तो जाएंगी कई सरकारें
06-Jul-2016 08:34 AM 1234898
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दिल्ली सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को लौटा देने के बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी  के 21 विधायकों की सदस्यता खतरे में है। दिल्ली सरकार ने इन विधायकों को संसदीय सचिव का पद दे रखा था, जो लाभ के पद के दायरे में माना जाता है। हालांकि 21 विधायकों की सदस्यता रद्द होने के बाद भी केजरीवाल सरकार बहुमत में तो रहेगी लेकिन नैतिकता के आधार पर कई तरह के सवाल खड़े होंगे। सदस्यता रद्द होने की स्थिति में यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल इस लड़ाई को उपचुनावों के माध्यम से जनता की अदालत में लडऩा पसंद करेंगे या फिर अदालतों के जरिए? दिल्ली में तो केजरीवाल सरकार फिर भी बहुमत में रह जाएगी, लेकिन कई राज्यों में सरकार गिरने तक की नौबत आ जाएगी, जिसमें कई बीजेपी शासित राज्य भी शामिल हैं। संविधान का अनुच्छेद 102(1)(ए) और 191(1)(ए)  साफ कहता है कि संसद या फिर किसी विधान सभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है उसकी सदस्यता जा सकती है। यही नहीं संविधान के अनुच्छेद 104 के तहत उन पर जुर्माना और आपराधिक कार्रवाई हो सकती है जो संभव नहीं दिखता। यह लाभ का पद केंद्र और राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है। यही नहीं दिल्ली एमएलए (रिवूमल ऑफ डिसक्वालिफिकेशन) एक्ट 1997 के अनुसार भी संसदीय सचिव को भी इस लिस्ट से बाहर नहीं रखा गया है। मतलब साफ है कि इस एक्ट के आधार पर इस पद पर होना लाभ का पदÓ माना जाता है। दिल्ली के किसी भी कानून में संसदीय सचिव का उल्लेख नहीं है, इसीलिए विधानसभा के प्रावधानों में इनके वेतन, भत्ते सुविधाओं आदि के लिए कोई कानून नहीं है। क्या होगा अन्य राज्यों पर असर जहां राजधानी दिल्ली में ही संसदीय सचिव को लाभ का पद मानते हुए इसे अयोग्य ठहराने की बात की जा रही है, वहीं कई और राज्य भी हैं जहां हालात कुछ ऐसे ही हैं। इन परिस्थितियों में अगर दिल्ली में विधायकों को अयोग्य करार दिया जाता है तो अन्य राज्यों में भी यह मांग उठेगी। दिल्ली में तो केजरीवाल सरकार फिर भी बहुमत में रह जाएगी, लेकिन कई राज्यों में सरकार गिरने तक की नौबत आ जाएगी, जिसमें कई बीजेपी शासित राज्य भी शामिल हैं। बीजेपी शासित राज्य हरियाणा की अगर बात करें तो वहां 4 संसदीय सचिव का पद है। 90 विधानसभा सदस्यों वाली हरियाणा में इस समय बीजेपी के पास बीजेपी 47 विधायक है और बहुमत के लिए 45 विधायकों की जरूरत होगी। ऐसे में बीजेपी के अगर 4 विधायकों की योग्यता रद्द कर दी गई तो यकीनन सरकार अल्पमत में आ जाएगी। जहां तक पंजाब की बात करें तो 117 विधानसभा सीटों वाली इस प्रदेश में 24 संसदीय सचिव है। राज्य में इस समय बीजेपी-अकाली गठबंधन के पास 72 सीटें है और बहुमत के लिए 59 सीटें चाहिए। इस हालात में अगर 24 विधायकों की सदस्यता खत्म हुई तो सरकार के पास 48 विधायक बचेंगे और यहां भी सरकार अल्पमत में आ जाएगी। वहीं हिमाचल प्रदेश की बात करें तो 68 विधानसभा सीटों वाली हिमाचल में 9 संसदीय सचिव हैं। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस 36 विधायकों के साथ बहुमत में है लेकिन संसदीय सचिवों की योग्यता खत्म होते ही यहां भी सरकार अल्पमत में आ जाएगी। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए कोई कानून नहीं है। 