18-Jul-2016 07:32 AM
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टॉपर्स घोटाला पर रोज नए-नए राज बेपर्दा हो रहे हैं। ये तथ्य मामले को कहां और किस दिशा में ले जाएंगे, कहना कठिन है। पुलिस की जांच बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. लालकेश्वर प्रसाद सिंह, वैशाली जिला के वीआर कॉलेज के प्राचार्य (कर्ता-धर्ता) अमित कुमार उर्फ बच्चा राय और जनता दल (यू) की नेता व पूर्व विधायक उषा सिन्हा तक आकर सिमट गई है। उषा सिन्हा डॉ. लालकेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी और मगध विश्वविद्यालय के गंगादेवी महिला कॉलेज की प्राचार्य हैं। लालकेश्वर और उनकी पत्नी ने इंटर परीक्षा को कामधेनु समझ कर जमकर दुहा। उषा सिन्हा नेे अपने कॉलेज परिसर और वहां के कर्मचारियों का भी इस मामले में भरपूर इस्तेमाल किया।
टॉपर्स घोटाला बिहार की इंटर शिक्षा की पुरानी कोढ़ की ताजा अभिव्यक्ति है। इसका मवाद अब राजधानी में राजपथ पर फैलने लगा है। सूबे में इंटर शिक्षा के लिए 1980 में इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद की स्थापना की गई थी। यह संस्था इंटर कालेजों को मान्यता देने, पाठ्यक्रम तय करने के अलावा परीक्षा आयोजित करती रही। संस्था को मजबूत बनाने की जगह राजनेताओं-नौकरशाहों की जोड़ी ने इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया। बदनामी के बाद इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद की जिम्मेवारी भी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को सौंप दी गई। राजनीति बदली और सूबे में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। इस सरकार ने बिहार की वित्त-रहित शिक्षा नीति, जिसके तहत नए इंटर और डिग्री कॉलेजों को मान्यता और सम्बद्धता दी जाती रही, में बदलाव किया। निजी इंटर व सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों को इंटर की परीक्षा के परिणामों के आधार पर अनुदान देने का फैसला लिया गया। इसके पहले इन कॉलेजों को सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती थी। अनुदान मिलने के साथ इंटर शिक्षा-परीक्षा में शुरू से जारी माफियागिरी और मजबूत हुई। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अधिकारियों व राजनेताओं ने इसे खूब खाद-पानी दिया। पिछले दस वर्षों में शायद ही कोई ऐसा साल रहा होगा, जब इंटर परीक्षा-फल में धांधली की खबर सुर्खियां न बनी हों। पिछले ग्यारह वर्षों में - अर्थात् 2005 के बाद से- औपचारिक तौर पर पांच बार मेधा सूची बदली गई है। इंटर परीक्षा में टॉप पचहत्तर प्रतिशत से अधिक छात्र बिहार के ग्रामीण इलाकों के इन्हीं निजी व साधन-विहीन इंटर कॉलेजों के रहे हैं। टॉप छात्रों में अधिकतर की प्रतिभाÓ रूबी राय और सौरभ श्रेष्ठ से बेहतर रही है, यह कहने में किसी को भी संकोच हो सकता है। मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, वैशाली, गोपालगंज, समस्तीपुर, बेगूसराय, भोजपुर, मुंगेर, कैमूर, नवादा आदि दर्जनों जिलों के ग्रामीण इलाकों के निजी इंटर कॉलेज और उनके संचालक इंटर के परीक्षा-परिणाम हर साल अपने मन माफिक जारी कराते रहे हैं। बिहार की राजधानी स्थित साइंस कॉलेज सहित तमाम सुविधा-सम्पन्न नामचीन कॉलेजों के छात्र इन बच्चा राय जैसों की जोड़-तोड़ के कारण दोयम श्रेणी के साबित होते रहे हैं। टॉप सौ छात्रों में नामचीन अंगीभूत कॉलेजों के छात्रों को शायद ही जगह मिलती रही है।
हालांकि, घोटाला केवल इसी साल नहीं हुआ है और इसके नायक बच्चा राय और लालकेश्वर ही नहीं हैं। इंटर के परीक्षा परिणाम को मैनेज कराने में माफिया नियंत्रित निजी इंटर-डिग्री कॉलेजों के अलावा कोचिंग संस्थानों की भी बड़ी भूमिका रहती है। राजधानी सहित सूबे के बड़े व प्रमंडलीय शहरों के कुछ कोचिंग संस्थानों के संचालक अपने इलाके के बच्चा राय से सीधे सम्पर्क में रहते हैं। ये कोचिंग संस्थान और इंटर कॉलेज छात्र से मनमाफिक परीक्षा परिणाम के लिए डील करते हैं। प्रथम श्रेणी के लिए प्रति छात्र साठ से सत्तर हजार रुपए तो द्वितीय श्रेणी के लिए तीस से चालीस हजार रुपए की रकम तय की जाती है। टॉप सौ में स्थान सुरक्षित कराने की दर प्रति छात्र लाख रुपए से ऊपर होती है। ऐसे परीक्षा-फल से इंटर कॉलेजों को ही लाभ नहीं होता, बल्कि कोचिंग संस्थानों में भी छात्रों की आमद बढ़ जाती है। इस जुगाड़ तकनीक के कारण बिहार के कुछ कोचिंग की कई शाखाएं संचालित होती हैं।
मेधा की भूमि हुई कलंकित
बिहार की ख्याति ज्ञान और मेधा की भूमि के तौर पर रही है। लेकिन हाल के दशकों में यह शिक्षा माफिया का क्रीड़ा-केन्द्र बन गया है। सूबे के वित्त रहित इंटर-डिग्री कॉलेजों के संचालकों की बड़ी जमात सूबे की राजनीति में सक्रिय है और चुनावों में वे दलों के अधिकृत उम्मीदवार होते हैं, जीत कर सदनों में जाते हैं। सूबे की राजनीति में शिक्षा माफिया की मजबूत पकड़ और सक्रियता का ही परिणाम है कि टॉपर्स घोटाला को इसी साल के परीक्षा परिणाम तक सीमित रखने की पूरी रणनीति अपनाई गई है। सच तो ये है कि लाखों तरुणों के भविष्य से जुड़े इस सवाल को राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप के दायरे से बाहर जाने ही नहीं
देना चाहते।
-कुमार विनोद