18-Jul-2016 07:36 AM
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छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास की गति और चमक का आलम यह है कि इसमें भागीदार बनने वाले अन्नदाता अब भी अंधेरों की जकड़ में हैं। अकेले रायगढ़ जिले का आलम यह है कि यहां लगभग आधा दर्जन छोटी-बड़ी कंपनियों को अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन देने के बाद भी जमीन मालिकों और किसानों को कुछ हासिल नहीं हुआ है, जबकि जिस उद्योग के लिए इन लोगों ने अपनी जमीन दी थी, उसकी ईंट तक नहीं रखी जा सकी है।
अब परेशानी यह है कि जमीन तो चली गई, पर उद्योग लगा नहीं, ऐसे में उन्हें रोजगार और पुर्नवास दोनों मयस्सर नहीं हो सका है। सिंघल स्टील के लिए साल 2007-08 में जमीन अधिग्रहित की गई थी। इसमें लगभग 116.85 हेक्टेयर जमीन किसानों से ली गई। मगर ये कंपनी आज तक नहीं खुली। इन कंपनियों ने पतरा पाली और सियार पाली के इलाकों के किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया। साल 2008-09 में वीसा स्टील के लिए कोटमार, पतरा पाली सहित इसके आस-पास के इलाकों में उद्यागों के निर्माण के लिए जमीनों की खरीदी की गई। इसके लिए लगभग 196.87 हेक्टेयर जमीन किसानों से ली गई। मगर ये कंपनियां भी आज तक खुल नहीं सकीं। 2005-06 में रायगढ़ जिले के भोजपुर खम्हार इलाके में एई स्टील की स्थापना के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया। लगभग 299 हेक्टेयर जमीन की खरीदी की गई। मगर इनका भी जमीन पर अस्तित्व नहीं है। इस हालत में किसानों को आज तक कोई लाभ नहीं मिला। साल 2007-08 में भेंगारी में महावीर एनर्जी के लिए 24 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया। मगर ये कंपनी भी नहीं खुल सकी। परिणाम यह हुआ कि जिन किसानों की जमीन इसमें गई उन्हें सिवाए मुआवजा के अन्य कोई लाभ नहीं मिल सका है। साल 2008-09 में सलासर के लिए चिराई पानी, गेरवानी में 14.278 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था। इसमें भी किसानों को सिवाय मुआवजा के कुछ खास नहीं मिल सका है। एक आंकड़ें के मुताबिक रायगढ़ में आधे दर्जन से ज्यादा उद्योग समूहों के पास किसानों की लगभग सात सौ हेक्टेयर जमीन है। इसमें जेएसडब्ल्यू, टॉपवर्थ, सिंघल, एई स्टील और वीसा स्टील आदि का नाम शामिल हैं, जबकि कुछ ऐसी कंपनियां भी हैं जो कि स्थापित हुईं और बंद हो गईं। इसमें इंड्स एग्रो का नाम आता है, जबकि कुछ खनन कंपनियों ने भी जमीन ली है। कोर्ट के फैसले के बाद भी ये कंपनियां खुल नहीं सकीं। सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी कहते हैं, ऐसी स्थिति में सरकार को नियमानुसार किसानों को जमीन वापस करना चाहिए।
लगातार उठ रही है मांग
कंपनियों के लिए जमीन लेने और उनके नहीं खुलने के कारण किसानों की परेशानी की आवाज अब उठने लगी है। ऐसे में लगातार प्रभावित कंपनी के किसान अपनी जमीन वापसी की मांग कर रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों से यह प्रक्रिया सतत जारी है। वहीं, नियम के मुताबिक भू-अर्जन अधिनियम 2013 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि यदि कोई औद्योगिक प्रयोजन के लिए जमीन लेता है और पांच साल तक उसे चालू नहीं करता है तो इस परिस्थिति में सरकार किसानों को जमीन वापस करवाएगी। मगर यह नियम भी अधिनियम की धाराओं से बाहर नहीं आ सका है।
मजदूर बन गए किसान
इन उद्योगों में किसानों की जमीन जाने और उद्योग के नहीं खुलने के कारण किसानों की हालत खराब हो गई है। उन्हें किसान से मजदूर बना दिया गया है। दूसरी ओर यह अधिग्रहण 2008 से 10 तक के हैं। ऐसे में उस दौर में मुआवजा कुछ हजार रुपए ही मिले थे, जो अब खर्च हो चुके हैं। दूसरी तरफ, भू-अर्जन अधिकारी और रायगढ़ एसडीएम प्रकाश सर्वे कहते हैं, नियमानुसार यदि उद्योग की स्थापना नहीं होती है तो उसे उद्योग से लेकर वापस लैंड बैंक में जमा करना होता है। ग्रामीणों की ओर से शिकायत की गई है, फिलहाल इसके लिए प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला