पेन ड्राइव खोलेगा व्यापमं घोटाले का राज?
06-Jul-2016 07:23 AM 1234757
मध्यप्रदेश में हुए व्यापमं भर्ती घोटाले में अब पेन ड्राइव का पेंच फंस गया है। सीबीआई ने इस पेन ड्राइव को दिल्ली हाईकोर्ट से जांच के लिए मांगा है लेकिन कोर्ट ने इसकी जांच खुद कराने का फैसला किया है। इससे यह बात साबित हो रही है कि दिल्ली हाईकोर्ट को सीबीआई की जांच पर विश्वास नहीं है। आखिर हो भी कैसे? जबसे यह मामला सीबीआई के पास आया है तब से जांच ने गति नहीं पकड़ी है। उस पर आलम यह है कि एक-एक करके सारे आरोपी बाहर होते जा रहे हैं। दरअसल व्यापमं घोटाले में सीबीआई जांच का एलान होते ही घोटाले का पर्दाफाश करने वालों और प्रदेश के तमाम युवाओं को उम्मीद थी कि सीबीआई इस मामले की जांच जल्द से जल्द कर सच्चाई सामने लाएगी। लेकिन, सीबीआई की जांच धीमी गति से आगे बढ़ रही है। व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई को मिलने को एक साल पूरा होने को है लेकिन सीबीआई इस मामले में अपनी पहली चार्जशीट इसी जून में पेश की है। उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने 13 जुलाई 2015 से मामले की जांच शुरू की थी। सीबीआई को जांच सौंपने से पहले तक मध्यप्रदेश एसटीएफ ने व्यापमं को अलग-अलग परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप में लगभग पंद्रह सौ से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार किया था। अब जेल में बामुश्किल दो दर्जन आरोपी बचे होंगे। तकरीबन सभी आरोपियों को जमानत का लाभ मिला गया है। जमानत का यह सिलसिला लगभग छह महीने से चल रहा है। भाजपा नेता व खनन कारोबारी सुधीर शर्मा का नाम जेल से बाहर आने वाले रसूखदारों की कतार में अंतिम नाम है। शर्मा को जमानत देते समय हाईकोर्ट ने जमकर फटकार भी लगाई है। अदालत से साफ कहा कि सीबीआई साक्ष्य और चालान प्रस्तुत नहीं कर रही है। इसलिए आरोपियों को ज्यादा दिन जेल में नहीं रखा जा सकता है। लिहाजा उन्हें जमानत का लाभ दिया जा रहा है। अब तक जिन आरोपियों को जमानत मिली है, उनमें से ज्यादातर के खिलाफ एसटीएफ ने चालान तो पेश किया है, लेकिन उनके खिलाफ पुख्ता सबूत अदालत के सामने पेश नहीं किए गए हैं। यही वजह है कि उन्हें जमानत का लाभ मिला है। सीबीआई भी जोरदार तरीके से जमानत का विरोध नहीं कर रही। जबकि एसटीएफ हर एक आरोपी की जमानत का जोरदार खिलाफत करती थी। सीबीआई की कार्यप्रणाली से अब तो एसटीएफ पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि जिन लोगों को एसटीएफ ने अपराधी मानकर गिरफ्तार किया था वे सीबीआई की धीमी जांच के कारण एक-एक करके छूटते जा रहे हैं। अब तो यह भी सवाल उठाया जाने लगा है कि क्या सचमुच सीबीआई सरकार का तोता (उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजड़े में बंद सरकार का तोता कहा था और उसे पिंजड़े से मुक्त करने को कहा था।) है। सवाल यह उठ रहा है कि एसटीएफ प्रमुख सुधीर शाही ने जिन लोगों को पकड़ा था क्या वे आरोपी नहीं थे। अगर आरोप थे तो सीबीआई उसे सिद्ध करने में फेल क्यों हो रही है? जब तक यह जांच एसटीएफ के पास थी उसने एक भी आरोपी को रिहा नहीं होने दिया। अब जब देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के पास यह मामला है तो आखिरकार क्या वजह है कि आरोपी छूटते जा रहे हैं। सीबीआई की कार्यप्रणाली पर अब संदेह व्यक्त किया जाने लगा है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे जिन लोगों को एसटीएफ ने व्यापमं घोटाले में लिप्त पाया था वे अपराधी ही नहीं थे। आखिर अपराधी कौन है यह जांच का विषय है। उधर, सीबीआई अफसरों की दलील यह है