06-Jul-2016 08:42 AM
1234773
बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मां-बाप को अपने बच्चों का दाखिला कोटा के कोचिंगों में करवाना पड़ता है। कोटा के कोचिंग को लेकर छात्रों और उनके मां-बाप की यही उम्मीद और मजबूरी इसे शिक्षा की सबसे बड़ी मंडी बनाती है। लेकिन इन सबके पीछे सबसे बड़ा सच ये है कि कोटा में हर साल आने वाले लाखों छात्रों में कुछ हजार छात्र ही होते हैं जो सक्सेस हो सकते हैं। एक रिकार्ड पर नजर डालें तो कोटा का सक्सेस रेट मात्र 2 प्रतिशत का ही है। मतलब अगर सौ बच्चे कोटा के कोचिंग में एडमिशन लेते हैं तो महज दो बच्चे ही परीक्षा पास कर पाते हैं।
इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना लिये देश के अलग-अलग हिस्सों से महज 15 से 18 साल की उम्र के बच्चे आपको आजकल रेलवे स्टेशनों पर मिल जाएंगे। इन बच्चों में से ज्यादातर छात्रों का कारवां राजस्थान के कोटा के लिए रुख करता दिखेगा। इनके साथ चल रहे बच्चों के मां-बाप के चैहरे पर तब एक अजीब सा शुकून दिखता है जब उनके बच्चों का दाखिला कोटा के किसी कोचिंग में हो जाता है। दरअसल कोटा में चल रहे कोचिंग इंस्टीट्यूट के प्रति भरोसा उन्हे यहां खींच लाता है। यहां के कोचिंग सेंटर में पढ़कर कई छात्र आईआईटी जैसे संस्थानों में दाखिला पाने में सफल होते हैं। हलांकि इसका एक दूसरा पक्ष ये भी है कि राज्यों में बेसिक एजुकेशन का स्तर इतना गिर चुका है कि राज्य के सरकारी स्कूलों से पास ऑउट छात्र अपने भविष्य को संवार नहीं पाते। मजबूरन बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मां-बाप को अपने बच्चों का दाखिला कोटा के कोचिंगों में करवाना पड़ता है। कोटा के कोचिंग को लेकर छात्रों और उनके मां बाप की यही उम्मीद और मजबूरी इसे शिक्षा की सबसे बड़ी मंडी बनाती है। लेकिन इन सबके पीछे सबसे बड़ा सच ये है कि कोटा में हर साल आने वाले लाखों छात्रों में कुछ हजार छात्र ही होते हैं जो सक्सेस हो सकते हैं।
एक रिकार्ड पर नजर डालें तो कोटा का सक्सेस रेट मात्र 2 प्रतिशत का ही है। मतलब अगर सौ बच्चे कोटा के कोचिंग में एडमिशन लेते हैं तो महज दो बच्चे ही परीक्षा पास कर पाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक कोटा के कोचिंग में एडमिशन लेने वाले 10 में 6 बच्चे बिहार या झारखंड के होते हैं। कोटा में करीब देढ़ लाख के आस पास बच्चे कोचिंग में पढ़ते हैं। ये संख्या शहर के प्रमुख और बड़े संस्थानों की है। अगर गलियों में चलने वाले छोटे कोचिंग सेंटर के बच्चों को भी जोड़ा जाए तो संख्या करीब दो लाख के पार पहुंच जाएगी। कोटा में पढऩे वाले सभी बच्चे इंजीनीयरिंग या मेडिकल की तैयारी कर रहे होते हैं। यहां के कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेने वाला हर छात्र मेडिकल अथवा इंजीनियरिंग की परीक्षा निकाल लेने की तैयारी करता है। इनमें कइयों को कामयाबी मिलती है और बहुत सारे छात्र कामयाब नहीं हो पाते। जानकार इसकी वजह बेसिक एजुकेशन की खामियां बताते हैं। सारे कोचिंग संस्थानों का पूरा फोकस पढ़ाई पर होता है। यहां बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का जबरदस्त दबाव होता है। यहां पढ़ाई के अलावा ऐसे किसी दूसरे क्रियाकलापों के लिए कोई जगह नहीं है, जिससे बच्चों पर से दबाव कुछ कम हो। ऐसे में छात्रों की मानसिक स्थिति पर गलत असर पड़ता है। फेल होने पर बच्चों में हीन भावना पैदा होती है और उसके परिणाम गंभीर हो रहे हैं।
भविष्य के डर से फांसी का फंदा
कोटा में पढऩे के लिए आने वाले बच्चों के ऊपर भविष्य को लेकर इतना दबाव होता है कि कई बार वो इसे झेल नहीं पाते हैं। कई बार अपने सपनों को टूटता हुआ देख बच्चे इस कदर टूट जाते हैं कि खुद को खत्म करने तक का फैसला ले लेते हैं। साल 2014 से 2015 के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो 11 बच्चों ने प्रेशर में सूसाईड किया। वहीं अगर 2015 से 2016 के आंकड़ो पर नजर डालेंगे तो करीब 16 बच्चों ने आत्महत्या को चुना है।
-इन्द्रकुमार