पार्टी के लिए मुसीबत बने दिग्गी
16-Jun-2016 09:26 AM 1234781
मध्यप्रदेश कभी कांग्रेस की राजनीति का गढ़ हुआ करता था। यहां कांग्रेस अपराजेय मानी जाती थी। लेकिन अपने दस साला कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह ने ऐसे कारनामे किए कि कांग्रेस के दुर्दिन शुरू हो गए। 2003 में हार के बाद दिग्गी राजा ने मध्यप्रदेश की राजनीति से पहले दस साल के लिए सन्यास ले लिया। दस साल बाद भी कांग्रेस की स्थिति नहीं सुधरती देख वे फिर से मप्र की राजनीति से विलग हो गए हैं। लेकिन यहां कांग्रेस का खेल बिगाडऩे में वे कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस की बदनामी में उनके पूर्ववर्ती कर्म भी आग में घी का काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में लगातार तीन बार हुई हार ने कांग्रेस को झकझोर दिया है। नेताओं की लंबी फेहरिश्त होने के बावजूद भाजपा के हाथों लगातार चुनावी हार का सामना करती आ रही कांग्रेस को संभालने की कोशिश जब भी कोई नेता करता है तो दिग्गी राजा उसकी राह में रोड़ा अटका देते हैं।  कांग्रेस आलाकमान ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में ईमानदार एवं युवा चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपने की तैयारी में लगा हुआ है। ऐसे में दिग्विजय सिंह फिर से अरुण यादव को कमान देने की वकालत कर रहे हैं। दरअसल दिग्गीराजा चाहते हैं कि प्रदेश की कमान हमेशा ऐसे नेता के पास रहे जो कांग्रेस के जनाधार को मजबूत न कर सके। कांग्रेस में अब तो यह आरोप लगने लगे हैं कि दिग्विजय सिंह युवा नेतृत्व के नाम पर अपने विधायक बेटे जयवर्धन सिंह को प्रदेश की कमान दिलाने की जुगाड़ लगा रहे हैं। इसीलिए वे राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का अभियान चला रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष के लिए नवंबर-दिसंबर में चुनाव होना है। कांग्रेस का जो भी प्रदेश अध्यक्ष बनेगा उनके पास मिशन 2018 के लिए पर्याप्त समय होगा। अगर सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बनते हैं तो उनके नाम पर दुसरे बड़े नेताओं की सहमति बनाने में आसानी होगी। लेकिन दिग्विजय सिंह ऐसा होने दें तब न। पांच राज्यों में हुए चुनाव में चार राज्यों में बुरी तरह मात खाई कांग्रेस को पटरी पर लाने के लिए दिग्विजय सिंह ने पार्टी में बड़ी सर्जरी की की बात कर रहे हैं। अगर पूर्ववर्ती परिणामों और पार्टी के हालात को देखें तो दिग्विजय सिंह का कहना उचित है लेकिन इस पार्टी में कोई ऐसा नहीं है जो यह कह सके कि यह सर्जरी भला करेगा कौन? कांग्रेस में सबसे बड़ी समस्या यह है कि कार्यकर्ताओं को पता ही नहीं कि उनकी नेता कौन है? सोनिया गांधी या राहुल गांधी। लोग सोनिया के पास जाते हैं तो वे राहुल से मिलने को कहतीं हैं। राहुल से अपाइंटमेंट महिनों नहीं मिलता। कोई पार्टी आगे बढऩा चाहती है तो उसके लीडर को आगे आना ही चाहिए। कार्यकर्ता समझ ही नहीं पा रहे कि राहुल गांधी पार्ट टाइम नेता हैं या फुल टाइम।  ऐसी ही स्थिति मप्र में है। यहां तो पट्ठागिरी चरम पर है। पार्टी का कोई एक नेता नहीं है। अगर कोई नेता पार्टी को एक करने की कोशिश करता है तो दिग्विजय सिंह और उनके पट्ठे उस संस्कृति का पालन नहीं करते हैं। इससे फिर से पार्टी के नेता अपनी परिपाटी पर लौट आते है। ईओडब्ल्यू ने फिर कसी नकेल मप्र में कांग्रेस 2018 की तैयारी में जुटी ही थी कि दिग्विजय सिंह की करतूतों के पिटारे ने फिर से पार्टी को हाशिए पर ला दिया है। वर्ष 2004 में आरकेडीएफ. एजूकेशन सोसायटी में विद्यार्थियों को अनाधिकृत प्रवेश देकर भारी मात्रा में धन अर्जित किए जाने के मामले में ईओडब्ल्यू ने फिर से दिग्विजय सिंह पर नकेल कसनी शुरू कर दी है। दिग्विजय सिंह  अपने आप को पाक साफ बताने के लिये इसे छात्र हित में लिया गया निर्णय बता रहे हैं। लेकिन इस मामले में कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिससे दिग्विजय सिंह का दोष सिद्द होता है। -भोपाल से रजनीकांत पारे
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