नौकरशाही में रार
18-Jul-2016 08:22 AM 1234983
मप्र में इन दिनों पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य राधेश्याम जुलानिया और सचिव रमेश थेटे के बीच चल रहे शीतयुद्ध के कारण सरकार की फजीहत हो रही है। आलम यह है कि दोनों अफसर सरकार की नाक का बाल बन गए हैं। नौकरशाही का यह विवाद जातीय संघर्ष का रूप लेने लगा है। यही नहीं अब इन दिनों अफसरों के पक्ष विपक्ष में अधिकारी-कर्मचारी भी लामबंद होने लगे हैं। इससे प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल निर्मित हो रहा है। दरअसल मप्र कैडर के आईएएस अधिकारी  राधेश्याम जुलानिया और रमेश थेटे का विवादों से पुराना नाता है। ये दोनों अधिकारी हमेशा अपने बवाल के कारण चर्चा में रहते हैं। जुलानिया जहां अपने अक्खड़पन, नाफरमानी और मंत्रियों के साथ मनमानी के लिए जाने जाते हैं वहीं थेटे अपनी धमकियों के कारण चर्चा में रहते हैं। यानी दोनों का चरित्र और कार्यप्रणाली आग और मिट्टी तेल की तरह है। यह शासन और प्रशासन दोनों को मालूम है। फिर भी न जाने क्यों दोनों को एक ही विभाग में पदस्थ कर दिया गया है। ऐसे में विवाद  तो होना निश्चित ही था। सो जुलानिया ने थेटे से उनके अधिकार छीन लिए हैं। थेटे ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे प्रताडि़त करने के लिए महज शौचालय बनवाने और साफ  कराने का काम देकर स्वीपर बनाकर रख दिया है। थेटे का कहना है कि दलित होने के कारण उनसे अछूत की तरह व्यवहार किया जा रहा है। जातिवादी अधिकारी जुलानिया ने अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार-निवारण अधिनियम 1989 का उल्लंघन किया है इसलिए जुलानिया के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर गिरफ्तार करके जेल भेजा जाएं। कार्रवाई नहीं होती है तो अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन करूंगा। थेटे का कहना है कि जब जुलानिया से बात की तो उन्होंने कहा कि मंत्री गोपाल भार्गव उन्हें अधिकार नहीं देना चाहते है। इस पर थेटे ने भार्गव से पूछा तो उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि जुलानिया ने जो प्रस्ताव दिया, उसे ही मंजूरी दी है। दरअसल राधेश्याम जुलानिया की प्रवृत्ति रही है कि वे विभाग में किसी को भी आगे नहीं बढऩे देना चाहते हैं। वे जिस विभाग में रहे हैं वहां तानाशाह की तरह काम करते हैं। उनकी इस प्रवृत्ति के कारण उनकी कई बार मंत्रियों से ठन चुकी है। ऐसे में पहले से ही बड़बोले और विवादित थेटे को वे कैसे बर्दाश्त कर पाते। सो उन्होंने थेटे का कद कम करके उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की है। थेटे भी कहां कम हैं। उन्होंने भी अपने चिर-परिचित अंदाज में रोहित वेमूला की तरह आत्महत्या करने की धमकी दे डाली। ज्ञातव्य है कि थेटे पूर्व में भी आत्महत्या की धमकियां देते आए हैं। यही नहीं थेटे ने तो आईएएस गेस्ट हाउस  के बाहर सड़क किनारे पेड़ के नीचे बैठ कर जुलानिया को भ्रष्ट अफसर बताते हुए उन पर जातिवादी मानसिकता से काम करने का भी आरोप लगाया। थेटे ने कहा कि सरकार दलित का भला नहीं चाहती है। ऐसे अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को पसंद किया जाता है जो पैरों के पास बैठे रहते हैं। मैं किसी को छेड़ता नहीं हूं। सम्मान देता हूं और ऊंची गर्दन रखता हूं, क्योंकि कोई गलत काम नहीं करता। उन्होंने अपर मुख्य सचिव जुलानिया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने 30 हजार करोड़ रुपए का बजट हैंडल किया है। सिंचाई का रकबा बढ़ाने की वाहवाही जब वे लूटते हैं तो बांध टूटने की जिम्मेदारी किसकी है? इधर अजाक्स की उपाध्यक्ष और निलंबित आईएएस शशि कर्णावत ने थेटे के समर्थन में अजाक्स अध्यक्ष आईएएस अफसर जेएन कंसोटिया को पत्र लिखकर पद छोडऩे की मांग की है उन्होंने कहा कि थेटे के प्रकरण में अजाक्स ने बात नहीं की है मेरे मामले में भी शुरुआती दौर में साथ देने के बाद छोड़ दिया आपको अजाक्स के प्रांताध्यक्ष पद से इस्तीफा देना चाहिए वहीं, कंसोटिया ने कहा कि उन्हें कर्णावत का पत्र नहीं मिला है। इस विवाद में तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ भी कूद गया है संघ के प्रांताध्यक्ष अरुण द्विवेदी ने आरोप लगाया कि जुलानिया अधिकारी-कर्मचारियों को प्रताडि़त कर रहे हैं उन्होंने जल संसाधन विभाग में पदोन्नति के रास्ते रोककर रखे हैं यदि जुलानिया को पद से नहीं हटाया जाता है तो संगठन के पांच लाख कर्मचारी 12 अगस्त से हड़ताल करेंगे पंचायत सेवा अधिकारी कर्मचारी महासंघ के प्रांताध्यक्ष आरपी शुक्ला ने कहा कि जुलानिया को ग्रामीण विकास विभाग से हटाकर अन्य किसी विभाग में पदस्थ किया जाए अगर ऐसा नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। नौकरशाही में उठे इस विवाद के कारण सरकार की छीछालेदर हो रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि थेटे की यह करतूत कहीं सरकार पर दबाव बनाने के लिए तो नहीं है क्योंकि उनके ऊपर दो दर्जन से अधिक मामलों के अभियोजन की स्वीकृति विधि विभाग के पास पड़ी हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अभियोजन स्वीकृति मिलने के डर से थेटे ऐसा कर रहे हैं। हालांकि सरकार अभी चुप बैठी है, लेकिन बात आगे बढ़ेगी तो सरकार अपना दबा हुआ गुस्सा निकाल सकती है। सूत्रों की माने तो एक मंत्री के करीबी रिश्तेदार और हाल ही में प्रमुख सचिव बने एक अधिकारी उज्जैन मामले में थेटे को घेरने में लगे हुए हैं। उधर जुलानिया भी इस विवाद के बढऩे के बाद अवकाश पर कनाडा चले गए हैं। -भोपाल से रजनीकांत
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