चौपाल पर बिछ रही चौसर
16-Jun-2016 08:50 AM 1234898
छत्तीसगढ़ में भाजपा भले ही सत्ता में हैं लेकिन उसने अभी से 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव की चौसर बिछानी शुरू कर दी है। वहीं कांग्रेस अभी भी आपसी कलह से जूझ रही है। कांग्रेस की निष्क्रियता का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने जनता के बीच सक्रियता बढ़ा दी है। पहाडिय़ों के घिरे और नक्सल प्रभावित आदिवासी बहुल गांवों तक पहुंचना नाकों चने चबाने जैसा है। पहाड़ी इलाके में मीलों पैदल चलकर गांव पहुंचने वाले ग्रामीणों के बीच जब सीधी बातचीत के लिए मुख्यमंत्री पहुंचते हैं तो ग्रामिणों को लगता है जैसे उनका भाग्य ही खुल गया है। डा. रमन सिंह ऐसे ही नक्सल प्रभावित गांवों में इन दिनों चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुन रहे हैं और उनका समाधान कर रहे हैं। यानी आगामी विधानसभा चुनाव के ढ़ाई साल पहले ही चौपाल पर चौसर बिछाकर अपनी सरकार की चौथी पारी को वे सुनिश्चित करना चाहते हैं। डा. रमन सिंह पिछले एक माह से अधिक समय से गांवों में चौपाल लगा रहे हैं। कभी सरगुजा संभाग के जिले जशपुर के गांव अलोरी और सूरजपुर के गांव जजावल में  तो कभी अबूझमाड़ के बासिंग में, सूरजपुर जिले के सरगांव में तो कभी कोंडागांव के बड़े डोंगर की चौपाल में चाउर वाले बाबा पहुंचते हैं और लोगों को सौगाते देते हैं। अपने अंदाज में रमन सिंह मिली-जुली हिंदी सरगुजिया में ऐलान करते हैं, गांव वालों के मकान का नक्शा-खसरा बनेगा और प्रति फ्री में मिलेगी। जजावल और आसपास के गांवों में बिजली के कम वोल्टेज की समस्या को दूर करने के लिए जजावल में 33/11 केवी का सब-स्टेशन बनेगा। सिंचाई के लिए स्टॉप डैम के लिए 50 लाख जारी किए जाएंगे। सूखा राहत कोष से अलग से तालाब बनाना शुरू कर दिया जाएगा। रास्ते दुरुस्त करने के लिए घाट कटिंग होगी... आदि। ठीक इसी तरह अलोरी में एक खेत में चौपाल लगाई जाती है और वहां सूखा एवं ओला प्रभावित किसान अपनी परेशानी बताते हैं। वहां भी कई छोटी-छोटी योजनाओं का ऐलान मुख्यमंत्री करते हैं- सौर ऊर्जा से संचालित पंप बढ़ाना, बिजली के कनेक्शन, 5-10 किलोमीटर की रूट पर बसें, पहाड़ी नाले में पुल आदि। जिन इलाकों में अभी हाल तक नक्सलियों के फरमान का ग्रामीण पालन करते दिखते थे, वहां प्रशासन की योजनाओं-घोषणाओं का विश्लेषण और रिव्यू करने में सीधे ग्रामीणों की हिस्सेदारी बन रही है। उत्तर छत्तीसगढ़ के 3000 वर्ग किलोमीटर वाले अबूझमाड़ को आदिम सभ्यता और वन क्षेत्र के लिए जाना जाता है। वहां का नारायण गढ़ जिला, जहां माओवादी दहशत के चलते विकास की रोशनी तक नहीं पहुंची। अबूझमाड़ का यह इलाका एक प्रकार से बस्तर का युद्ध क्षेत्र का हिस्सा है, जहां सुरक्षा जवानों और माओवादियों के बीच मुठभेड़ रोज की बात है। माओवादी यहां प्रेशर बम, आईईडी और लैंड माइन के साथ सक्रिय हैं और जन अदालतें लगाया करते हैं। अबूझमाड़ के बासिंग में रमन सिंह के हेलिकाप्टर की आवाज सुनकर कुछ लोग देखने पहुंचते हैं। कुछ मुख्यमंत्री को पहचान पाते हैं और कुछ अनभिज्ञ दिखते हैं। थोड़ी ही देर में वहां चौपाल लगती है। बातें होने लगती है। फिर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में चौपाल लगती है रतिराम की बाड़ी में। यहां मातृ मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। सबसे बड़ा कारण यहां सड़क ही नहीं है। भेज्जी इलाके में डा. रमन सिंह मोटर साइकिल पर घूमते हैं और सीधे ग्रामीणों से संवाद करते हैं। भेज्जी गांव को दोबारा बसाया गया है। अपनी चौपाल यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री अपनी योजनाओं की हकीकत से भी रूबरू होते हैं और प्रशासन को समस्याएं तत्काल दूर करने को कहते हैं। मुख्यमंत्री के साथ चल रहे कई विभागों के प्रभारी सचिव संतोष कुमार मिश्रा बताते हैं, अकेले इस योजना के चलते समूचे छत्तीसगढ़ में भुखमरी खत्म करने में मदद मिली है। नक्सलियों के गढ़ में अब बेखौफ हैं लोग कभी नक्सल प्रभावित रहे इलाकों से पिछड़े और जीवन के लिए रोज-रोज संघर्ष कर रही बड़ी आबादी जब अपने बीच प्रशासन के शीर्षस्थ लोगों को देखती है तो अब बेहिचक अपनी जरूरतें बता रही है। छोटी-छोटी जरूरतें हैं, जिन्हें हम-आप शायद गंभीरता से न लें। लेकिन उन इलाकों में उन जरूरतों की पूर्ति बड़ा फर्क ला रही है। जाहिर तौर पर छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी समस्या नक्सल हिंसा से मुकाबले में इस कवायद की भी भागीदारी है। लेकिन कहीं-कहीं भोर की रोशनी के बीच अभी भी अंधकार की स्थिति बची है। सूरजपुर के प्रतापपुर में कई गांवों में आदिम पंडो जनजाति को मुख्यधारा से जोडऩे के रास्ते में अभी भी थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है वाली स्थिति है। पंडों आबादी वाले गांवों में बिजली देने, रोजगार प्रशिक्षण दिलाने, उन्हें जाति प्रमाण-पत्र देने समेत कई अभियान शुरू किए गए हैं। लेकिन अभी-अभी विकास की रोशनी देख रहे पंडो जनजाति के लोगों को शायद विकास का अहसास करने में समय लगेगा। और अब ये लोग बेखौफ नजर आ रहे हैं। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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