अरबों खर्च घट गए जंगल
06-Jul-2016 07:59 AM 1234763
प्रदेश में जंगल का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार के वन विभाग द्वारा सात वर्षों में तीन सौ करोड़ रुपए फूंके जा चुके हैं, बावजूद इसके जंगल को क्षेत्रफल बढऩे की जगह घट गया है। यह खुलासा हाल ही में जारी हुई फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक अकेले बीते सालों में प्रदेश में वन आवरण 18 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कम हो गया है। यह तब हालात हैं जब राज्य सरकार के अलावा केंद्र सरकार भी प्रदेश में वनीकरण के लिए अरबों रुपए खर्च कर चुकी है। प्रदेश में  वन क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए केंद्र द्वारा बीते तीन सालों में जंगल महकमें की आधा दर्जन योजनाओं में दी गई करीब साढ़े चार अरब की राशि का बंदरबांट कर दिया गया है। जिसकी वजह से जंगल तो नहीं बढ़े बल्कि उनका क्षेत्रफल जरूर घट गया है। दरअसल केंद्र सरकार से बीते तीन साल में केवल मध्यप्रदेश की 6 योजनाओं के संचालन के लिए 4,52,67,67,000 रुपए आवंटित किए गए। जिसमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय वनीकीकरण कार्यक्रम के तहत 2012-13 में 9.5 करोड़, 2013-14 में 22.10 करोड़, 2014-15 में 21 करोड़, कापा के तहत 2012-13 6.50 करोड़, 2013-14 में 8.95 करोड़ तथा 2014-15 में 2 अरब 13 करोड़ आवंटित किया गया। लेकिन इन सबके बावजूद प्रदेश में वनों का क्षेत्रफल निरंतर घटता जा रहा है।  उधर राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश में वनआच्छादित क्षेत्र में वृद्धि के लिए सात सालों के दौरान वन विभाग ने अन्य विभागों के साथ मिलकर 9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 66 करोड़ पौधों का रोपण किया है। इस दावे की पोल एफएसआई की रिपोर्ट ने खोल दी है। इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि जितने पौधे लगाने का दावा किया गया है अगर उसमें से आधे पौधे भी बचा लिए गए होते तो वन क्षेत्र घटने की जगह स्वभाविक रूप से बढ़ गया होता। वन क्षेत्र के रकबा घटने वाले प्रदेश के तेरह जिलों में से सबसे खराब हालत बालाघाट जिले की है जहां 1900 हेक्टेयर क्षेत्र में वन कम हो गया है श्योपुर में सबसे कम 100 हेक्टेयर क्षेत्र में वन कम हुए हैं। एफएसआई की रिपोर्ट में वन क्षेत्रफल कम होने के जो कारण बताए गए हैं उनमें वन क्षेत्रों में खुलेआम होने वाला अवैध खनन, उद्योगों के लिए वनक्षेत्र के समीप जमीनों का आवंटन व बढ़ता अतिक्रमण है। लोकायुक्त जाएगा मामला योजनाओं की राशि में हुए बंदरबांट के मामले में हाल ही में नागरिक उपभोक्ता मार्गदशक मंच (युवा प्रकोष्ठ) ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र भेजकर पूरे मामले की जांच कराए जाने की मांग की है। संगठन के मनीष शर्मा, रानी जायसवाल, राममिलन शर्मा आदि ने मरात मामले की जांच लोकायुक्त से कराने का निर्णय लिया है। प्रदेश में बाघों की मौत और अवैध अतिक्रमण के बढ़ते मामलों ने राज्य सरकार की किरकिरी कर रखी है, इसके विपरीत वन महकमे का दावा है जंगलों में अवैध कटाई के प्रकरणों में लगातार कमी आ रही है। एक ही साल में चार हजार प्रकरण कम हो गए हैं। वहीं, वन विभाग के इन आंकड़ों पर सवाल उठने लगे हैं। जंगलों में अवैध कटाई कम होने के आंकड़ों का खुलासा वन विभाग की एक सालाना रिपोर्ट में किया गया है। इसलिए उठे सवाल केंद्र सरकार से बीते तीन साल में अरबों रुपए मिलने के बाद भी मध्यप्रदेश में हजारों हेक्टेयर वन क्षेत्र घट गया है। लाजमी है कि वन क्षेत्र में घटे हैं तो वृक्षों की संख्या में भी कमी आई होगी। इसी बात ने केंद्रीय योजनाओं पर अमल न होने की आशंकाओं को बल दिया है। खुद भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा जारी 14वीं वन परिक्षेत्र संसाधन सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार मप्र में 2013-14 में वन परिक्षेत्र 77522 वर्ग किमी था जो कि 2014-15 में घटकर 77462 वर्ग मीटर हो गया है अर्थात 60 वर्ग किलो मीटर (6 हजार हेक्टेयर ) जंगल घट गया। -अजयधीर
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