सास-बहू में प्रभुत्व की जंग
18-Jul-2016 08:37 AM 1234917
सास और बहू के बीच झगड़ों की शुरुआत तब होती है जब वे दोनों यह समझने लगती हैं कि उन का एक-दूसरे की सत्ता में अनाधिकृत प्रवेश हो रहा है। इस सोच के चलते उनके मन में प्रतिस्पर्धा का भाव जागता है, एक-दूसरे के प्रति कटु आलोचना का जन्म होता है। इस स्थिति में दोनों ही एक-दूसरे को अपने से कमतर आंकने की भूल करते हैं। इस में संदेह नहीं कि एक परिवार में दोनों ही वयस्क होते हैं और उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है, परंतु सास का अनुभव निश्चित तौर पर बहू से ज्यादा होता है और चूंकि परिवार में उसका पहले से प्रभुत्व होता है, वह बहू के आने के बाद भी घर में वैसा ही अधिकार और प्रभुत्व चाहती है। सास-बहू के बीच झगड़े का दूसरा कारण मां और पुत्र का संबंध होता है। वैसा संबंध सास और बहू के बीच कभी नहीं बन पाता है। सास को लगता है कि एक-तीसरे शख्स ने उस के घर में आकर उस के पुत्र के ऊपर उस से अधिक अधिकार जमा लिया है। दूसरी तरफ बहू समझती है कि उसका अपने पति के ऊपर विशेषाधिकार है और वह अपने पति के जीवन में अति विशिष्ट स्त्री का स्थान रखती है। जबकि इन दोनों के बीच पुरुष को एक ही समय पुत्र और पति दोनों की भूमिका निभानी पड़ती है। सास-बहू के बीच कटुता दहेज की मांग या इच्छा, बहू से पुत्र की कामना, पुत्री पैदा होने से नाराजगी आदि भी हैं। दहेज का भयावह रूप 7वें-8वें दशक तक बहुत कम था। अगर था भी तो केवल उच्च या उच्चमध्य वर्ग में, परंतु धीरे-धीरे इस ने निम्न वर्ग तक अपने पैर पसार लिए और आज इसके कारण अधिकांश परिवार दहेज की ज्वाला में जलने लगे हैं। खैर, दहेज की मांग एक विशेष कारण है और यह सामान्य व्यवहार की श्रेणी में नहीं आता। एक अनुमान के आधार पर भारत में लगभग 60 प्रतिशत परिवार दांपत्य जीवन में सास-बहू के झगड़ों से प्रभावित होते हैं। सास-बहू के झगड़ों के लिए केवल एक पक्ष को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। आमतौर पर कहानियों के माध्यम से  सास-बहू संबंधों पर रोचक तथ्य देखे जा सकते हैं। प्रेमचंद के साहित्य में सास-बहू के झगड़ों का बहुत क्षीण अस्तित्व दिखता है। उन की एक कहानी तेंतरÓ में सास अपनी बहू से तो कम, उसकी जायी तीसरी पुत्री से ज्यादा नाराज रहती है, क्योंकि वह 3 पुत्रों के बाद जन्मी है और एक मान्यता के अनुसार, 3 पुत्रों के ऊपर जन्मी पुत्री अभागी होती है। सास मानती है कि वह परिवार के लिए अपशकुन लेकर आई है जिससे कोई न कोई अनहोनी होगी। परंतु जब कई महीनों तक कोई अनहोनी नहीं होती तो सास अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उदरशूल का झूठा बहाना बना कर घर वालों को परेशान करती है। इस कहानी की पुत्रवधू बहुत सीधी है और वह सास की ज्यादतियां चुपचाप सहती रहती है। प्रेमचंद की एक दूसरी कहानी बूढ़ी काकीÓ की सास एक उपेक्षित सास है। घर में भोज है, लोग दावत उड़ा कर चले जाते हैं, बेटा और बहू भी खापी कर सो जाते हैं, परंतु भूख से बिलबिलाती बूढ़ी काकी के बारे में कोई नहीं सोचता। उसी दौर की कहानीकार सुभद्राकुमारी चौहान की कहानियों में सास-बहू के झगड़ों के बजाय उन के बीच प्रेम और सौहार्द्र का बंधन देखने को मिलता है। उनकी कहानी सोने की कंठीÓ की बिंदो पढ़ी-लिखी होने के कारण अपनी 2 जेठानियों और सास के बीच प्रेम और आदर की अधिकारिणी बन जाती है। उनके संयुक्त परिवार में कलह होने पर भी उसको कोई कुछ न कहता, बल्कि उस की जेठानियां अपने पतियों से पिट जातीं। यह एक ऐसी समस्या है जो सार्वभौमिक या शाश्वत नहीं है, इसलिए इसे अपवादस्वरूप मानना ही ज्यादा अच्छा होगा। बदलते कथानक हिंदी  कहानियों  में  समय  के साथ-साथ कथानक में बदलाव अवश्य आए हैं और कुछ समस्याएं आधुनिक कथा साहित्य में नए सिरे से उभर कर सामने आई हैं, जैसे दहेज की समस्या। इस दानव के कारण कितनी ही नववधुएं अग्नि की ज्वाला में जल कर राख हो गईं और कितने ही परिवार मुकदमों के चक्कर में बरबाद हो गए। ये प्रसंग कहानियों के मुख्य विषय बने। देश के कुछ भागों में अभी भी यह समस्या बनी हुई है, परंतु शिक्षा के प्रसार के साथसाथ इस में कमी आई है। संयुक्त परिवारों के टूटने से भी बहुत सी समस्याओं का समाधान हुआ है। अब बेटे और बहुएं अपने मांबाप या सासससुर से दूर अलगअलग शहरों या विदेशों में रहते हैं। सो, सास और बहू के विवाद अगर समाप्त नहीं तो कम अवश्य हुए हैं। शिक्षा के विस्तार के साथसाथ बहुएं अब नौकरियां करने लगी हैं और वे परिवार में पति के बराबर आर्थिक योगदान दे रही हैं। ऐसी स्थिति में कुछ मनमुटाव होते हुए भी सासें अपनी बहुओं से सामंजस्य बिठा कर चलने में ही अपनी और परिवार की भलाई समझती हैं। बहू भी सास को घर की जिम्मेदारी देने में हिचकती नहीं है क्योंकि वह बेफिक्र हो कर घर से बाहर रह पाती है। -माया राठी
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