16-Jun-2016 09:40 AM
1234864
राजस्थान में अरसे से नेतृत्व परिवर्तन की आस लगाए बैठा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का विरोधी खेमा एकाएक सक्रिय हो गया है। वजह बने हैं ओम माथुर जिन्हें भाजपा ने राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनाया है। वैसे तो यह राज्यसभा में एंट्रीÓ की स्वाभाविक-सी प्रक्रिया है लेकिन, भाजपा के स्थानीय नेता इसे ओम माथुर की राजस्थान की राजनीति में री-एंट्रीÓ के तौर पर देख रहे हैं।
इसकी बड़ी वजह इस पूरे घटनाक्रम में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का रुख है। राजे नहीं चाहती थीं कि माथुर को राजस्थान से उम्मीदवार बनाया जाए, लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनका नाम फाइनल करके भेज दिया। बताया जाता है कि राजे ने ओम माथुर को रोकने के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने की जी-तीड़ कोशिश की थी। लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो पाईं। इस राजनैतिक घटनाक्रम ने एक ओर वसुंधरा विरोधी खेमे में ऊर्जा भर दी है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री समर्थकों की पेशानी पर पसीना ला दिया है। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आईं वसुंधरा राजे ने कई वरिष्ठ विधायकों को नजरअंदाज कर रखा है। घनश्याम तिवाड़ी और नरपत सिंह राजवी सरीखे दिग्गजों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कर उन्होंने सबको चौंका दिया था। इन दोनों नेताओं ने वसुंधरा के खिलाफ खुली अदावत कर रखी है। दोनों करीब एक साल से सत्ता और संगठन की किसी भी बैठक में नहीं जाते। लेकिन ओम माथुर जब नामांकन भरने जयपुर आए तो विधायक दल की बैठक में तिवाड़ी और राजवी, दोनों मौजूद रहे। यही नहीं, तिवाड़ी ने तो माथुर के नामांकन पत्र पर प्रस्तावक के रूप में हस्ताक्षर भी किए।
तेजी से बदले राजनैतिक समीकरणों के बाद भाजपा के ज्यादातर विधायक ऑफ द रिकॉर्डÓ बातचीत में यह स्वीकार कर रहे हैं कि ओम माथुर के राज्य की राजनीति में फिर से सक्रिय होने से सरकार से असंतुष्ट चल रहे नेताओं को एकजुट होने का एक मंच मिल गया है। माथुर प्रदेश की राजनीति में क्या गुल खिला सकते हैं, इसकी बानगी उन्होंने विधायक दल की बैठक में ही पेश कर दी। बैठक की शुरूआत में जब चिकित्सा मंत्री राजेंद्र राठौड़ उम्मीदवारों का परिचय करा रहे थे तो उन्होंने ओम माथुर का परिचय करवाते हुए जैसे ही कहा कि ओम माथुर को आज सेवा का फल मिला हैÓ तो माथुर ने उन्हें बीच में ही टोक दिया। वे बोले कि यह सेवा का फल नहीं है, उसका तो अभी इंतजार है।Ó यही नहीं, माथुर ने नामांकन दाखिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का खूब गुणगान कर उन्हें उम्मीदवार बनाने के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन वसुंधरा राजे का उन्होंने एक बार नाम तक नहीं लिया। माथुर के इस तेवर से वसुंधरा विरोधी खेमे को संजीवनी मिल गई। अभी खुलकर तो कोई नहीं बोल रहा, लेकिन इनमें से कुछ यह मानकर चल रहे हैं कि देर-सवेर राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन निश्चित रूप से होगा।
वसुंधरा खेमे को अंदरखाने यह डर सता रहा है कि ओम माथुर को मजबूत होता देख उनके समझे जाने वाले विधायक पाला न बदल लें। 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में भाजपा के अभी 160 विधायक हैं। इनमें से मुख्यमंत्री सहित 26 विधायक मंत्रिमंडल में शामिल हैं। बाकी बचे विधायकों में से दो दर्जन से ज्यादा ऐसे हैं जो मंत्री नहीं बनाए जाने से खिन्न हैं। हालांकि इनमें से किसी ने अभी तक बगावत नहीं की है। इसकी बड़ी वजह है मंत्रिमंडल में चार बाकी बची हुई जगहें। माना जा रहा है कि मंत्री बनने की चाहत ने सबके मुंह सिल रखे हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री खेमे की ओर से बार-बार मंत्रिमंडल विस्तार की खबरें लीक की जाती हैं। लेकिन ढाई साल बाद भी विस्तार का कोई अता-पता नहीं है। यदि मंत्री बनने की उम्मीद पाले बैठे इन विधायकों को यह पक्का भरोसा मिल जाए कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होना है और नया नेतृत्व उन्हें अपनी टीम में शामिल करेगा तो वे आसानी से पाला बदल सकते हैं।
होईहें वही जो मोदी-शाह रचि राखा
भाजपा के सभी विधायक जानते हैं कि भाजपा में वही होता है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चाहते हैं। वे ये भी जानते हैं कि इन दोनों से ओम माथुर के कैसे रिश्ते हैं। एक तरह से यह जगजाहिर है कि माथुर को नरेंद्र मोदी और अमित शाह का वरदहस्त प्राप्त है। नरेंद्र मोदी से उनकी घनिष्ठता अब की नहीं, करीब 35 साल पुरानी है। दोनों ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रचारक रहे हैं और दोनों ने इक_े काफी काम किया है। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही ओम माथुर का सत्ता और संगठन में जबरदस्त दखल रहा है। राष्ट्रीय राजनीति में भले ही ओम माथुर का कद बढ़ता जा रहा हो, लेकिन राजस्थान की राजनीति से उनका मोह गाहे-बगाहे दिख ही जाता है। शायद ही ऐसा कोई महीना बीता हो जब वे राजस्थान न आए हों। वे जब भी आते हैं या तो कोई बयान देकर अथवा किसी नेता से मुलाकात कर, सियासी हलचल मचाकर ही जाते हैं।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी