कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना
16-Jun-2016 09:55 AM 1234797
पिछले चुनावों में विपक्षी दलों के हाथों कड़ी टक्कर के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उत्तर प्रदेश चुनावों को चाणक्य नीति के साथ खेलने की तैयारी में हैं। यही वजह है कि इन दिनों गुपचुप वह कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना गाना गुनगुनाते दिख रहे हैं। सामूहिक स्थल पर शाह भले ही कह रहे हों कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी से होगा लेकिन पार्टी इस जंग में बीएसपी को भी हल्के में नहीं ले रही है। यही नहीं, दलितों को पाले में लाने के लिए बीजेपी अंबेडकर सहित दलित समुदाय से जुड़ी कई शख्सियतों से भी खुद को जोडऩे की रणनीति बना रही है। बीएसपी से अनुसूचित जाति के वोटरों को खींचने के लिए वह बौद्ध भिक्षुओं का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हट रही। मायावती पर निगाहें हैं थमीं सपा काल ने राज्य में गुंडाराज को जिस तरह बढ़ा दिया है, उससे आगामी चुनावों के लिए राज्य में मायावती की जमीन और भी मजबूत होती जा रही है। ऐसे में बीजेपी इन कोशिशों के जरिये उन्हें चुनौती देने की तैयारी में है। गौरतलब है कि साल 2002 में राजनाथ सिंह की अगुवाई में यूपी में बीजेपी की आखिरी सरकार थी। उन दिनों बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद से यूपी में एसपी और बीएसपी ही चुनाव का मुख्य केंद्र रही हैं। इसे देखते हुए अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ किसी भी सत्ता विरोधी रूझान का स्वाभाविक फायदा बीएसपी को मिलता हुआ माना जाना स्वाभाविक है। ऐसे में बीजेपी ब्राह्मण, बनिया, अति पिछड़ा वर्ग सहित दलित वोटरों को भी अपने साथ जोडऩे में लगी हुई है। पूर्व राज्यसभा सांसद और ऑल इंडिया भिक्षु संघ के प्रमुख 75 वर्षीय डॉ. धम्म विरियो के नेतृत्व में 24 अप्रैल को सारनाथ से रवाना हुई करीब 75 बौद्ध भिक्षुओं वाली धम्म चेतना यात्रा को भी बीजेपी की इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। यात्रा का पहला चरण 5 जून को पूरा हो गया है। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि वाराणसी और गोरखपुर के इर्दगिर्द पूर्वी उत्तरप्रदेश के 19 जिलों को इसमें कवर किया गया। माना जा रहा है कि इस यात्रा और इसके असर पर बीजेपी मुख्यालय सहित प्रधानमंत्री कार्यालय से भी नजर रखी जा रही है। मुलायम-मायावती से लड़ेंगे राजनाथ यूपी के निर्णायक विधान सभा चुनाव की बाजी मारने  के लिए बीजेपी ने अपने पत्ते सजा लिए हैं। संकेत मिल रहे हैं कि मोदी-शाह की जोड़ी गृह मंत्री राजनाथ सिंह को यूपी के महा समर में अपना ट्रम्प कार्ड बनाएगी। राजनाथ भले ही देश के गृह मंत्री हों  लेकिन यूपी जाने के लिए वो दिल से तैयार हैं। ये अलग बात है कि  उन्होंने किसी मंच से अब तक  इसके लिए हामी नहीं भरी है। मोदी जिस तरह से राजनाथ को अपने साथ 26 मई की सहारपुर रैली में ले गए उससे यूपी के दिग्गज नेताओं को भविष्य की राजनीति की सुगबुगाहट का एहसास हो गया था। इसके बाद अमित शाह ने यूपी में हुई सभाओं में राजनाथ की पुरानी सरकार की याद दिलाकर कुछ पुख्ता संकेत दे डाले। दरअसल राजनाथ  को  ठाकुर वोट या पूर्वांचल में दबदबे के लिए नहीं लाया जा रहा है बल्कि उन्हें इसलिए प्रोजेक्ट करना पड़ रहा क्यूंकि राजनाथ के  अलावा आज पार्टी में कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है जो मुलायम या मायवती के आगे रखा जा सके। राजनाथ होंगे भाजपा का ट्रम्प कार्ड राजनाथ सिंह की स्थिति नितिन गडकरी जैसी नहीं है जिन्हे पार्टी ने महाराष्ट्र चुनाव से दूर रखा। दरअसल नागपुर की शह पर गडकरी ही एक मात्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता है जो आगे चलकर मोदी के लिए चुनौती बन सकते हैं। इसलिए गडकरी को काउंटर करने के लिए मोदी-शाह ने देवेन्द्र फडऩवीस जैसे जूनियर नेता को महाराष्ट्र का महा नेता बना दिया। लेकिन गडकरी और राजनाथ की सियासत में मूल अंतर है। गडकरी राजनीति की हर विकेट पर  फ्रंट फुट के बल्लेबाज माने जाते हैं जबकि राजनाथ लम्बी पारी के सशक्त डिफेन्स प्लेयर हैं। इसलिए पिछले दो साल में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे उन्हें मोदी का प्रतिद्वन्दी माना जाए। -मधु आलोक निगम
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