16-Jun-2016 09:48 AM
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हर साल स्कूल चले हम अभियान, एक लाख बीस हजार सरकारी स्कूल, करीब पांच लाख से अधिक शिक्षक और उनके वेतन पर 11 हजार करोड़ से अधिक खर्च करने के बाद भी मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट पा रही है। यानी प्रदेश सरकार की लाख कोशिश के बाद भी प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता बदहाल है। दरअसल इसकी मूल वजह है आधे शिक्षकों का रोजाना स्कूल नहीं जाना।
वास्तव में अगर राज्य की शिक्षा व्यवस्था के बारे में गंभीरता से विचार किया जाए तो हम पाते हैं कि सरकार तो शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए हर तरह की कोशिश कर रही है, लेकिन शिक्षकों की निष्क्रियता के कारण शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं आ रहा है। आप राह चलते किसी साधारण समझ वाले व्यक्ति से भी पूछ लीजिए तो बता देगा कि शिक्षा व्यवस्था की इस बदहाली के लिए शिक्षक जिम्मेदार हैं जो विद्यार्थियों को पढ़ाने के अपने मूल दायित्व के अलावा हर काम में रुचि रखते हैं। इसमें दो राय नहीं कि शिक्षक यदि पढ़ाने का दायित्व ईमानदारी से निभाने लगें तो परीक्षार्थी इतनी संख्या में अनुत्तीर्ण नहीं होंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय परंपरा में ईश्वर से भी ऊपर दर्जा रखने वाले शिक्षक अपने कर्तव्य पथ से इस तरह भटक चुके हैं। कर्तव्य पथ से भटके शिक्षकों को उनका कर्तव्य याद दिलाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन शिक्षकों के आगे सब फेल हैं।
प्रदेश में बार-बार यह बात उठती है कि यहां शिक्षकों की कमी है। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। आलम यह है कि प्रदेश के शिक्षकों को पढ़ाने से अधिक अन्य कामों में मन लगता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मात्र 52 फीसदी शिक्षक ही रोजाना स्कूल पहुंच पा रहे हैं। बाकी 48 फीसदी शिक्षक क्या कर रहे हैं इसकी पड़ताल कभी सरकार ने नहीं की। दरअसल सरकार शिक्षकों को गोद में बिठाए हुए है। इसलिए शिक्षक बेलगाम हो रहे हैं। सरकार ने उन्हें छठा वेतनमान तक का लाभ तक दे दिया है फिर भी वे आए दिन किसी न किसी मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन करते रहते हैं। शिक्षकों का हठ दिन पर दिन बढ़ते जा रहा है। स्थिति ऐसी हो गई है कि प्रदेश में सैकड़ों ऐसे स्कूल हैं जहां शिक्षक पहुंचते ही नहीं है। जब स्कूल में शिक्षक पहुंचेंगे ही नहीं तो पढ़ाई की गुणवत्ता और रिजल्ट कैसे सुधरेगा? शिक्षक कब स्कूल पहुंचते हैं, और कब वापस चले जाते हैं इसका कोई समय निर्धारित नहीं है। सच तो यह है कि शिक्षक अक्सर स्कूल पहुंचते ही नहीं। इधर जिम्मेदार अधिकारी भी स्कूलों का औचक निरीक्षण करना जरूरी नहीं समझ रहे हैं, जिससे शिक्षकों की मनमानी निरंतर जारी है।
इस बार 10वीं बोर्ड का रिजल्ट 53.87 फीसदी आया है जो पिछले साल की अपेक्षा 6 फीसदी अधिक है। लेकिन यह खुश होने के आंकड़े नहीं है। क्योंकि अगर शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण ही इस साल भी 41 फीसदी छात्रों का भविष्य बर्बाद हो गया है। अगर शिक्षक निरंतर स्कूल जाते तो रिजल्ट और बेहतर हो सकता था। ऐसा नहीं है कि सरकार ने शिक्षकों पर नकेल कसने के लिए कोई कोर कसर छोड़ी हो। सरकार ने तमाम तरह के उपाय किए ताकि शिक्षकों की उपस्थिति स्कूलों में निरंतर हो सके। लेकिन ढाक के तीन पात की तरह शिक्षकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और अन्य अधिकारी 24 घंटे काम कर सकते हैं तो शिक्षक क्यों नहीं। शिक्षकों की स्कूलों में लगातार अनुपस्थिति का परिणाम है कि विरोध के बावजूद आखिरकार शिक्षकों निगरानी के लिए एम शिक्षा मित्र एप का शुरू कर दिया गया है। जिसके तहत शिक्षकों को मोबाइल से अपनी आमद दर्ज करानी है। जो शिक्षक मोबाइल से हाजिरी दर्ज कराता है उसकी लोकेशन अधिकारी जीपीएस के माध्यम से तत्काल देख लेते है। इसके अलावा कई एसएमएस से भी हाजिरी देते है। विभाग का दावा है कि एम शिक्षा मित्र के शुरू हो जाने से अब कोई भी शिक्षक कक्षाओं से गैर हाजिर नहीं हो सकेगा। एक बार स्कूल पहुंचने पर उसकी हाजिरी एप से लगते ही वह पूरे समय अधिकारियों की निगरानी में रहेगा। इस दौरान वह जहां-जहां जाएगा, लोकेशन जीपीएस में दर्ज होती रहेगी। लेकिन कई बार ऐसी शिकायतें आई हैं कि नेटवर्क नहीं होने और एप के ठीक से काम नहीं करने पर शिक्षकों की लोकेशन नहीं मिल पाई है।
एप से हाजिरी, तभी मिलेगा वेतन
शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के उद्देश्य से अब सरकार शिक्षकों की उपस्थिति मैन्युअली न करके मशीन से दर्ज करना चाहती है। इसलिए प्रदेशभर में ई-अटेंडेंस व्यवस्था लागू की गई हैं। नए शिक्षा सत्र से शिक्षकों की हाजिरी इसी एप के माध्यम से लगेगी। यदि शिक्षक समय पर स्कूल नहीं पहुंचते हैं या फिर स्कूल लेट आते हैं तो उन्हें गैर हाजिर मानकर उनका उस दिन का वेतन काट दिया जाएगा। एप पर दर्ज होने वाली हाजिरी के आधार पर ही शिक्षकों को वेतन मिल पाएगा। 3 बार यदि देर से हाजिरी लगी तो 1 दिन की सीएल या मेडिकल लीव कट जाएगी। यदि सीएल, लीव नहीं बची तो 1 दिन का वेतन कटेगा।
शासन के द्वारा सभी स्कूल प्रबंधन को भेजे गए आदेश में चेतावनी दी है कि यदि देरी हुई तो शिक्षक के वेतन से पैसा कटेगा। शिक्षा विभाग ने सभी शिक्षको को निर्धारित समय से 15 मिनट पहले स्कूल पहुँचने की हिदायत दी है। यदि अध्यापक तीन दिन लगातार 5 मिनट देरी से पहुचेंगे तो उसका एक दिन का वेतन और 10 मिनट देरी से पहुचने वाले शिक्षक का आधा दिन का वेतन काटा जायेगा। शिक्षा विभाग हर माह स्कूल इंचार्ज को ईमेल से शिक्षको की वेतन सम्बन्धी जानकारी लेगा।
एप के जरिए शिक्षकों, कर्मचारियों को पे-स्लिप लेने, अवकाश, शिकायत, एसएमएस, ट्रेनिंग, आदेश-निर्देश सहित शिक्षा विभाग से जुड़ी अन्य जानकारी मिल सकेगी। शिक्षक यदि कोई शिकायत करते हैं तो शिकायत जिस विभाग की होगी, उस विभाग के आला अफसर उसे देख सकेंगे और निपटारा करेंगे। शिक्षा विभाग का कहना है कि एप में जो कमियां थीं दूर हो गई हैं। अब कोई समस्या नहीं है। बाकी शिक्षकों को भी एप डाउनलोड करा ही पड़ेगा। स्कूल जाने पर हर शिक्षक की लोकेशन के आधार पर उपस्थिति लगेगी। इससे वह छुट्टी नहीं मार पाएंगे। कई शिक्षक ग्रामीण क्षेत्र में कई दिन तक स्कूल नहीं जाते हैं। वह एक दिन जाकर उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। इस व्यवस्था से यह गड़बड़ी रुक जाएगी। शिक्षक स्कूल में रुकेंगे नहीं तो उनकी लोकेशन से पूरी जानकारी भोपाल तक पता चल जाएगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति गंभीर
प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में तो सरकारी स्कूलों में शिक्षक जैसे-तैसे हाजिरी देते तो हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बेहद गंभीर है। इसका खुलासा लगातार होता रहता है। बच्चे समय पर स्कूल पहुंच जाते है लेकिन शिक्षक नदारद रहते हैं। कई बार तो शिक्षक स्कूल में ताला जड़कर राजधानी या जिला मुख्यालय पर आयोजित धरने में शामिल होने पहुंच जाते हैं। ऐसे में सप्ताह भर स्कूल के ताले नहीं खुलते हैं। सरकार ने शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए लेकिन शिक्षक सुधरने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार ने मशीनों का सहारा लेना मुनासिब समझा है।
सभी शिक्षकों को एप डाउनलोड करने का निर्देष
एम-शिक्षा मित्र के नाम से शुरू की जा रही योजना के लिए यहां शासन स्तर से निर्देश प्राप्त होने के बाद सभी शासकीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक व कर्मचारियों के मोबाइल नंबर सहित अन्य विवरण एकत्र किए जा रहे हैं। इसके लिए सभी शिक्षकों को एंड्रायड मोबाइल फोन लेने को कहा गया है। वैसे तो कई जिलों में प्रायोगिक तौर पर यह योजना शुरू की जा चुकी है। इस महीने के अंत तक यहां शुरू होने की संभावना है। एम-शिक्षामित्र के नाम से शुरू योजना के जरिए शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति तो दर्ज होगी ही, इसके साथ ही इस उन्हें अवकाश की सूचना, छात्रवृत्ति की जानकारी, वेतनपत्रक, आदेश व निर्देश सहित अन्य जानकारी भी अपलोड व डाउनलोड करनी होगी। अवकाश के लिए सूचना एक दिन पहले व अन्य सूचनाएं कम से कम आधे घंटे पहले मोबाइल के जरिए देनी होगी। ई-अटेंडेंस योजना लागू होने से पहले ही उसका विरोध शुरू हो गया है।
योजना लागू होने के बाद शासकीय शालाओं व विद्यालयों में कार्यरत शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक स्टॉप को एंड्रॉयड मोबाइल रखना होगा। क्योंकि योजना के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन एंड्रॉयड मोबाइल के जरिए ही संभव हो सकेगा।
दरअसल सरकार को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा कि सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में आजकल पढ़ाई नहीं हो रही है। कई गांवों में स्कूल ही नहीं खुल रहे, जबकि जहां खुल रहे हैं वहां शिक्षक मोबाइलों में व्यस्त रहते हैं। कई शिक्षक स्कूल आकर अपनी हाजिरी रजिस्टर में दर्ज करके निकल जाते हैं। ऐसे मामले पकड़े गए हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। कठोर कार्रवाई के दायरे में तो वे शिक्षक भी नहीं आए हैं जो कि स्कूल को बंद करके एक साथ गायब हो रहे हैं।
-कुमार राजेंद्र