कि एसटीएफ ने कुछ आरोपियों के खिलाफ पुख्ता दस्तावेजों की कमी है। जब दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, तब अदालत में साक्ष्य कैसे पेश किए जाएं। कई आरोपियों को सिर्फ दूसरे आरोपियों के बयान के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया था। उस बयान को अदालत भी साक्ष्य नही मानती है। ऐसे में साक्ष्य पेश करने में दिक्कत तो होगी। इस मामले में कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा कहते हैं कि किसी भी मामले में 90 दिन के बाद आरोपी जमानत के पात्र हो जाते हैं। जहां तक सीबीआई की बात है तो सीबीआई का काम जांच करना, आरोपी को पकडऩा और चालान पेश करना है। इसलिए आरोपियों की रिहाई के लिए सीबीआई जिम्मेदार नहीं है। फोरेंसिक रिपोर्टों के लंबित रहने की वजह से व्यापमं घोटाले में सीबीआई को मध्यप्रदेश की विशेष अदालत में अंतिम रिपेार्ट दाखिल करने में देर हो रही है। सीबीआई सूत्रों के अनुसार एजेंसी को दस्तावेज विश्लेषण, फिंगर प्रिंट और डिजिटल फुटप्रिंट समेत विभिन्न विषयों के संदर्भ में सीएफएसएल की मदद की जरूरत है, लेकिन ये रिपोर्ट अब तक सीबीआई को मिली नहीं है। उल्लेखनीय है कि एक तरफ जहां कई रसूखदार साक्ष्य नहीं मिलने के कारण जेल से बाहर हो चुके हैं वहीं कई ऐसे हैं जो अभी भी जेल की हवा खा रहे हैं। इनमें व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी, सीनियर सिस्टम एनालिस्ट रहे अजय कुमार सेन, असिस्टेट प्रोग्रामर सीके मिश्रा शामिल हैं। जिस तरह सीबीआई जांच और चालान पेश करने में कोताही बरत रही है उससे अब तो ऐसा लगने लगा है कि सारे आरोपी बाहर आ जाएंगे। ऐसे में पेन ड्राइव ही एक ऐसा सूत्र है जो दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता है। उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने हैदराबाद सीएफएसएल से पेन ड्राइव की मांग की थी। इस पर हैदराबाद सीएफएसएल ने सीबीआई को पेन ड्राइव की जांच रिपोर्ट सीधे सौंपने के बजाए कोर्ट के जरिए हासिल करने की सलाह दी है। यह पेनड्राइव दिल्ली हाईकोर्ट के माध्यम से जांच के लिए भेजी गई है। इसलिए सीएफएसएल ने कहा है कि कोर्ट के ऑर्डर के बाद ही उसे सौंपा जा सकता है। बता दें कि यह वहीं पेन ड्राइव है, जो इंदौर के आरटीआई एक्टिविस्ट प्रशांत ने सीधे तौर पर दिल्ली कोर्ट में जमा करवाई थी और इसी के आधार पर कोर्ट से सुरक्षा देने की मांग की थी। इसके बाद से ही यह पेन ड्राइव कोर्ट के पास जमा है। सीबीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट तैयार करने के दौरान भी इस पेन ड्राइव को जिक्र किया है। सीबीआई इसको अपने स्तर पर जांच करवाना चाहती थी, लेकिन लगातार विरोधियों द्वारा हरेक सबूत को गलत बताने के कारण कोर्ट ने इसकी जांच अपने स्तर पर करने का फैसला लिया है। क्या है पेन ड्राइव में सूत्रों के अनुसार इंदौर पुलिस को व्यापमं घोटाले से जुड़े कई जानकारी एक हार्ड डिस्क से मिली थी। इस हार्ड डिस्क की जांच करने के लिये पुलिस ने इंदौर के एक्सपर्ट प्रशांत से मदद मांगी थी। इसी दौरान प्रशांत ने हार्ड डिस्क का बैकअप अपने सिस्टम में तैयार कर लिया। प्रशांत ने कोर्ट में कहा था कि उसके सिस्टम में ऐसे सॉफ्टवेयर लगे हुए हैं, जिसकी मदद से स्टोरेज डिवाइस लगाते ही उसका बैकअप तैयार हो जाता है। प्रशांत ने बाद में आरोप लगाया कि हार्ड डिस्क से पुलिस ने छेड़छाड़ की है और नामों में कई परिवर्तन किये हैं। जो कि अब जांच का विषय है। इस कारण से मप्र के अफसरों के सांस फुल हुए हैं, कि जांच में पता नहीं किसके किसके नाम सामने आयेंगे। इस तरह चली जांच