खतरे में रमन राजÓ
06-Jul-2016 07:26 AM 1234790
छत्तीसगढ़़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह बेहद ईमानदार राजनेता हैं, लेकिन उनकी सरकार के खिलाफ लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं जिससे मुख्यमंत्री भी संदेह के घेरे में हैं। ऐसे में प्रदेश की भाजपा सरकार को लोग संदेह की नजर से देख रहे हैं। सरकार की कार्यप्रणाली के खिलाफ लगातार दिल्ली शिकायतें पहुंच रही है। ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए छत्तीसगढ़ अब विशेष दिलचस्पी का सबब बन गया है जिसमें नई चिंता भी है और राज्यीय सत्ता को चौथे कार्यकाल के लिए कायम रखने की उजली संभावनाएं भी। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। यदि वे सार्वजनिक रूप से घोषित अपने इरादे पर कायम रहते हैं तो राज्य में तीसरी शक्ति का उदय होना तय है। जाहिर है कांग्रेस में होने वाली टूट-फूट से भाजपा को फायदा भी है और नुकसान भी। जोगी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। तमाम झंझावतों के बावजूद व्हील चेयर पर बैठे हुए इस शख्स की राजनीतिक हैसियत में कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। उनकी सक्रियता पूर्ववत कायम रही। प्रदेश में तेजी से घट रहे राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राज्य में नेतृत्व परिवर्तन पर भी विचार कर सकता है। बहुत संभव है, चुनाव के कछ समय पूर्व डॉ. रमन सिंह की गद्दी छिन जाए और किसी आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बना दिया जाए जिसकी मांग राज्य का आदिवासी समाज लंबे समय से कर रहा है। यों भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 29 सीटों में से केवल 11 सीटें भाजपा के पास है। जोगी विवादित आदिवासी चेहरा है लिहाजा इस समाज के वोटों को संतुष्ट करने के लिए पार्टी में किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने का विचार जोर पकड़ सकता है। इस सोच के पीछे और भी राजनीति कारण हैं। दरअसल मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली से उनके मंत्री भी खुश नहीं हैं। क्योंकि अफसरों के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो के लगातार पड़ रहे छापों एवं करोड़ों की चल-अचल अनुपातहीन संपत्ति के उजागर होने की घटनाओं से सरकार के दामन पर दाग लग रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री कोई कठोर कदम नहीं उठा रहे हैं। और तो और खुद रमन सिंह की साफ-सुथरी छवि भी तीसरी पारी में दागदार हुई है। चाहे वह अगुस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीदी में कमीशन देने का आरोप हो या 36 हजार करोड़ का तथाकथित पीडीएस चावल घोटाला। सांसद बेटे अभिषेक सिंह पर विदेशी बैंकों में संपत्ति रखने के आरोप जैसे कुछ और आरोपों ने मुख्यमंत्री को परेशान किया है। हालांकि मुख्यमंत्री के रुप में उनका पहला और दूसरा कार्यकाल निष्कलंक रहा। उन पर व्यक्तिगत तौर पर कोई आरोप नहीं लगे, विपक्ष ने भी उन्हें कटघरे में खड़ा नहीं किया लेकिन तब भी सरकार की नाकामी और नौकरशाही की आलोचना होती रही और भ्रष्टाचार खूब फलता-फूलता रहा। किन्तु तीसरे कार्यकाल की आधी अवधि बीतते-बीतते रमन सिंह पर छीटें पडऩे शुरु हो गए। इसलिए केंद्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़ को लेकर मंथन में जुट गया है। लगाम पड़ रही ढ़ीली मुख्यमंत्री रमन सिंह की प्रशासनिक पकड़ भी ढ़ीली पड़ती जा रही है। वैसे तो सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री के रुप में तीसरी पारी खेल रहे डा. रमन सिंह शासकीय प्रबंधन में माहिर नहीं है। नौकरशाही ऐसी बेलगाम है कि विधायक तो विधायक मंत्रियों की भी औकात नही है कि वे उससे मनचाहा काम ले सकें। केबिनेट की बैठकों में मंत्रियों ने एवं पार्टी बैठकों में कार्यकर्ताओं ने नौकरशाही के खिलाफ जमकर गुस्सा निकाला। सरकार भले ही जनोन्मुख होने का दावा करें किन्तु नौकरशाही का जाल ऐसा है कि बिना पैसों के लेन-देन के कोई काम नहीं होता। भ्रष्ट अफसरों ने रिश्वतखोरी में नए कीर्तिमान स्थापित कर रखें हैं। इससे सरकार की छवि दिन पर दिन खराब होती जा रही है। इसको लेकर भाजपा आलाकमान भी चिंतित हैं। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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