224 विधानसभा सीटों वाली कर्नाटक में भी 10 संसदीय सचिवों (मामला हाईकोर्ट में लंबित है) को अयोग्य ठहराते ही 122 सीट जीतकर सत्ता में आई कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। कर्नाटक में 10 संसदीय सचिव हैं, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। हालांकि 119 सीटों वाली तेलंगाना में अगर 6 संसदीय सचिवों की सदस्यता खत्म भी कर दी जाए तो सरकार अल्पमत में तो नहीं आएगी लेकिन सरकार के लिए खतरा जरूर पैदा हो जाएगी। तेलंगाना में 6 संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर हाई कोर्ट ने स्टे लगा रखा है। अन्य राज्यों राजस्थान, गुजरात और मणिपुर की कहानी अलग है। यहां राज्यों में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए कानून जरूर है लेकिन संख्या निर्धारित नहीं है।  जहां तक सदस्यों की बात है तो 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में 5, 182 विधानसभा सीटों वाली गुजरात में 5 और 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में 5 संसदीय सचिव हैं। अगर उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों की बात करें तो 60 विधानसभा सीटों वाली मिजोरम में 7, 60 विधानसभा सीटों वाली अरुणाचल प्रदेश में 15, 60 विधानसभा सीटों वाली मेघालय में 18 और 60 विधानसभा सीटों वाली नागालैंड में 24 संसदीय सचिव है। अब तक इनकी नियुक्ति को कोर्ट में चुनौती नहीं दी गई है। तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में संसदीय सचिव नहीं हैं। लेकिन यूपी में राज्य आयोगों के चेयरपर्सन नियुक्त किए जाते हैं। 2009 में गोवा और जून 2015 में पश्चिम बंगाल में संसदीय सचिव रखने को अमान्य घोषित कर दिया गया है। क्यों पड़ी संसदीय सचिव की जरूरत मुख्यमंत्री संसदीय सचिव के पद को बेशक दिल्ली की जरूरत मानते हों लेकिन इसके राजनीतिक मायने काफी अलग है। इस सबके पीछे है यह कानून जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकार में सदन की संख्या के 15 फीसदी से अधिक सदस्य मंत्री नहीं बन सकते। सरकार बनाने पर मंत्रियों की बड़ी फौज पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वेंकटचलैया की रिपोर्ट के आधार पर 2003 में बने इस कानून के अनुसार केंद्र और राज्यों में सदन की संख्या के 15 फीसदी से अधिक सदस्य मंत्री नहीं बन सकते। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान के तहत 10 फीसदी यानी मुख्यमंत्री के अलावा 6 लोग ही मंत्री बन सकते हैं। कौन-कौन आए लाभ के पद के शिकंजे में ऐसा नहीं है कि लाभ का पद के दायरे में पहली बार बवाल मचा है। इससे पहले भी कई बार यह मुद्दा उठ चुका है। देश में लाभ के पद का पहला मामला 1915 में तब आया जब कलकत्ता हाईकोर्ट में नगर निगम के प्रत्याशी के चुनाव को चुनौती दी गई थी। यही नहीं 2001 में शिबू सोरेन को झारखंड में स्वायत्त परिषद के सदस्य होने के कारण राज्य सभा सांसद पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था और जया बच्चन को राज्यसभा सांसद के साथ उत्तरप्रदेश में लाभ का पद लेने के आरोप पर अयोग्य घोषित किया गया। यही नहीं अनिल अंबानी को भी राज्यसभा सदस्यता से त्याग-पत्र देना पड़ा था। 2004 में राष्ट्रीय सलाहकार समिति (एनएसी) के चेयरपर्सन बनने के बाद सोनिया गांधी को भी लाभ के पद की शिकायत होने पर 2006 में संसद से त्यागपत्र देकर दोबारा चुनाव लडऩा पड़ा। हालांकि उसके बाद कानून में बदलाव करके एनएसी के चेयरपर्सन सहित 55 पदों को लाभ के पद के दायरे से ही बाहर कर दिया गया। मई, 2012 में पश्चिम बंगाल में पूर्ण बहुमत से चुनकर आई तृणमूल कांग्रेस सरकार ने भी संसदीय सचिव बिल पास किया था। इसके बाद ममता बनर्जी सरकार ने करीब दो दर्जन विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया। इन सचिवों को मंत्री का दर्जा प्राप्त था। पिछले साल जून में कोलकाता हाईकोर्ट ने सरकार के बिल को अंसवैधानिक ठहरा दिया। 