पर जांच व्यावसायिक परीक्षा मंडल की परीक्षा में किए गए घोटाले का खुलासा इंदौर पुलिस न किया था, इस फजीवाड़े को लेकर पहला मामला इंदौर के राजद नगर थाने में दर्ज किया गया था यह मामला सात जुलाई 2013 को दर्ज किया गया था। उसके बाद जांच के लिए मामला इंदौर क्राइम ब्रांच को सौंपा गया। इंदौर क्राम ब्रांच ने परीक्षा में दलाली करने वाले गिरोह के सरगना डॉ. जगदीस सागर को पहले गिरफ्तार किया था। सागर  अभी भी जेल में है। सागर को निशानदेही पर व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक रहे डॉ. पंकज त्रिवेदी, सीनियर सिस्टम एनालिस्ट नितन महिदा, सिस्टम एनलिस्ट अजय सन और असिस्टेंट प्रोग्रामर सीके मिश्रा का नाम आया था। उनमें से त्रिवेदी को छोड़कर तीनों अफसरों को इंदौर क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था। बाद में मामले की जांच मध्यप्रदेश एसटीएफ को सौंप दी गई थी। एसटीएफ को जांच मिलने के बाद पंकज त्रिवेदी समेत एक-एक कर कई रसूखदार आरोपियों की गिरफ्तारी की गई थी। अब व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई ने 13 जुलाई 2015 से मामले की जांच शुरू की थी। नौ जुलाई को सौंपी गई थी जांच दरअसल, नौ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपे जाने के आदेश दिया था। इस लिहाज से नौ जुलाई को व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच को एक साल पूरा हो जाएगा, लेकिन घोटाले की जांच की रफ्तार और प्रगति को देखते हुए देश की सबसे बड़ी जांच एंजेसी पर सवाल खड़े होने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए 13 जुलाई को जांच एमपीएसटीएफ के हाथ से सीबीआई के हाथों में चली गयी थी, लेकिन सीबीआई की जांच की रफ्तार और सीबीआई की जांच को लेकर आ रही खबरों के चलते व्यापमं घोटाले की जांच पर सवाल खड़े होने लगे हैं। राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में मेडिकल ऑफिसर रहे और इस घोटाले को उजागर करने में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. आनंद राय सीबीआई जांच पर कई सवाल खड़े कर चुके हैं। आनंद राय का कहना है कि सीबीआई के पास ऐसी कई शिकायतें लंबित पड़ी हैं जिनकी सीबीआई ने अभी शुरूआती जांच भी नहीं की है। इनमे से दो शिकायतें खुद आनंद राय ने की है, लेकिन सीबीआई ने अभी तक उन पर कोई काम नहीं किया है। इसके अलावा जब सीबीआई से इन जांचों की प्रगति की जानकारी चाही गयी तो सीबीआई ने ये कहकर पल्ला झाड लिया कि इस घोटाले में सिर्फ उन मामलों की जांच की जाएगी। जिनके आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं। व्यापमं घोटाले में आरोपी इन लोगों को मिली जमानत व्यापमं घोटाले में आरोपी बनाए गए जिन रसूखदार आरोपियों को अब तक जमानत का लाभ मिला है, उनमें सबसे बड़ा नाम पव मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा है। उनसे पहले राज्यपाल के ओएसडी रहे धनराज यादव और आईपीएस अफसर के भाई भरत मिश्रा कुछ दिन पहले बाहर आए हैं। अरविंदों मेडिकल कालेज के डायरेक्टर डॉ. विनोद भंडारी, निलंबित डीआईजी आरके शिवहरे, डीएसपी रक्षपाल सिंह यादव, निरीक्षक अजय सिंह पंवार, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी रहे ओपी शुक्ला, क्रेडाई के अध्यक्ष व बिल्डर विपिन गोयल, भाजपा नेता अजय शंकर मेहता, खनन कारोबार सुधीर शर्मा, कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना, आईएएस अफसर के दामाद तरंग शर्मा, अरविंदो मंडिकल कालेज के जनरल मैजेजर प्रदीप रघुवंशी जेल से बाहर आ चुके है। -सुनील सिंह
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