मौत की बारिश
18-Jul-2016 07:29 AM 1234838
मप्र में शासकीय कुप्रबंध के कारण उत्तरप्रदेश और बिहार की तरह यहां भी अब बाढ़ कहर बनकर टूट रही है। प्रदेश पर मानसून क्या मेहरबान हुआ कि यहां के नदी-नाले उफन पड़े और बांध टूट पड़े। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश जलमग्न हो गया और इसमें सरकारी आंकड़े के अनुसार 35 लोग मौत के गाल में समा गए। आखिर प्रदेश में ऐसी स्थिति कैसे निर्मित हो गई? यह सवाल हर तरफ उठ रहा है। प्रदेश में सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है। लेकिन इन दावों की पोल यहां की व्यवस्था की खामियों ने खोल दी है। करीब 43-44 साल बाद प्रदेश में जलप्रलय क्या हुआ करोड़ों की लागत से बने बांध बारिश में बह गए।  सड़कें धस गई। पहली बारिश में ही करीब 500 से अधिक गांव डूब गए हैं। यही नहीं करीब सवा सौ से अधिक पशुधन की हानि हुई। इसमें प्रदेशभर में 3,13,777 इतने लगे प्रभावित हुए। यही नहीं सबसे अधिक 80 हजार लोग तो राजधानी भोपाल में प्रभावित हुए। जबकि 43,770 मकान क्षतिग्रस्त हो गए। यह हालात दर्शाते हैं कि प्रदेश में विकास योजनाएं केवल कागजों पर ही चल रही हैं। भोपाल में पिछली बाढ़ के बाद दो योजनाएं बनीं। एक थी 2200 करोड़ रुपए की मल-जल निकास की व्यवस्था और दूसरी थी 1200 करोड़ रुपए की जलभराव से निकास की योजना। यानी 3400 करोड़ रुपए की नालियां बनाने का कार्यक्रम तय किया गया। अब बिंदु यह है कि क्या हम यथार्थ को स्वीकार करना चाहते हैं? आकार में भोपाल एक मझौले दर्जे का शहर है। यह नदियों से नहीं घिरा हुआ है, जिससे कि यहां बाढ़ आए, पर बाढ़ आती है। बाढ़ इसलिए आती है क्योंकि पहाड़ी भौगोलिक तंत्र में व्यवस्थित रूप से बने इस शहर में 16 महत्वपूर्ण तालाब-झीलें बनाई गई थीं, उस श्रंखलाबद्ध तानेबाने को तोड़ दिया गया है। इन झीलों का निर्माण इस तरह से हुआ था कि जब पहाड़ी क्षेत्र के ऊपरी हिस्से में पानी भर जाए या झील भर जाए, तो अतिरिक्त पानी अपने आप जल-बहाव मार्गों से होता हुआ, नीचे बनी झीलों में चला जाता था। अतिरिक्त बारिश बस्ती में ऐसी तबाही नहीं लाती थी क्योंकि समाज के इंजीनियरों को यह ज्ञान था कि पानी को बहने के लिए स्थान चाहिए; पानी को रोकोगे तो वह बस्ती को ही बहा ले जाएगा। लेकिन ताबड़तोड़ विकास के कारण हो रहे निर्माण कार्यों के कारण जल बहाव के मार्गों को बाधित किया जा रहा है। जब राजधानी भोपाल में ही इस तरह के हालात हैं तो प्रदेश के अन्य जिलों में क्या स्थिति होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। जरा सोचिये कि वर्ष 2011 में भोपाल में एक व्यक्ति 401 ग्राम कचरे का उत्पादन करता था। जैसे-जैसे विकास होता गया, वैसे-वैसे भोपाल का समाज कचरे का उत्पादन भी बढ़ाता गया। वर्ष 2016 की स्थिति में भोपाल का एक नागरिक हर रोज 466 ग्राम कचरे का उत्पादन कर रहा है। इस मान से भोपाल शहर एक दिन में 919 टन नगरीय ठोस कचरे का उत्पादन करता है। इसमें से लगभग 300 टन कचरे का कोई प्रबंधन नहीं होता है। थोड़ा गणित का इस्तेमाल करते हैं तो चित्र और साफ हो जाता है। अकेले भोपाल में एक साल में 3.35 लाख टन (33.50 करोड़ किलो) कचरा पैदा होता है, जिसमें से 1.1 लाख टन का कोई उपचार-प्रबंधन नहीं होता है। कुछ ऐसी ही स्थिति प्रदेश के अन्य शहरों की है। यह कचरा नदी-नालों को संकुचित करते जा रहा है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि थोड़ी सी बारिश में ही बाढ़ जैसे हालात निर्मित हो रहे हैं। इस बार मानसून की पहली बारिश में ही प्रदेश के दर्जनभर जिलों में आई बाढ़ में संदेश दे दिया है कि अगर सरकार सचेत नहीं हुई तो आगामी दिनों में परिणाम भयानक हो सकते हैं। पन्ना में ढहे करोड़ों के बांध बारिश के पानी को रोकने के लिए जो बांध बनाए गए थे वो पहली ही बारिश में बह गए। इनमें से एक सेरोह बांध इटवा गांव में 27 करोड़ की लागत से बनवाया गया था। दूसरा बांध बिलपुरा गांव में 11 करोड़ की लागत से बनाया गया था। दोनों बांध जल संसाधन विभाग ने बनवाए थे। कहा जा रहा है कि घटिया निर्माण की वजह से ये बांध पहली ही बारिश में बह गए। इसको लेकर मंत्री कुसुम मेहदेले ने भी सवाल खड़े किए हैं। यही नहीं प्रदेश में अपनी उम्र पूरी कर चुके दो दर्जन बड़े बांध अच्छे रख-रखाव के अभाव में खतरा बनते जा रहे हैं। इन बांधों के रख-रखाव पर सरकार मानसून के पहले करोड़ों की राशि खर्च करती है, लेकिन बांधों में पानी बढ़ते ही उनमें लगे दरवाजों सेे रिसाव शुरू हो जाता है। लगभग यही स्थिति राजधानी के आसपास कई इलाकों की भी है। जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में पेयजल सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए 168 बड़े और सैकड़ों छोटे बांध बनाए गए हैं। इनमें से कुछ की उम्र 100 साल से अधिक है। सरकार और शासन प्रशासन का ध्यान इन बांधों को डेड घोषित करने की ओर नहीं है। ऐसे में यदि झमाझम हो रही बारिश से ये बांध पूरी तरह से भर गए और इनमें किसी भी तरह की दरार या टूटने की स्थित उत्पन्न हो गई, तो तबाही लाने से कोई नहीं रोक सकता। -भोपाल से अजयधीर
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