01-Aug-2016 08:23 AM
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जाति जनगणना और आरक्षण का जिन्न फिर बोतल से बाहर निकलने को तैयार है। बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के दोनों बड़े दल-जनता दल(यू) व राष्ट्रीय जनता दल- के सुप्रीमो नीतीश कुमार और लालू प्रसाद नए सिरे से इसे बोतल से बाहर निकालने की तैयारी में हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सामाजिक सांख्यिकी विषय पर पटना में संपन्न एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी करने की पुरजोर मांग की, तो राजद सुप्रीमो ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरक्षण के मुद्दों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने प्रधानमंत्री को चेताया कि आरक्षण पर किसी भी हमले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बिहार के सुविख्यात शोध संस्थान आद्री की ओर से आयोजित संगोष्ठी में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी समेत देश-विदेश के नामचीन अर्थशास्त्री मौजूद थे। संगोष्ठी में मौजूद सभी वक्ताओं ने भारत के सामाजिक सांख्यिकी और उसके संग्रहण के मौजूदा तौर-तरीकों पर असंतोष जताया। इन सभी ने मौजूदा हालात में सुधार लाने पर जोर दिया ताकि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थानों व नीति-निर्धारकों का इन आंकड़ों में भरोसा पैदा हो सके। इसके बरअक्स, नीतीश कुमार ने नीति निर्धारण में उपयुक्त आंकड़ों की जरूरत को तो रेखांकित किया ही, साथ ही इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी करने की मांग कर अपना राजनीतिक एजेंडा भी पेश कर दिया।
देश में यह जनगणना तीन-चार वर्ष पहले ही हो चुकी है, लेकिन अब तक इसकी रिपोर्ट का प्रकाशन नहीं किया गया है। उनका कहना था कि 1931 की जाति जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर ही अब तक जातियों को लेकर कोई बात की जाती है। इन 85 वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। अनुसूचित जाति- जनजाति की जनगणना तो होती है, लेकिन अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की कोई जनगणना नहीं होती है। भारत सरकार ने पिछले वर्षों में जाति जनगणना करवाई थी, पर उसकी रिपोर्ट अब तक जारी नहीं की गई है। जातियों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं होने का असर योजना बनाने पर तो पड़ता ही है, साथ ही जातियों को हिस्सेदारी देने में भी परेशानी होती है। सूबे की सत्ता के छोटे भाई ने यह पत्ता खेला है, सो, बड़े भाई (लालू प्रसाद) को भी कुछ करना ही था। उसी दिन वे एक्शन में आ गए। उन्होंने विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की नियुक्ति में आरक्षण के प्रावधान को समाप्त करने के यूजीसी के निर्देश का जोरदार विरोध किया। राजद सुप्रीमो ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम अपने पत्र में चेतावनी दी है कि आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। यह संवैधानिक अधिकार है और इसे कोई समाप्त नहीं कर सकता है।
भाजपा के कमंडल को चुनौती देने की तैयारी
भाजपा के कमंडल को बेअसर करने के लिए जिस आक्रामक राजनीति की जरूरत है, इसका गुर बड़े भाई लालू प्रसाद के पास है। बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सुप्रीमो के इस गुर का स्वाद नीतीश कुमार चख चुके हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजद सुप्रीमो किस तरह की भूमिका निभाएंगे, यह अब तक साफ नहीं है। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल कर चुनावी अखाड़े में उनके उतरने की गुंजाइश अब तक दिखती नहीं है। राजद वहां चुनाव लड़ेगा, यह भी साफ नहीं है। राजद के कई वरिष्ठ नेता उत्तर प्रदेश के मैदान में जाने के पक्षधर नहीं हैं। हाल में संपन्न चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने भाग नहीं लिया था, जबकि पश्चिम बंगाल व असम में वह अपना प्रत्याशी दे सकता था। फिर भी, लालू प्रसाद जब तक कुछ बोलते नहीं हैं, इस पर कुछ भी कहना कठिन है। पुराने अनुभवों के आधार पर यह कहना कठिन है कि लालू प्रसाद किसी भी स्तर पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने की राजनीतिक हैसियत रखते हैं। लेकिन वह अपनी और अपने परिवार की भावी राजनीति के लिए आरक्षण जैसे सवाल के साथ गंभीर और आक्रामक बने रहना चाहते हैं, यह उनकी जरूरत भी है। इस मसले पर वे केंद्र सरकार से दो-दो हाथ करते दिखना चाहते हैं। यह सही है कि नीतीश कुमार उस हद तक आक्रामक और उत्तेजक राजनीति नहीं कर सकते, लेकिन उत्तर प्रदेश में अगर कुछ कर दिखाना है और वहां के मतदाताओं के बीच संघ मुक्त भारत को चमकाना है, तो उन्हें किसी उत्तेजक मसले की तलाश है। फिलहाल जाति जनगणना की रिपोर्ट का प्रकाशन ऐसा ही मसला बन सकता है।
-कुमार विनोद