06-Jul-2016 07:20 AM
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राजस्थान में तो रेगिस्तान है ही, लेकिन बुंदेलखंड भी रेगिस्तान बन सकता है। जलपुरुष के नाम से चर्चित राजेंद्र सिंह ने सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड को लेकर दूसरे राजस्थान (रेगिस्तान) बनने की आशंका जताई है। राजेंद्र सिंह की आशंका कोई आसमानी नहीं है। बल्कि बुंदेलखंड में जिस तरह के हालात पिछले कई सालों से बन रहे हैं उससे यह साफ दिख रहा है। यहां के खेतों की मिट्टी के ऊपर सिल्ट जमा हो रही है, जो खेतों की पैदावार को ही खत्म कर सकती है।
राजेंद्र के मुताबिक उन्होंने जल-हल यात्रा के दौरान टीकमगढ़ और छतरपुर के तीन गांवों की जो तस्वीर देखी है, वह बेहद डरावनी है। उन्होंने बताया कि यहां लोगों को खाने के लिए अनाज और पीने के लिए पानी भी आसानी से उपलब्ध नहीं है। जानवरों के लिए चारा और पानी नहीं है। रोजगार के अभाव में युवा पीढ़ी पलायन कर गई है। इतना ही नहीं नदियां पत्थरों में बदलती नजर आती हैं, तो तालाब गड्ढे बन गए हैं। इन सब स्थितियों के लिए सिर्फ प्रकृति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए हम लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है। उनका मानना है कि अब भी स्थितियों को सुधारा जा सकता है क्योंकि मानसून आ गया है। इसके लिए जरूरी है कि बारिश के ज्यादा से ज्यादा पानी को रोका जाए।
जलपुरुष की बात में दम है। अगर सचमुच में बुंदेलखण्ड की रौनक लौटानी है तो नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान चले, तालाबों को गहरा किया जाए और नए तालाब बनाए जाएं। अगर ये सारे प्रयास कर लिए गए, तो आगामी वर्ष में सूखे जैसे हालात को रोका जा सकेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर क्या होगा, यह तो ऊपर वाला ही जाने। सरकारों ने सूबों की सरहद बांध दी, लेकिन कुदरत ने कोई हदबंदी नहीं की। यूपी और एमपी में बुंदेलखंड के हालात एक जैसे हैं। जो मौसम की मार यूपी के बुंदेलियों पर पड़ रही है, वही मार एमपी के बुंदेली भी झेल रहे हैं। भीषण सूखे के हालात ने दोनों राज्यों में बंटे बुंदेलखंड के लगभग एक दर्जन जिलों में महाराष्ट्र के लातूर जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। यहां पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है। कुदरत के इस कहर के आगे दोनों राज्यों की सरकारें बौनी साबित हो रही हैं।
यूपी के बुंदेलखंड में चित्रकूट जिले के पाठा क्षेत्र में प्रदेश सरकार ने वर्ष 1973 में एशिया की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना मंजूर की थी। इसकी लागत तब 196.485 लाख रुपये थी। इस परियोजना से लगभग पौने चार सौ गांवों में पाइप लाइन के जरिये पानी दिया जाना था, लेकिन जल संस्थान अपनी इस घोषणा पर खरा नहीं उतरा। जल संस्थान का दावा है कि 234 गांवों और तीन नगरीय क्षेत्रों में पाइप लाइन से पानी दिया जा रहा है, जबकि हकीकत कुछ और है। पाठा क्षेत्र में देवांगना घाटी के रामपुर, रुकमा खुर्द, ददरी, मडै़य्यन खुर्द आदि गांवों में डाली गई पाइप लाइनों में आज तक एक बूंद पानी नहीं आया। यह लाइनें जंग खाकर बर्बाद हो रही हैं।
जंगली जानवरों तक को पानी नसीब नहीं हो रहा है। रामपुर गांव की सुमित्रा और कल्लू पाइप लाइन की तरफ देखते हैं और अपनी नियती को कोसते हैं। किसान नेता शिवनारायण सिंह परिहार और ग्रामीण हृदेश सिंह का कहना है कि स्थितियां इतनी खराब हैं कि जान बचाना मुश्किल पड़ रहा है। इन गांवों में भ्रमण को पहुंचे प्रवास सोसाइटी के आशीष सागर ने बताया कि यही हालात सीमा से जुड़े मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के हैं। सरहदी पन्ना शहर से पांच किलोमीटर दूर बसे गोंड आदिवासी बस्ती, मानस नगर और मांझा में लातूर जैसा नजारा है। गड्ढे खोदकर उनमें जमा हो रहा प्रदूषित पानी महिलाएं और बच्चे कपड़े से छान कर घर ला रहे हैं। पन्ना का धर्म सागर, लोकपाल सागर, बेनी सागर आदि सूख चुके हैं।
कागजों पर योजनाएं
जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं कि मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के क्षेत्र में आने वाले बुंदेलखण्ड की हालत बेहद नाजुक है। इसके लिए दोनों राज्यों की सरकारें जिम्मेदार हैं। बुंदेलखण्ड में प्राकृतिक संपदाओं का जितना शोषण हुआ है उतना और कहीं नहीं हुआ है। यही कारण है कि आज बुंदेलखण्ड बदहाल है। हालांकि क्षेत्र की बदहाली को दूर करने के लिए दोनों राज्यों की सरकारों के अलावा केंद्र सरकार ने भी योजनाओं की भरमार लगाई है। लेकिन विसंगति यह है कि अरबों रुपए की योजनाएं कागजों पर तैयार हैं। वह कहते हैं कि मैंने बुंदेलखण्ड के जिन हिस्सों को देखा है वहां बदहाली इस कदर है कि लोगों के लिए अपने आप को जिंदा रखना बड़ी चुनौती है। ऐसे में वहां खनन माफिया लोगों की समस्या को और बढ़ा रहे हैं। लगातार इन क्षेत्रों में ब्लास्टिंग की जा रही है जिससे पानी और तेजी से नीचे जा रहा है। खेतों में पड़ी दरारें इस बात का सबूत दे रही है कि देश में एक दूसरा राजस्थान जल्द ही आकार लेने वाला है।
-जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया