प्रेम विवाह निबाह आसान या मुश्किल
06-Jul-2016 08:10 AM 1234871
आधुनिकता के दौर में प्रगति के पथ पर दौड़ रहा भारत पूरी तरह पश्चिम सभ्यता के रंग में रंगता जा रहा है। लेकिन आज भी हमारे समाज में दकियानूसी इस कदर समाई हुई है कि प्रेम विवाह करने वाले या एकाकी जीवन जीने वालों को संदेह की नजर से देखा जाता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि ऐसे लोग मानसिक रूप से बीमार होते जा रहे हैं। इससे इनका बंधन कमजोर होता जा रहा है। इंदौर के शिवम अपार्टमैंट में रहने वाली 32 वर्षीया आकांक्षा के दिलोदिमाग में एक सवाल रह-रह कर बेचैन किए जा रहा था कि आखिर उपेंद्र से शादी कर उसे क्या मिला? तन्हाई, रुसवाइयां और अकेलापन? क्या इसी दिन के लिए मैं सईदा से आकांक्षा बनी थी? अपना वजूद, अपनी पहचान सब कुछ तो मैं ने उपेंद्र के प्यार पर न्योछावर कर दिया था और वह है कि अब फोन पर बात तक करना गंवारा नहीं कर रहा। क्या मैं ने उपेंद्र से प्रेम विवाह कर गलती की थी? उस के लिए धर्म तो धर्म, परिवार, नाते-रिश्तेदार सब छोड़ दिए और वह बेरुखी दिखाता सैकड़ों किलोमीटर दूर बालाघाट में अपनी बीवी के साथ बैठा सुकून भरी जिंदगी जी रहा है। क्या मैं उसके लिए महज जिस्म भर थी? और वह खुदकुशी कर लेती है। वह यह भी नहीं सोचती है कि उसके आठ साल के बच्चे का क्या होगा। दरअसल आज की युवा पीढ़ी भावनाओं में बहकर फैसला ले रहे है। विवाह से पहले जब वे प्रेमी जोड़ा होते हैं तो उनमें एक-दूसरे से मिलने का उतावलापन रहता है। लेकिन विवाह होते ही उन्हें समाज के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां आने के बाद वह उतावलापन खत्म हो जाता है जो विवाह के पहले था। ऐसे में एक-दूसरे के प्रति हीन भावना उत्पन्न होती है। स्त्रियां तो जैसे-तैसे मन मारकर जीवन यापन करने को मजबूर होती रहती है क्योंकि एक बार घर छोडऩे के बाद उनकी वापसी नामुमकिन मानी जाती है। लेकिन पुरुष जब पत्नी के रोज-रोज के उलाहनों से तंग आ जाता है तो वह अपने प्यार को अधर में छोड़कर गायब हो जाता है। अगर उन्हें यह समझ रहती कि वे दोनों एक सुखी परिवार की गाड़ी के दो पहिए हैं तो वे कभी भी अलग नहीं होते। देखा जाए तो आकांक्षा और उपेंद्र के बीच कोई खास समस्या नहीं थी। परंपरागत ढंग से और रीतिरिवाजों से शादी करने वाली महिलाओं को भी पति से वक्त न देने की शिकायत रहती है। पर वे कोई गलत कदम नहीं उठाती हैं। हालात के प्रति व्यावहारिक नजरिया रखते हुए समस्या का हल ढूंढ़ लेती हैं और जब बच्चे हो जाते हैं तो उन की परवरिश और कैरियर बनाने में व्यस्त हो जाती हैं या फिर खुद को व्यस्त रखने के लिए दूसरे तरीके खोज लेती हैं। मसलन, पार्ट टाइम जॉब या अपने शौक पूरे करना आदि। और जब वे ऐसा नहीं करतीं या कर पातीं तो खासी परेशानियां पति और बच्चों के लिए खड़ी करने लगती हैं। इसे स्त्रियोचित जिद और नादानी ही कहा जा सकता है। पति की नौकरी या व्यवसाय और उस की व्यस्तताओं व परेशानियों से वास्ता रखना तो दूर की बात है उलटे जब पत्नियां इस पर कलह करने लगती हैं तो बात बिगडऩा तय होता है। प्यार और अव्यावहारिकता इस तरह एक ऐसी कहानी खत्म हुई जिसमें मां की आत्महत्या के अपराध की सजा बेटा अब जिंदगीभर भुगतेगा। कहने या सोचने की कोई वजह नहीं कि 2 जुलाई, 2014 की रात का खौफनाक दिल दहला देने वाला दृश्य देखने के बाद वेदांत सामान्य जीवन जी पाएगा। कम पढ़ी लिखी आकांक्षा जैसी युवतियां दरअसल दूसरी जाति या धर्म में शादी तो कर लेती हैं पर उस के माहौल और रंग ढंग में खुद को ढाल नहीं पातीं तो सारा दोष दूसरे तरीकों से पति के सिर मढऩे की और साबित करने की गलती गुनाह की शक्ल में कर बैठती हैं। परिवार और समाज के स्वीकारने, न स्वीकारने की परवा इन दोनों ने भी नहीं की थी पर आकांक्षा हकीकत का सामना ज्यादा वक्त तक नहीं कर पाई। जिंदगी के प्रति उस का नजरिया नितांत अव्यावहारिक और अतार्किक था जो उस की मौत की वजह भी बना पर इससे किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ। उपेंद्र जिंदगीभर खुद को कोसता रहेगा और वेदांत पर क्या गुजरेगी इसकी कल्पना भर की जा सकती है। आजकल हिम्मत और बगावत कर प्रेम विवाह करना पहले के मुकाबले आसान हो गया है पर निभाना कठिन होता जा रहा है जिस की वजह पुरुष कम और महिलाएं ज्यादा शर्तें थोपती हैं। -माया राठी
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