जिंदगी लीलती खूनी सड़कें
06-Jul-2016 07:57 AM 1234823
मप्र को यदि हादसों का प्रदेश कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्यिोक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रदेश में सड़क हादसों में पिछले एक साल में दस हजार लोगों की मौत हो गई। मप्र देश के उन टॉप फाइव राज्यों में शुमार हो गया है, जहां कि सड़कें सबसे ज्यादा असुरक्षित हो गई है। सीधे कहें तो यह जानलेवा हो गई है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2015 में मध्यप्रदेश में 10,000 लोग सड़क दुर्घटना में मौत के गाल में समा गए हैं। प्रदेश में सर्वाधिक सड़क दुर्घटना इंदौर में हुई हैं। इंदौर सड़क दुर्घटना के मामले में देश में चौथे स्थान पर है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट की सड़क सुरक्षा समिति ने भी चिंता जताई है। यही नहीं समिति ने मप्र की खस्ताहाल यातायात व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्हें हाजिर होने का निर्देश दिया है। अब देखना यह है कि यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए मप्र समिति के सामने किस तरह प्रस्तुत होता है। उल्लेखनीय है कि मप्र में सड़क सुरक्षा को लेकर हर साल छोटे-बड़े कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसमें पुलिस के अलावा स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, वित्त विभाग, एक्साइज विभाग महती भूमिका निभाते हैं। लेकिन प्रदेश में मौत का आंकड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। जबकि यातायात व्यवस्था संभालने के लिए चार हजार का अमला तैनात है। यह दुखद है कि जहां प्रदेश में अपराधों से सालभर में तेइस सौ लोगों की मौत होती है वहीं सड़क दुर्घटना में उससे चार गुना अधिक लोग जान गवां देते हैं। आलम यह है कि प्रदेश में हर घंटे चार से ज्यादा सड़क हादसे हो रहे है। जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो रही है। सड़क हादसों में मप्र चौंथे नंबर पर है। पहले स्थान पर तमिलनाडु है। वैसे देखा जाए तो हमारे देश में सड़क सुरक्षा केवल बातों और कागजों तक ही सीमित होकर रह गई है। परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर घंटे 57 सड़क हादसे होते हैं। इन हादसों में हर घंटे 17 लोग अपनी जान गंवा रहे है। इसमें से 77 प्रतिशत मामले ड्राइवर की गलती के चलते होते हैं और 28.8 प्रतिशत हादसों की चपेट में दोपहिया वाहन आते हैं। हर तरह के हादसों में 31.5 प्रतिशत मौत दोपहिया वाहन सवारों की होती है। सड़क पर चलने वालों की नादानी, शैतानी और लापरवाही इन हादसों की वजह सबसे बड़ी वजह है। साथ ही कई मामलों में इन हादसों के लिए सड़कों की बनावट भी जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि डेढ़ लाख लोग एक साल में मारे जा रहे हैं। जितने लोग आतंकवादी हमले नहीं मरते उतने लोग एक्सीडेंट मे मर रहे हैं। देश में 2015 में सड़क दुर्घटनाओं में 1,46,133 लोगों की मौत हुई है, जो 2014 के 1,39,671 के मुकाबले 4.6 फीसदी ज्यादा है। हरियाणा, छग व मप्र समेत तेरह राज्यों में ही वर्ष 2015 के दौरान 86.7 फीसदी सड़क हादसे हुए हैं, जिनमें सर्वाधिक 69,059 हादसों के साथ तमिलनाडु पहले पायदान पर है। जबकि सबसे कम हरियाणा में 11,174 सड़क हादसे दर्ज किये गये हैं। जबकि छत्तीसगढ़ 14,446 सड़क हादसों के साथ 11वें स्थान पर है। मध्य प्रदेश 54,947 हादसों के साथ चौथे नंबर पर है। इसके इसके अलावा कर्नाटक, करेल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना व पश्चिम बंगाल भी सड़क हादसों के सबब बने 13 राज्यों की सूची में शामिल हैं। रोजाना 400 की मौत 2015 में भारतीय सड़कों पर 5,01,423 सड़क दुर्घटना हुई, जो कि एक वर्ष पहले के 4,89,400 दुर्घटना के मुकाबले 2.5 फीसदी ज्यादा है। 2015 में भारत की सड़कों पर रोज 400 लोग मारे गए, मतलब हर घंटे 17 लोगों की मौत दर्ज की गई। ड्राइवर ज्यादा जिम्मेदार ज्यादातर सड़क हादसों के लिए ड्राइवर जिम्मेदार हैं। 2015 में हुई दुर्घटनाओं में 71 फीसदी दुर्घटना के लिए ड्राइवर जिम्मेदार थे। दुर्घटना की वजह से हुई मौतों में 72.6 फीसदी व्यक्ति ड्राइवर थे। पिछले साल सबसे ज्यादा हादसे मुंबई में 2015 में सबसे ज्यादा सड़क हादसे तो मुंबई में हुए लेकिन सबसे ज्यादा लोगों ने दिल्ली की सड़कों पर जान गवाईं। दिल्ली की चौड़ी, चमकदार दिखने वाली सड़कें 1622 लोगों की जिंदगी निगल गई। -राजेश बोरकर
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