप लगाते रहते हैं। यही नहीं वे कांग्रेस को नेहरू गांधी परिवार के चंगुल से मुक्त कराने की वकालत भी करते हैं। लेकिन इस बार उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हालात बेहद खराब हैं। स्थिति यह है कि वर्तमान में यहां 230 प्रत्याशी भी नहीं हैं। पुराने ढर्रे का चलन छोडऩा पड़ेगा। अब बैक डोर से पार्टी नहीं चलने वाली। पीएम और सीएम के नाम पहले से प्रोजेक्ट करना होगा। हालांकि पार्टी के पदाधिकारी उनके इन सुझावों से इत्तेफाक नहीं रखते। लेकिन उनका आरोप बेबुनियाद भी नहीं है।
दरअसल विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी निरंतर उपचुनाव भी हार रही है। हालांकि रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव और निकाय चुनाव में कांग्रेस ने जो दम दिखाया वह जारी नहीं रह पाया। इन चुनाव में मिली हार ने तो प्रदेश भाजपा खेमे कि बैचनी पैदा कर दी थी और करीब एक दशक से पस्त पड़ी कांग्रेस वापसी के लिए अपने आप को संभाल कर मैदान में दिखाई देने लगी थी। लेकिन अपनी मात से सबक हासिल करना शिवराज सिंह चौहान की हमेशा से ही बड़ी खासियत रही है, और मैहर फिर घोड़ाडोंगरी में एक बार फिर यही साबित हुआ है, इस जीत के सहारे वे अपनी विश्वसनीयता को वापस हासिल करने में कामयाब रहे हैं। उधर मैहर में हार के बाद से ही कांग्रेस एक बार फिर अपनी पुरानी गुटबाजी में फंसती हुई दिखाई पड़ रही है।
ऐसा प्रतीत होता है मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने अपनी गलतियों से कोई सीख ना लेकर उसे लगातार दोहराने की आदत सी बना ली है। अगर बारह साल बीत जाने के बावजूद वह अभी तक खुद को जनता के सामने भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करने में नाकाम रही है तो इसके पीछे शिवराज सिंह चौहान और भाजपा नहीं बल्कि खुद कांग्रेस के नेता हैं। वह लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी है पिछले लोकसभा चुनाव में उसे प्रदेश की कुल 29 सीटों में से मात्र दो सीटें ही मिलीं थीं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस नहीं बल्कि इसके नेताओं के गुट ही काम करते हुए दिखाई देते हैं, हर चुनाव में यह गुट भाजपा से ज्यादा एक-दूसरे के खिलाफ संघर्ष करते हुए ही नजर आते हैं। झाबुआ की तरह जब कभी भी ये सभी गुट एक साथ मिलकर लड़े हैं तो इसका फायदा भी देखने को मिला है, पिछले 12 सालों से मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा कांग्रेस को एक प्रभाव विहीन विपक्ष के रूप में बनाए हुए थी लेकिन पिछले दिनों कुछ समय के लिए इस स्थिति में बदलाव देखने को मिला और दस सालों में पहली बार शिवराज सिंह चौहान कमजोर नजर आए थे, पहले झाबुआ-रतलाम लोकसभा सीट और उसके बाद नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस अपनी हारने की आदत को बदलते हुए भाजपा को शिकस्त देने में कामयाब रही थी। उसके कार्यकर्ताओं में उत्साह देखने को मिल रहा था और नेतृत्व की तरफ से भी यह सन्देश देने की कोशिश की गयी थी कि नेताओं ने आपसी विवाद और मतभेदों को भुलाकर साथ काम करना शुरू कर दिया है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस अपनी इस सफलता को पूरे प्रदेश में भुनाने का सपना पाले थी। लेकिन मैहर फिर घोड़ाडोंगरी में हार के बाद प्रदेश कांग्रेस एक बार फिर पुराने ढर्ऱे पर वापस जाती हुई दिखाई पड़ रही है, उसके क्षत्रप एक बार फिर आपस में उलझते हैं और पार्टी में गुटबाजी चरम पर पहुंचती दिखाई दे रही है। इस बार निशाने पर अरुण यादव है। दरअसल पार्टी में कुछ यादव की जगह किसी और को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं।
मप्र में एक दमदार और चमकदार चेहरे की जरूरत
मप्र में शिवराज सिंह चौहान से मुकाबले के लिए कांग्रेस को एक दमदार और चमकदार चेहरे की जरूरत है। लेकिन पार्टी के नेता कोई एक नाम सामने नहीं रख पा रहे हैं। कोई कमलनाथ कोई ज्योतिरादित्य सिंधिया कोई दिग्विजय तो कोई अरुण यादव का नाम ले रहा है। जिसमें गुटबाजी साफ झलक रही है। असलम शेर खान इसके लिए वरिष्ठ व अनुभवी नेता कमलनाथ को बेहतर चेहरा मानते हैं। इस मामले में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में लाना हमारा लक्ष्य है। नेता कोई भी हो हम सब साथ है। वहीं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया यह दावे के साथ कहते हैं कि प्रदेश में अगली बार सरकार कांग्रेस की बनेगी चाहे चेहरा कोई भी हो।
-भोपाल से अरविंद नारद