2015 में यूपी के दो विधायकों बजरंग बहादुर सिंह, उमाशंकर सिंह की सदस्यता रद्द कर दी गई। अब देखना यह है कि दिल्ली का विवाद क्या गुल खिलाता है। केजरीवाल के पास विकल्प? आम आदमी पार्टी के पास अपने विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए अब केवल कोर्ट का रास्ता ही बचा है। संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल विधायकों की सदस्यता खत्म करने में अभी वक्त लगेगा और ऐसे में पार्टी पूरी तैयारी के साथ अदालत का रुख कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि संसदीय सचिव ऑफिस का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो इस दायरे में आता है और सदस्यता खत्म करने के लिए यह काफी है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि केजरीवाल अदालत में यह भी कह कर बचाव कर सकते हैं कि सकते हैं कि संसदीय सचिव की नियुक्तियों को उप राज्यपाल ने कभी अनुमोदन दिया ही नहीं और ऐसे में बिना नियुक्ति के किसी कानून के उल्लंघन का सवाल ही नहीं उठता। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है। मप्र मेें कोई लाभ के पद पर नहीं देश में लाभ के पद को लेकर बवाल मचा है, लेकिन मप्र ऐसा राज्य है जहां कोई भी विधायक या मंत्री लाभ के पद पर नहीं है। यहां कोईसंसदीय सचिव भी नहीं हैं। पिछले दिनों प्रदेश में ऐसे दो मंत्रियों के नाम सामने आए थे जिनके बारे में कहा गया था कि उनके पास लाभ के पद हैं। स्कूल शिक्षा मंत्री पारस जैन लाभ के पद के दायरे में आने वाली संस्था स्काउट गाइड के मुख्य आयुक्त हैं वहीं स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री दीपक जोशी उपाध्यक्ष हैं। लेकिन ये लाभ के पद के दायरे में तब आते जब इनकी नियुक्ति की गई होती। ये दोनों मनोनीत किए गए हैं। इसलिए ये लाभ के पद के दायरे में नहीं आते।  उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 103 निगम-मंडल एवं आयोगों के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के पदों को लाभ की श्रेणी में रखा गया है। हालांकि प्रदेश सरकार द्वारा लाभ के पद की व्याख्या का मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि एक तरफ सरकार ने उन सभी पदों का नाम अपने संसोधन में लिखा है दूसरी तरफ यह भी लिखा है की कोई भी पद लाभ का पद नहीं माना जाएगा। नियमानुसार सांसद या विधायक ऐसे पद पर नहीं रह सकते जिसमें फायदा मिलता हो। उधर, छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ने राज्य में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर विरोध जताया है। पार्टी ने संसदीय सचिवों की विधानभाा सदस्यता समाप्त करने की मांग की है।  छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार ने राज्य में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है। दिल्ली में 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद छिड़ी बहस के बीच पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह और पूर्व मंत्री विधान मिश्रा समेत अन्य नेताओं ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा और सभी की विधानसभा सदस्यता समाप्त करने की मांग की। राज्यपाल बलरामजी दास टंडन को सौंपे ज्ञापन में जोगी की पार्टी के नेताओं ने कहा है कि राज्य में 11 संसदीय सचिव हैं जिन्हें विधायकों से ज्यादा वेतन और अन्य सुविधाएं प्राप्त हैं। स्पष्ट रूप से वे लाभा के पद पर हैं।  उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ के संसदीय सचिवों को विधायकों से ज्यादा वेतन दिया जा रहा है। उन्हें मंत्री जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है। मंत्रालय में उन्हें अलग कमरा दिया गया है। उनके वाहनों में लालबत्ती लगाई गई है। -विनोद कुमार
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^