18-Jul-2016 08:35 AM
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केंद्र और महाराष्ट्र में सरकार में सहयोगी बीजेपी और शिवसेना की यह तूतू-मैंमैं, दोनों पार्टियों के लिए फजीहत का कारण बन रही है और तमाशे का विपक्षी दल मजा ले रहे हैं। गठबंधन के धर्म को इन दोनों में से कोई भी दल निभाता नजर नहीं आ रहा। दोनों ही सरकार में दूसरे नंबर की भूमिका में मौजूद शिवसेना इस मामले में ज्यादा हेकड़ी दिखा रही है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में शिवसेना कोटे से अनंत गीते मंत्री हैं जबकि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार में शिवसेना के करीब एक दर्जन मंत्री हैं।
लगभग रोज की बात बन चुकी यह तकरार अब छीछालेदार स्तर पर उतर आई है और दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेता भी इसकी जद में हैं। महाराष्ट्र बीजेपी के मुखपत्र मनोगत में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को शोले के असरानी के तौर पर दिखाया गया तो शिवसेना कहां पीछे रहने वाली थी। उसने बीजेपी चीफ अमित शाह के गब्बर वाले पोस्टर जारी कर दिये। इस सबके बावजूद दोनों पार्टियों में से कोई भी गठबंधन के बारे में सख्त फैसला नहीं ले पा रही। न तो बीजेपी साहस दिखाते हुए केंद्र और महाराष्ट्र में शिवसेना को सरकार से हटा पा रही है और न ही शिवसेना आत्मसम्मान की खातिर खुद सरकार से हटने का फैसला कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को पता है कि शिवसेना के सरकार के हटने या हटाने पर महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार अल्पमत में आ जाएगी, इसलिए वह आर-पार का फैसला लेने से डर रही है।
शिवसेना और बीजेपी के बीच की इस तनातनी की नींव वैसे तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के समय ही पड़ गई थी जब दोनों पार्टियों के बीच प्रत्याशियों की संख्या को लेकर एकराय नहीं बन पाई थी। नतीजतन दोनों दलों ने 1989 के बाद पहली बार अलग-अलग चुनाव लड़ा। बेशक विधानसभा चुनाव के बाद सियासी विवशता के चलते दोनों को सरकार बनाने के लिए फिर खुद को एक दिखाना पड़ा लेकिन यह यह एका दिल के बजाय सत्ता के लिए ही अधिक साबित हुआ।
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बने कुछ ही दिन हुए थे कि शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिये हमले शुरू हो गए। कभी मोदी के अच्छे दिन के नारे का मखौल उड़ाया तो कभी राम मंदिर और महंगाई को लेकर निशाना साधा। पांच राज्यों में हुए चुनाव के दौरान असम में सत्तासीन होने को बड़ी उपलब्धि मानते हुए जब बीजेपी अपनी पीठ ठोक रही थी तो शिवसेना के संपादकीय ने उसके जश्न को बेमजा कर दिया। सामना में कहा गया कि चुनाव परिणाम में बीजपी के लिए पीठ ठोकने जैसा कुछ भी नहीं है और मोदी मैजिक काम नहीं आया। केंद्र सरकार के दो साल पूरे होने पर बधाई देते हुए भी उद्धव ठाकरे तंज कसने से नहीं चूके। उन्होंने नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा को लेकर सवाल उठाया प्रधानमंत्री का निवास है कहां? देश में या विदेश में?
हद तो तब हो गई शिवसेना सांसद संजय राउत ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को निजाम सरकार की बाप बताया। बीजेपी की ओर से भी तल्ख प्रतिक्रिया आई और मनोगतÓ में पूछा गया, आप तलाक कब ले रहे हैं श्रीमान राउत। जाहिर है, रिश्तों की इस बढ़ती खाई का महाराष्ट्र में प्रशासनिक काम पर प्रतिकूल असर पड़ा है और फडणवीस सरकार की छवि खराब हो रही है। हालात यहां तक निर्मित हो गए हैं कि इन दोनों पार्टियों के बीच मची रार का फायदा अन्य पार्टियां लेने में जुट गई हैं।
तकरार के पीछे शिवसेना का यह डर तो नहीं..
सियासी जानकार, इस तल्खी को बृहन्नमुंबई महानगर पालिका के चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं, लेकिन इससे पूरी तरह सहमत होना मुश्किल है। दरअसल, टकराहट की इस रणनीति के पीछे शिवसेना की सोच खुद को बीजेपी से कही अधिक हिंदुत्व एजेंडे पर चलने वाली पार्टी के रूप में पेश करने की है।
बड़े भाई से छोटे भाई की भूमिका में आई शिवसेना
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अब तक बड़े भाई की तरह रही शिवसेना की जैसे ही इस बार छोटे भाई की भूमिका में आई उसे हिंदुत्व की बैसाखी की जरूरत शिद्दत से महसूस होने लगी। 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी सीटों की संख्या 120 के पार पहुंचा ली और शिवसेना 65 के आसपास सीटों तक ही सिमटकर रह गई। मजबूरी में उसने सत्ता के लिए बीजेपी के साथ हाथ फिर मिला लिया लेकिन लोकप्रियता का गिरता ग्राफशिवसेना प्रमुख का डरा रहा है।
-मुंबई से बिन्दु माथुर