04-Jun-2016 09:48 AM
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श की राजनीति में एक बार फिर से मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की जोड़ी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। मुलायम ने अमर सिंह को राज्य सभा में भेजकर कईयों की बोलती बंद कर दी है। मुलायम के इस अमर प्रेम ने उनके घर-आंगन में भी कलह पनप रही है। अमर सिंह भलिभांति इस बात से परिचित हैं कि सत्तारुढ़ पार्टी के ज्यादातर लोग उनकी वापसी से खुश नहीं हैं। लेकिन उन्हें इससे फर्क भी नहीं पड़ता। समाजवादी पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले अमर सिंह अचानक पार्टी द्वारा पूरी तरह त्याग दिए जाएंगे, ये किसी ने सोचा भी नहीं था। एक दौर था जब अमर सिंह के इशारे के बिना समाजवादी पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता था और फिर एक दौर वो भी आया जब अमर सिंह दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर किए गए।
इधर, अमर सिंह बच्चन परिवार समेत अपने कई नजदीकियों के खिलाफ बुरे दौर में कई चुभती बातें बोलते रहे, लेकिन उन्होंने अपने नेताजी यानी मुलायम सिंह के लिए मुलायम रुख बनाए रखा। मुलायम के अमर प्रेम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सियासत में कोई किसी का दोस्त नहीं तो कोई किसी का दुश्मन भी नहीं होता। राजनीति से पूरी तरह बाहर फेंक दिए गए और बहुत जल्द ही एक फिल्म में नजर आने वाले अमर सिंह खुद भी संन्यास की घोषणा कर चुके थे। उन्हें समाजवादी पार्टी का दुश्मन मानने वालों को मुलायम ने करारा झटका दिया। जनवरी 2010 के पहले समाजवादी पार्टी का कोई काम अमर सिंह से पूछे बिना नहीं होता था और यही वजह है कि उन्हें आजम खान और रामगोपाल यादव जैसे नेताओं के पार्टी में होने के बावजूद ज्यादा बड़ी हैसियत हासिल थी।
मुलायम सिंह यादव उनकी सियासी समझ और लोगों के बीच पकड़ के कायल रहे हैं। समाजवादी पार्टी के साथ सितारों को जोडऩे का सिलसिला अमर सिंह ने ही शुरू किया। अमिताभ बच्चन भी उन्हें छोटा भाई कहते थे और उन्हीं की वजह से जया बच्चन समाजवादी पार्टी से जुड़ी और राज्य सभा पहुंची। हालांकि जब मुलायम और अमर सिंह में से किसी एक को चुनने की बारी आई तो बच्चन परिवार नेताजी के साथ रहा। राजनीति में जब मुलायम और अमर साथ आ गए तो बाकी गिले शिकवे दूर होने में भी देर नहीं लगेगी। नेताजी के जन्मदिन के मौके पर अमर सिंह का आना इस बात का पहले ही संकेत दे चुका था कि जल्दी ही उनकी वापसी हो जाएगी। उन्होंने कहा था कि नेताजी ने मेरे जन्मदिन यानी 27 जनवरी को मुझे पार्टी से निकाले जाने के कागजात पर हस्ताक्षर किए थे। छ: साल के लिए तो मैं पार्टी से बाहर ही हूं.. अब एक साल बचा है ऐसे में मैं नेताजी के फैसले का सम्मान करूंगा।
अमर सिंह पार्टी में उनके प्रति बढ़ती असंतुष्टी, उनके बढ़ते प्रभाव और भ्रष्टाचार के लगते आरोपों के चलते निकाले गए, जिस वक्त वो निकाले गए तब समीकरण इस ओर इशारा कर रहे थे कि समाजवादी पार्टी आगामी चुनावों में जीत दर्ज करेगी। मायावती कमजोर हो चुकी थी और आजम की जरूरत ज्यादा महसूस हो रही थी। अमर सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया गया और रामगोपाल यादव और आजम खान गुट को खुशी का मौका मिल गया। एक बार फिर चुनाव सामने हैं। अब समाजवादी पार्टी को कुछ बोलने वाले फायर ब्रांड नेताओं की जरूरत है। सपा के पास ऐसे व्यक्ति की कमी थी जो सेंट्रल गवर्मेंट और स्टेट गवर्मेंट के बीच पुल का काम करे। इसके साथ सपा में अमर सिंह के बाद कोई भी ऐसा नेता नहीं रह गया था जो मैनेजमेंट में माहिर हो, इसलिए मुलायम सिंह, अमर सिंह को वापस लाए। अमर को वापस लाकर मुलायम ने काउंटर बैलेंस तो किया ही है, साथ ही रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल और आजम खान जैसे लोगों को ये संदेश दिया कि वो पार्टी के हित के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अमर सिंह अगड़ी जाति के वोटों खास तौर पर ठाकुरों के वोटों को जेहन में रखकर भी वापस लाए गए। इन दो नेताओं की वापसी साफ इशारा है, बयानबाज बड़े चेहरों के साथ-साथ यादव परिवार से हटकर कुछ और चेहरे भी आने वाले चुनावों में सामने रखना। इसलिए मुलायम सिंह ने अमर सिंह पर अपना प्रेम उड़ेला है।
आजम खान से लेकर अखिलेश तक हैं असंतुष्ट
सपा खेंमे में सबसे पहले हलचल और बेचैनी के आसार तब दिखे थे, जब अमर सिंह के कट्टर विरोधी आजम खान ने मुलायम सिंह यादव को पार्टी का मालिक कहा था। पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव भी अमर सिंह को पार्टी में वापस लाने के फैसले से खुश नहीं हैं। बल्कि अगर याद हो, तो 2010 में पार्टी से अमर सिंह को बाहर निकालने में राम गोपाल सबसे आगे थे, लेकिन जब चुनाव करीब है और पार्टी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए कहीं से भी और किसी से भी मदद लेने के लिए प्रतिबद्ध है तो राम गोपाल भी अपने अहम को किनारे कर मुलायम का साथ दे रहे हैं। पुत्र अखिलेश यादव भी उनके इस फैसले से इतने संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन एक आज्ञाकारी बेटे की तरह वो शांतिपूर्वक अपने पिता के पदचिन्हों पर चल रहे हैं।
-मधु आलोक निगम